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इस छिपे हुए डायबिटीज से प्रेग्नेंट महिलाओं को खतरा, जानिए कैसे बचेगी मां और बच्चे की जान

प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाला डायबिटीज साइलेंट तरीके से अपना असर दिखा सकता है, इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान सही डाइट और ट्रीटमेंट जरूरी है, ताकि मां और बच्चे दोनों खतरे से बच सकें.

इस छिपे हुए डायबिटीज से प्रेग्नेंट महिलाओं को खतरा, जानिए कैसे बचेगी मां और बच्चे की जान
Shariqul Hoda|Updated: Apr 29, 2025, 08:52 AM IST
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Gestational Diabetes Mellitus: डायबिटीज होना वैसे ही किसी के लिए टेंशन की वजह होता है, लेकिन एक खास तरह के मधुमेह प्रेग्नेंट महिलाओं को भी परेशान कर सकता है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस या जीडीएम (GDM) कहते हैं. ये बीमारी ग्लूकोज इंटॉलरेंस का एक फॉर्म है जो प्रेग्नेंसी के दौरान डेवलप होता है. हालांकि इसे आमतौर पर एक टेम्पोरेरी कॉम्पलिकेशन माना जाता है जो डिलिवरी के बाद ठीक हो जाता है, लेकिन जीडीएम मां और पेट में पल रहे बच्चे दोनों के लिए हेल्थ रिस्क लेकर आता है.

इसे हल्के में न लें
मशहूर डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. शुभाश्री पाटिल (Dr. Shubhashree Patil) ने एचटी को कहा, "अक्सर डायग्नोज न किया गया या कम आंका गया जीडीएम एक साइलेंट खतरे के तौर पर काम करता है, जो हाई बीपी, इंफेक्शन और दिल से जुड़ी परेशानियों जैसे हालात को बढ़ाता है, जो आखिरकार घातक रिजल्ट की तरफ ले जा सकता है. इस लिंक को समझना अवेयरनेस को बढ़ाने, मैटरनेल केयर प्रोटोकॉल में सुधार करने और सेफ प्रेग्नेंसी इंश्योर करने के लिए जरूरी है."

 

जेस्टेशनल डायबिटीज के रिस्क फैक्टर्स
डॉक्टर ने एडवांस्ड मैटरनल एज, प्रेग्नेंसी के दौरान मोटापा या हद से ज्यादा वजन बढ़ना, डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री, जीडीएम या मैक्रोसोमिया और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का पिछला इतिहास जैसे रिस्क फैक्टर्स को नोट किया जो जेस्टेशनल डायबिटीज को ट्रिगर कर सकते हैं.
 

जेस्टेशनल डायबिटीज का असर
डॉक्टर ने आगे कहा, "जीडीएम प्लेसेंटल हार्मोन के कारण इंसुलिन रिजिस्टेंस और मैटरनल मेटाबॉलिक स्ट्रेस की वजह से होता है. अगर इसे बेकाबू छोड़ दिया जाए, तो ये हाइपरग्लाइसीमिया की तरफ ले जाता है, जिससे एंडोथेलियल डिसफंक्शन, हाई बीपी और बढ़े हुए इंफ्लेमेंट्री मार्कर होते हैं."

 

मातृ मृत्यु दर से जीडीएम कैसे जुड़ा है?
जीडीएम प्री-एक्लेमप्सिया और एक्लेमप्सिया, सिजेरियन सेक्शन के खतरे को बढ़ाता है, जिससे पोस्टऑपरेटिव कॉम्पलिकेशंस, पोस्टपार्टम हैमरेज, बैड ग्लाइसेमिक कंट्रोल के कारण इंफेक्शन होता है. गंभीर मामलों में, दिल से जुड़ी परेशानियों से मां की डेट हो सकती है. स्टडीज से पता चलता है कि अगर जीडीएम वाली महिलाओं की सेहत को ठीक से मैनेज नहीं किया जाता है, तो प्रेग्नेंसी से जुड़े मृत्यु दर का खतरा तीन गुना ज्यादा होता है.
 

खतरे से कैसे बचें 

1. पहली तिमाही में हाई रिस्क वाली महिलाओं की अर्ली स्क्रीनिंग
2. लाइफस्टाइल चेंजेज, जैसे-सही डाइट और फिजिकल एक्टिविटीज पर ध्यान देना
3. जरूरत पड़ने पर ओरल हाइपोग्लाइसेमिक या इंसुलिन का यूज
4. डिलिवरी और पोस्ट पार्टम पीरियड के दौरान क्लोज मॉनिटरिंग
5. टाइप-2 डायबिटीज के दौरान लगातार फॉलो अप्स

डॉ. शुभाश्री पाटिल ने आखिर में कहा, "हालांकि जीडीएम अक्सर साइलेंट और कम वक्त के लिए होता है, लेकिन इसके नतीजे घातक हो सकते हैं. इस प्रिवेंटेबल कंडीशन से जुड़े मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए अर्ली डायग्नोसिस, टारगेटेड इंटरवेंशन और पोस्टनेटल केयर जरूरी है."

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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