New blood test For pregnancy complications: ऑस्ट्रेलिया के साइंटिस्ट्स की एक टीम ने एक नए तरह ब्लड टेस्ट डेवलप किया है जो प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में हेल्थ कॉम्पलिकेशंस का पता लगा सकता है. सिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड (University of Queensland) के रिसर्च टीम ने 27 फरवरी 2025 को छपी एक स्टडी में कहा कि उनका "नैनोफ्लावर सेंसर" (Nanoflower sensor) नवजात बच्चों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की तादाद को कम करने में मदद कर सकता है.
कैसे काम करता है ये टेस्ट?
ये टेस्ट सेल बायोमार्कर के लिए खून के नमूनों की जांच करता है और प्रेग्नेंसी के 11 हफ्ते की शुरुआत में ही जेस्टेशनल डायबिटीज, वक्त से पहले जन्म के जोखिम और हाई बीपी जैसी जटिलताओं का पता लगा सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के सेंटर फॉर क्लिनिकल रिसर्च (Center for Clinical Research) के कार्लोस सालोमन गैलो (Carlos Salomon Gallo) ने कहा कि टीम ने 11-13 हफ्ते के गर्भ में 201 प्रेग्नेंट महिलाओं के खून के नमूनों पर सेंसर का टेस्ट किया और संभावित जटिलताओं का पता लगाया.
एक्सपर्ट ने क्या कहा?
गैलो ने कहा, "मौजूदा वक्त में, ज्यादातर प्रेग्नेंसी कॉम्पलिकेशंस की पहचान दूसरी या तीसरी तिमाही तक नहीं की जा सकती है, जिसका मतलब है कि इफेक्टिल इंटरवेंशन के लिए कभी-कभी बहुत देर हो सकती है. हालांकि, इस तकनीक से गर्भवती महिलाएं बहुत पहले मेडिकल इंटरवेंशंस करा सकेंगी. हमने ये भी पाया कि हमारे बायोसेन्सर में प्रेग्नेंसी कॉम्पलिकेशंस के विकास के जोखिम वाली महिलाओं की पहचान करने में 90 फीसदी से ज्यादा सटीकता है."
रिसर्चर्स ने कहा कि ये तकनीक नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती होने की संख्या को कम करके और सिजेरियन सेक्शन सहित इमरजेंसी प्रेग्नेंसी इंटरवेंशंस को रोककर हर साल हेल्थकेयर सिस्टम के लाखों डॉलर बचा सकती है. गैलो ने कहा, "इसमें शुरुआती रिस्क असेस्टमेंट और इंटरवेंशंस में क्रांति लाने, ऑब्सटेट्रिक केयर में डिजीजन मेकिंग में सुधार करने की क्षमता है."
प्रेग्नेंट महिलाओं को मिलेगी मदद
यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट फॉर बायोइंजीनियरिंग एंड नैनोटेक्नोलॉजी (Australian Institute for Bioengineering and Nanotechnology) की स्टडी के को ऑथर मोस्तफा कमल मसूद (Mostafa Kamal Masud) ने कहा कि तकनीक ने नैनोसेंसर का इस्तेमाल उन बायोमार्कर की कम कंसंट्रेशन का पता लगाने के लिए किया जो संभावित स्वास्थ्य जटिलताओं का संकेत देते हैं, जिन्हें मौजूदा कम सेंसेटिव टेस्टिंग मेथड द्वारा नहीं पहचाना जा सकता है. ये रिसर्च साइंस एडवांसेज जर्नल में छपी है.
(इनपुट-आईएएनएस)
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