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कैसे गुजरा था बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन का आखिरी दिन, कैसे हुआ था अंतिम संस्कार?

Bhimrao Ambedkar Life: बाबासाहेब के अंतिम संस्कार में लाखों लोग शामिल हुए. उनका पार्थिव शरीर बौद्ध परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया. बीमारी से जूझते हुए भी उन्होंने अंतिम क्षणों तक बौद्ध धर्म सामाजिक सुधार और लेखन से खुद को जोड़े रखा.

कैसे गुजरा था बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन का आखिरी दिन, कैसे हुआ था अंतिम संस्कार?
Gaurav Pandey|Updated: Apr 13, 2025, 09:24 AM IST
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Babasaheb Bhimrao Ambedkar: भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती को लेकर देशभर में तमाम कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. बाबासाहेब  का जीवन संघर्षों और उपलब्धियों की अनोखी मिसाल है. उनके जीवन से जुड़ीं तमाम कहानियां लोगों के लिए प्रेरणा हैं. 6 दिसंबर 1956 का दिन देश के लिए गहरे शोक का दिन बन गया जब बाबासाहेब ने अंतिम सांस ली. बीमारी से जूझते हुए भी उन्होंने अंतिम क्षणों तक बौद्ध धर्म सामाजिक सुधार और लेखन से खुद को जोड़े रखा. आइए जानते हैं उनके आखिरी दिन की दास्तां और उनका अंतिम संस्कार किस तरह हुआ.

आखिरी सार्वजनिक कार्यक्रम से लौटे थे बाबासाहेब
बाबासाहेब का अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम काठमांडू में विश्व धर्म संसद था. जहां उन्हें विशेष सम्मान मिला. नेपाल के राजा ने मंच पर उन्हें अपने पास स्थान दिया. इसके बाद उन्होंने लुंबिनी, बोधगया और पटना जैसे बौद्ध स्थलों का दौरा किया. जिससे उनका शरीर थकान से चूर हो गया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 30 नवंबर को जब वो दिल्ली लौटे तो बेहद कमजोर थे. लेकिन फिर भी उन्होंने 4 दिसंबर को राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल होने आखिरी बार संसद पहुंचे.

मुंबई में धर्म परिवर्तन समारोह की तैयारी
राज्यसभा से लौटकर बाबासाहेब ने 16 दिसंबर को मुंबई में होने वाले धर्म परिवर्तन समारोह की योजना पर चर्चा की. नानकचंद रत्तू से उन्होंने टिकट की जानकारी ली और फ्लाइट से मुंबई जाने की व्यवस्था करने को कहा. इस दौरान उन्होंने कई दस्तावेज भी लिखवाए. देर रात तक काम के बाद वह सोने चले गए और रत्तू भी वहीं रुक गए.

पांच दिसंबर की सुबह.. सामान्य दिन की तरह शुरुआत
5 दिसंबर की सुबह बाबासाहेब ने माईसाहेब और रत्तू के साथ चाय पी. नाश्ते के बाद वो कुछ समय बरामदे में बैठे अखबार पढ़े और माईसाहेब ने उन्हें दवा दी. इसके बाद उन्होंने अपनी किताब The Buddha and His Dhamma की प्रस्तावना पर काम किया. दोपहर में उन्होंने खाना खाया और फिर सोने चले गए.

बाजार से लौटने पर नाराजगी और शाम की बातचीत
जब माईसाहेब और डॉक्टर मालवनकर बाजार से शाम को लौटे तो बाबासाहेब नाराज थे कि बिना बताए क्यों गईं. उनका गुस्सा तूफान की तरह था लेकिन जल्द शांत हो जाता था. रात को जैन धर्म के प्रतिनिधियों से मुलाकात हुई जिसमें जैन-बौद्ध एकता पर चर्चा हुई. बाबासाहेब ने अगले दिन मिलने का समय देने की बात कही.

बुद्ध वंदना और कबीर के दोहे
प्रतिनिधिमंडल के विदा लेने के बाद बाबासाहेब ने 'बुद्धं शरणं गच्छामि' का पाठ मन ही मन करना शुरू किया और फिर रेडियोग्राम पर बुद्ध वंदना सुनी. रात को उन्होंने कबीर का प्रसिद्ध दोहा ‘चलो कबीर तेरा भवसागर डेरा’ भी गुनगुनाया. इसके बाद वो अपने कमरे में गए और माईसाहेब के खाने के बाद अपनी किताबों के साथ सोने चले गए.

बाबासाहेब का महापरिनिर्वाण
माईसाहेब की आत्मकथा के अनुसार बाबासाहेब को देर रात तक पढ़ने की आदत थी. लेकिन 6 दिसंबर की सुबह जब माईसाहेब उनके कमरे में गईं तो उन्होंने देखा कि बाबासाहेब हमेशा के लिए शांत हो चुके थे. वह नींद में ही दुनिया को अलविदा कह चुके थे. यह सूचना पूरे देश में बिजली की तरह फैल गई.

अंतिम संस्कार.. महापरिनिर्वाण के बाद भी प्रेरणा बने
बाबासाहेब के अंतिम संस्कार में लाखों लोग शामिल हुए. उनका पार्थिव शरीर बौद्ध परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया. उनका महापरिनिर्वाण सिर्फ एक महान आत्मा की विदाई नहीं थी बल्कि वह एक आंदोलन एक विचार और लाखों लोगों की प्रेरणा बन गए. आज भी उनका जीवन संघर्ष और विचार समाज को दिशा दिखा रहे हैं.

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