DNA Analysis: सिस्टम की इस शर्मनाक कार्यपद्धति में सुधार होना चाहिए. कोर्ट ने इसलिए क्लोजर रिपोर्ट को रद्द कर पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने का रास्ता दिखाया है. आगे बढ़ने से पहले हम आपको वीर रस के कवि भूषण की कविता की दो पंक्तियां बताना चाहेंगे, जो है-
"मातु भूमि बिनु धर्म नाहीं, नहिं धरम बिनु वीर
धरा धुरंधर वीर हैं, जेहि भूमि हित धीर."
अर्थात मातृभूमि के बिना धर्म नहीं, धर्म के बिना वीर नहीं. वही सच्चा वीर है, जो मातृभूमि की रक्षा करता है. कवि भूषण कि ये पंक्तियां करीब 350 साल पहले लिखी थीं. आज हम महाकवि भूषण की ये कविता आपको इसलिए याद दिला रहे हैं क्योंकि भारतभूमि पर रहनेवाले कुछ लोग देशधर्म भूल गए हैं. ऐसे लोगों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला एक महत्वपूर्ण संदेश हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की तारीफ में पोस्ट शेयर करने वाले अंसार अहमद सिद्दीकी की जमानत याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि
#DNAWithRahulSinha | भारत में रहना है तो भारत-भारत कहना है.. देश विरोधी कदम..गैर-जमानती एक्शन!#DNA #India #AntiNational #AllahabadHighCourt @RahulSinhaTV pic.twitter.com/u6CiKDM1U1
— Zee News (@ZeeNews) July 1, 2025
- संविधान के अनुच्छेद 51- ए के खंड ए में प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वो संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करे.
- संविधान के अनुच्छेद 51- ए के खंड सी में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखें और उसकी रक्षा करें.
पहलगाम आतंकी हमला
यहां हम आपको बताना चाहेंगे की अंसार सिद्दीकी ने पाकिस्तान के समर्थन में पोस्ट 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद किया था. जब पूरा देश 26 निर्दोष नागरिकों की बर्बर हत्या से शोक में था. पाकिस्तान के खिलाफ देशभर में आक्रोश था. तब अंसार सिद्दीकी ने पाकिस्तान की तारीफ वाला पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर किया था
इलाहाबाद हाईकोर्ट का ये फैसला बेहद अहम
इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का ये फैसला बेहद अहम है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी लिखने और कुछ भी बोलने वालों को भी आज इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को ध्यान से पढ़ना और समझना चाहिए. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का भी जिक्र किया है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता स्वतंत्र भारत में पला-बढ़ा है. इसके बाद भी उसका आचरण राष्ट्र विरोधी है. इसलिए वो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के संरक्षण के पात्र नहीं हैं.
अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार राष्ट्रहित से बड़ा नहीं
कोर्ट की ये टिप्पणी सबसे महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ही कुछ भी लिखने और बोलने की मनमानी की जाती रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से साफ है कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार राष्ट्रहित से बड़ा नहीं है. संविधान में दिए गए अधिकार से पहले कर्तव्य का पालन करना अनिवार्य है.
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा कि अब तक ऐसे लोग अदालतों की उदारता के कारण ही बचते रहे हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ अब कोर्ट को नरम रुख नहीं अपनाना चाहिए. इसलिए कानून विशेषज्ञ कोर्ट के फैसले को महत्वपूर्ण बता रहे हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट का संदेश साफ है अगर भारत में रहना है तो भारतीय संविधान में आस्था रखनी होगी. राष्ट्र प्रथम वाले दायित्व का पालन करना होगा. भारतीय संविधान से मिले अधिकारों के प्रयोग के पहले संविधान में जिन कतर्व्यों और दायित्वों का उल्लेख है उनका पालन करना होगा. यानी अब भारत में रहते हुए अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर दुश्मन देश की तारीफ करना अपराध होगा.
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