trendingNow12836355
Hindi News >>देश
Advertisement

चंद पैसे लेकर तलाक पर तलाक करा रहे हैं काजी साहब, दारुल कजा में धड़ल्ले से सुनाए जा रहे फैसले

Bhopal Sharia Court: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दारुल कजा के नाम पर धड़ल्ले से शरिया कोर्ट चल रही है, जिसमें काजी साहिब चंद पैसे लेकर तलाक पर तलाक करवा रहे हैं. 

चंद पैसे लेकर तलाक पर तलाक करा रहे हैं काजी साहब, दारुल कजा में धड़ल्ले से सुनाए जा रहे फैसले
Tahir Kamran|Updated: Jul 11, 2025, 11:16 PM IST
Share

Sharia Court Madhya Pradesh: क्या अपने देश में धर्म के आधार पर अलग अलग कोर्ट हो सकते हैं? क्या हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के लिए अलग अलग न्यायालय हो सकते हैं? बिल्कुल नहीं हो सकते लेकिन आजाद भारत में शायद पहली बार ऐसा मामला सामने आया है, जब शरिया कानून के तहत कोर्ट चलाई जा रही है. जहां भारत के कानून से अलग शरिया के आधार पर केस चलता है. काजी जज की तरह फैसला सुनाते हैं. क्या है ये काजी कोर्ट शरिया के नाम पर कहां सुनाया जा रहा है फैसला और इस तरह के काजी कोर्ट पर लगाम क्यों नहीं लगाई जा रही है? अब उसका पूरा विश्लेषण हम DNA में करने जा रहे हैं.

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सरेआम एक कमरे में शरिया कानून वाली कोर्ट लगती है. आजाद हिंदुस्तान में संविधान नहीं बल्कि शरिया कानून के आधार पर भोपाल मस्जिद कमेटी के काजी यहां फैसला सुना देते हैं. आमतौर पर किसी पति-पत्नी को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना होता है लेकिन इस काजी कोर्ट में मुस्लिम समाज के लोगों के तलाक की सुनवाई काजी साहब ही कर देते हैं और चंद पैसे लेकर लोगों का तलाक करवा देते हैं. 2020 से अबतक भोपाल की काजी कोर्ट ने अभी तक लगभग 5 हजार लोगों का तलाक करवाया है. सिर्फ ढाई हजार की फीस लेकर काजी यहां फैसला ऑन द स्पॉट कर देते हैं और काजी खुद तलाक का प्रमाण पत्र साइन कर के जारी कर देते हैं.

दर-दर की ठोकरें खाने के मजबूर महिलाएं!

इस काजी कोर्ट का कारनामा तब सामने आया जब 26 साल की एक मुस्लिम महिला ने भोपाल में मौजूद हमारे संवाददाता प्रमोद शर्मा से संपर्क किया, इस महिला ने जो बताया उसे आप भी जानकर चौंक जाएंगे. भोपाल के काजी कोर्ट ने दो-दो बार इसका तलाक करवा दिया. साल 2018 में पहली शादी हुई, पहले पति ने मसाजिद कमेटी काजी के सामने ले जाकर कागज पर सिग्नेचर कराये और 500 देकर महिला को घर छोड़ दिया. पीड़िता ने 2024 में दूसरी शादी की, उसने भी इस महिला को शादी के चंद दिनों के अंदर ही काजी कोर्ट में तलाक दे दिया. ऐसी न जाने कितनी महिलाएं हैं जो काजी कोर्ट के तालिबानी फरमान की पीड़ित हैं. दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि शरिया कोर्ट जो कर रहा है वो गैरकानूनी है, भोपाल की इस शरिया कोर्ट के कथित जज हैं. भोपाल के शहर काजी मुश्ताक अली नदवी, इस गैरकानूनी कोर्ट को चलाने के बारे में जब उनसे सवाल जवाब किया गया तो भारत का कानून छोड़ हमें भी इस्लामी कानून का पाठ पढ़ाने लगे. काजी साहब भारी-भारी शब्द सुनाने लग गए.

दारुल कजा की नहीं कोई मान्यता

काजी साहब 'दारुल कजा' का हवाला दे रहे हैं लेकिन शायद वो जानते नहीं हैं वो जिस दारुल कजा की बात कर रहे हैं हमारे कानून के हिसाब से तो उसकी कोई मान्यता ही नहीं हैं. इसके फैसले कानूनी रूप से मान्य ही नहीं हैं. इस काजी कोर्ट के खुलासे के साथ साथ काजी साहब का थोड़ा ज्ञानवर्धन भी करना आज जरूरी है. दारुल कजा को आम बोलचाल की भाषा में शरिया अदालत कहा जाता है. 

क्या है दारुल कजा?

दारुल कजा की शुरुआत साल 1919 में अहमदी मुस्लिम समुदाय के दूसरे खलीफा हज़रत खलीफतुल मसीह (द्वितीय) ने की थी. उस वक्त समुदाय के सदस्यों के बीच नागरिक विवादों को हल करने के लिए इसे बनाया गया था. दारुल कजा मुस्लिम समुदाय में घरेलू, पारिवारिक और धार्मिक मामलों को सुलझाने का काम करती है. ये एक परामर्श केंद्र के रूप में भी कार्य करता है, जहां इस्लामी कानून यानी शरीयत के अनुसार मामलों का निपटारा किया जाता है. एक दारुल कजा में आमतौर पर 5 सदस्य होते हैं, जिनमें काजी अध्यक्ष होते हैं लेकिन दारुल कजा सिर्फ एक परामर्श केंद्र है, इसके फैसले कानूनी रूप से वैध नहीं होते हैं. क्योंकि भारत का कानून इस शरिया अदालत को मान्यता नहीं देता है.

माफी मांग चुके हैं काजी साहब

हालांकि भोपाल में शरिया के नाम पर PARELLEL कोर्ट चलाई जा रही है. वो भी सालों से, यहां अभी तक 5 हजार महिलाओं की तकदीर का फैसला कर दिया गया लेकिन यहां सवाल उठता है कि अभी तक इस कोर्ट पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. दरअसल साल 2009 में भोपाल की काजी कोर्ट को लेकर जबलपुर कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी. साल 2012 में हाईकोर्ट ने साफ कहा भोपाल मसजिद कमेटी की दारुल कजा वैवाहिक विवाद तलाक मामलों में फैसले न ले. साल 2019 एक फिर जबलपुर हाईकोर्ट में कंटेम्प्ट पिटीशन दायर की गई. कोर्ट की फटकार के बाद शहर काजी और मसाजिद कमेटी के सचिव कोर्ट में हाजिर हुए. लिखित एफिडेविट देकर माफ़ी मांगी.

कब थमेगा मामला?

हाईकोर्ट ने तब माफी स्वीकार तो कर ली थी लेकिन ये चेतावनी भी दी थी की तलाक के मामलों का निपटारा शरिया कानून के हिसाब से नहीं हो सकता है लेकिन हमारे पास मौजूद तलाकनामा प्रमाण पत्र साफ बयान कर रहे हैं कि काजी कोर्ट ने हाईकोर्ट के ऑर्डर को भी नहीं माना और तब से लेकर अब तक हजारों तलाक के मामले में फैसला ऑन द स्पॉट सुना दिया लेकिन यहां सवाल उठता है कि आखिर ये सिलसिला कब थमेगा? कब तक मुस्लिम महिलाओं के तकदीर का फैसला ऐसे ही मस्जिद कमेटी के काजी कोर्ट में तय होगा?

Read More
{}{}