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'सीजफायर पर ट्रंप को क्रेडिट दे देना चाहिए था...' कांग्रेस के राज़ खोलने वाले संजय बारू ऐसा क्यों कह रहे?

America Tariff on India Update: मनमोहन सिंह की सरकार में पीएम के सलाहकार रहे संजय बारू ने ट्रंप के टैरिफ पर मोदी सरकार पर ही सवाल खड़ा किया है. उन्होंने ट्रंप के ईगो की बात करते हुए लिखा है कि पीएम को सीजफायर में ट्रंप को क्रेडिट दे देना चाहिए था और भारत का स्टैंड भी साथ-साथ क्लियर कर देना चाहिए था. शायद यहां तक बात नहीं पहुंचती. उन्होंने मौजूदा विदेश नीति को 30 साल में शायद पहली बार इतना कमजोर माना है.  

'सीजफायर पर ट्रंप को क्रेडिट दे देना चाहिए था...' कांग्रेस के राज़ खोलने वाले संजय बारू ऐसा क्यों कह रहे?
Anurag Mishra|Updated: Aug 01, 2025, 11:23 PM IST
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गर्मजोशी, गले मिले, केमिस्ट्री, दोस्ती... फिर भी डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर तगड़ा टैरिफ लगाकर बड़ा झटका दे दिया. 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' लिखने वाले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू का मानना है कि पीएम नरेंद्र मोदी को सीजफायर वाले मुद्दे को अलग तरह से डील करना चाहिए था. दरअसल, ट्रंप इसका क्रेडिट लेने पर उतारू थे लेकिन भारत ने सिरे से खारिज कर दिया. शायद इसी वजह से तमतमाए ट्रंप ने टैरिफ+पेनाल्टी का ऐलान करने में देर नहीं की. कांग्रेसराज के कई राज़ खोलने वाले बारू ने 'इंडियन एक्सप्रेस' में लंबा लेख लिखा है. उन्होंने पिछले तीन दशकों में मौजूदा विदेश नीति पर सवाल उठाए हैं. 

वह लिखते हैं कि 1971 के बाद से भारत ने कभी भी पाकिस्तान से जुड़े मामले में अमेरिका और चीन को एक साथ (यानी उसकी तरफ) नहीं पाया. भारत को रूस के साथ अपने संबंधों का बचाव भी करना पड़ता था. उन्होंने इसे भारतीय विदेश नीति के लिहाज से निराशाजनक माना, जिसने तीन दशकों से लगातार अमेरिका को अपने पक्ष में रखने की कोशिश की. साथ ही चीन-पाकिस्तान गठबंधन से भी निपटता रहा. फिर भी यह परिणाम देखने को मिल रहा है. बारू ने कहा कि संसद को भारतीय विदेश नीति की व्यापक समीक्षा करनी चाहिए. 

टैरिफ इतनी चौंकाने वाली बात क्यों?

इसे तुलना करके समझिए. जापान और यूरोपीय संघ के साथ डील में अमेरिका के राष्ट्रपति नरमी दिखाते हैं लेकिन निम्न-मध्यम आय वाली विकासशील अर्थव्यवस्था (भारत) पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगा देते हैं. जबकि भारत की तरफ से हाल में कहा गया था कि बातचीत अभी जारी है और भारत को अगस्त में समझौता करने के लिए कुछ हफ्ते की मोहलत मिल सकती है. लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर रोकने के लिए ट्रंप को क्रेडिट नहीं दिया. कुछ घंटे बाद ट्रंप एक बार फिर भारत और पाकिस्तान युद्ध रुकवाने का दावा कर बैठे. 

बारू के मुताबिक भारत दुविधा में फंसा रहा. वह माने या न माने. प्रधानमंत्री यह स्वीकार नहीं करेंगे कि अमेरिका ने हस्तक्षेप किया या कोई भूमिका निभाई. उन्होंने कहा कि अगर मुद्दा सिर्फ युद्ध खत्म करने का होता तो बात वहीं खत्म हो जाती. अमेरिका ने पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच के मुद्दों को सुलझाने में भूमिका निभाई थी जबकि भारत लगातार कहता रहा है कि पड़ोसियों के बीच सभी विवादों का निपटारा द्विपक्षीय रूप से ही किया जा सकता है. हालांकि पहले किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे इतना तूल नहीं दिया. 

इस बार ट्रंप क्रेडिट चाहते थे

वह कहते हैं कि इस बार मामला अलग था. राष्ट्रपति ट्रंप ने न सिर्फ अपने कथित हस्तक्षेप को तूल दिया बल्कि इसका क्रेडिट लेने की भी कोशिश की. उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर इसे व्यापार वार्ता के नतीजों से जोड़ दिया. गौर करने वाली बात यह है कि जहां यूरोपीय संघ और जापान टैरिफ वार्ता के नतीजों से थोड़ा खुश हैं, निवेश के वादे कर रहे हैं और चीन वाशिंगटन डीसी के सत्ता के गलियारों में अपनी पैठ बना रहा है, वहीं भारत को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. 

ट्रंप ने नमक छिड़का है?

इससे भी बुरी बात यह है कि, जैसा अमेरिका-भारत संबंधों पर लंबे समय से नजर रखने वाले एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर कहा- ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ समझौता करके भारत के जख्मों पर नमक छिड़का है, जिसके तहत पाकिस्तान और अमेरिका विशाल तेल भंडार विकसित करने के लिए मिलकर काम करेंगे. ऐसे में सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति ट्रंप से अलग तरीके से निपट सकते थे?

इस पर बारू ने लिखा है कि यह समस्या ट्रंप के दूसरे राष्ट्रपति बनने को लेकर भारत की उम्मीदों से जुड़ी है. राष्ट्रपति चुनावों से पहले, पीएम मोदी ने ट्रंप और कमला हैरिस के बीच तटस्थ रहने की कोशिश की, वहीं भारत में कई लोग और अमेरिका में कई भारतीय मानते रहे कि ट्रंप अमेरिका-भारत संबंधों के लिए ज्यादा सही होंगे. जब ट्रंप ने जनवरी में अपने शपथ ग्रहण में मोदी को आमंत्रित किए बिना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को न्योता भेज दिया तो नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक में घंटी जरूर बजी होगी. 

पढ़ें: 'बलूचिस्तान बिकाऊ नहीं है', पाकिस्तान में तेल भंडार वाले दावे पर ट्रंप को चेतावनी

हो सकता है इस शुरुआती झटके के बाद, प्रधानमंत्री और उनकी कूटनीतिक टीम ने अमेरिका-भारत संबंधों की स्थिति का फिर से मूल्यांकन किया हो. पहले की धारणा - राष्ट्रपति बाइडेन भारत से थोड़ा दूर और पाकिस्तान के ज्यादा करीबी हैं जबकि राष्ट्रपति ट्रंप समीकरण को संतुलित करेंगे - इसे दूर रखना चाहिए था. आगे क्या होगा, इसका नया आकलन करना चाहिए था. ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने भी फिर से मूल्यांकन किया था और ट्रंप के खेमे में 'घुसपैठ' कर समर्थन जुटा लिया. 

जब ट्रंप ने अपनी व्यापार और टैरिफ नीति सामने रखी तो बार-बार भारत को 'टैरिफ किंग' कहकर आगाह करना चाहा. शायद मोदी सरकार को उम्मीद थी कि अमेरिका से और ज्यादा रक्षा उपकरण खरीदकर ट्रंप को खुश किया जा सकता है. इससे दिखाया जाएगा कि देखिए भारत अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कैसे योगदान दे रहा है. सरकार ने एक द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते का भी प्रस्ताव रखा और उम्मीद जताई कि बातचीत की प्रक्रिया भारत को मुश्किल से बचा लेगी. हालांकि मामला अभी तक सुलझा नहीं था.

पढ़ें: ट्रंप अंकल ने ऐसा क्यों किया? भारत का 'नमस्ते' भूल पाकिस्तान को गले लगाने की इनसाइड स्टोरी

बारू कहते हैं कि इस उधेड़बुन में उलझी मोदी सरकार के पास राष्ट्रपति ट्रंप के ईगो को पुष्ट करने का शानदार मौका मिला था. वह चाहते तो युद्धविराम की घोषणा में ट्रंप की भूमिका के लिए उन्हें धन्यवाद दे सकते थे. बारू के शब्दों में- बेशक, यह तर्क दिया जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय विवाद सुलझाने में अमेरिका या किसी दूसरे देश की किसी भी भूमिका से इनकार करने के भारत के बरसों पुराने कूटनीतिक रुख से अलग नहीं जाना चाहते थे. हालांकि एक रास्ता तो था ही. 

सीजफायर पर बारू बोले

पीएम युद्धविराम की घोषणा के बाद ट्रंप को फोन कर सकते थे, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री के साथ हुई बातचीत का जिक्र करते और दुनिया में युद्धों को समाप्त करने में उनकी रुचि के लिए ट्रंप का धन्यवाद कर सकते थे. पीएम यह भी कह सकते थे कि भारत-पाकिस्तान के मुद्दे केवल द्विपक्षीय रूप से ही सुलझाए जा सकते हैं. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे बारू का विश्लेषण है कि ऑपरेशन सिंदूर को समाप्त करने में अपनी भूमिका को व्यापार समझौते से जोड़कर ट्रंप एक तरह से बदले में दूसरी चीज चाह रहे थे और शायद यह था व्यापार में रियायतों के बदले में अपनी भूमिका का क्रेडिट. 

बारू ने लिखा है कि भारत का आधिकारिक रुख यह हो सकता था, 'हां, माननीय राष्ट्रपति ट्रंप हालात बेकाबू होने को लेकर चिंतित थे. उन्होंने दोनों पक्षों से संपर्क किया. हमने उनकी चिंता के लिए उनका धन्यवाद किया लेकिन, हमने अपना मकसद पूरा होने के बाद ही सीजफायर की घोषणा की.' कहानी यहीं खत्म हो जाती. मोदी ट्रंप की भूमिका को स्वीकार करते, लेकिन उन्हें अंतिम निर्णय का क्रेडिट नहीं देते और भारत के इस आदर्श रुख पर अड़े रहते कि भारत-पाकिस्तान विवाद केवल द्विपक्षीय रूप से ही सुलझाए जाएंगे.

बारू ने आखिर में कहा है कि भारत सरकार ट्रंप के ईगो को संतुष्ट करने की चुनौती के लिए तैयार नहीं थी. यह आश्चर्यजनक है क्योंकि दुनियाभर के कुछ ही राष्ट्राध्यक्ष ऐसे दिखते हैं जिन्होंने ट्रंप के साथ मोदी से ज्यादा बेहतर तालमेल बिठाया हो. 

संजय बारू 1999-2001 तक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य थे, बाद में 2004-08 तक भारत के प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे. 

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