Bhagalpur News: बिहार के भागलपुर में एक शिक्षक के परिवार पर उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब उसे ये पता चला कि उसके घर के चिराग को एक ऐसी बीमारी हो गई है. जिसके इलाज में करोड़ों का खर्च होगा. दुर्भाग्य ऐसा कि एक नहीं बल्कि शिक्षक के दोनों ही बेटे असाध्य रोग डीएमडी से ग्रसित हो गए. जिसके बाद एक पिता ने अपने बच्चे को बचाने के लिए वो सबकुछ किया, जो लोगों के सोच से परे था. बड़े-बड़े अस्पताल में इलाज कराने के बाद शिक्षक ने दर्जनों बार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई मंत्रियों को चिट्ठी लिखी. दिल्ली एम्स, पटना, बेंगलुरू समेत 50 से अधिक अस्पताल लेकर गए. जब कहीं कोई असर नहीं हुआ, तब राष्ट्रपति से एक बार फिर शिक्षक ने सपरिवार इच्छा मृत्यु की मांग की. फिर भी सुनवाई नहीं हुई. आखिरकार शिक्षक के बड़े बेटे अनिमेष ने दम तोड़ दिया.
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अनिमेष की मौत के बाद पूरे परिवार का हौसला टूट गया है. अब शिक्षक के साथ पूरा परिवार छोटे बेटे के लिए गिरगिरा रहा हैं. उनकी मांग है कि कोई उनकी गुहार सुन ले और असाध्य रोग ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) का कोई इलाज करावा दे. दरअसल, यह दर्दभरी कहानी है भागलपुर जिले के कदवा कार्तिकनगर के रहने वाले शिक्षक घनश्याम की. जिनका परिवार पिछले 15 साल से हर दिन को रोते-रोते गुजार रहा है. शिक्षक के बड़े बेटे के जन्म के कुछ साल बाद ही उसे डीएमडी बीमारी हो गई. यह ऐसी बीमारी है जिसकी दवाई की डोज 7 करोड़ में आती है. शिक्षक पैसे जुटा पाने में असक्षम थे. मसलन बड़े से बड़े सरकारी अस्पतालों में बेटे का इलाज करवाया. शिक्षक के पास इतने आवेदन हैं, अलग-अलग अस्पतालों में इलाज के इतने कागजात हैं, जिसे गिनते-गिनते सुबह से शाम हो जाए.
पटना से लेकर दिल्ली एम्स तक और ना जाने किन-किन अस्पतालों का चक्कर लगाया, लेकिन बेटा स्वस्थ नहीं हो पाया. इसके बाद छोटे बेटे ने जब जन्म लिया तो उसे भी डीएमडी हो गया. जिसके बाद शिक्षक दोनों का इलाज करवाने लगे. घनश्याम के बड़े बेटे को वह दवाई उपलब्ध नही हो पाई. जिसके बाद उसकी मौत हो गई. छोटे बेटे को देखकर परिवार के सभी लोगों का कलेजा फट चुका है. उसे बचाने के लिए सरकार से मिन्नतें कर रहे हैं. छोटे बेटे अनुराग आनंद की दवाई की डोज 3 करोड़ में आएंगा, लेकिन कोई भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा है. घनश्याम का कहना है कि मेरा कोई नहीं रहा. अब छोटे बेटे को देखकर रहते हैं. अगर यह भी नहीं रहा तो पूरे परिवार को आत्महत्या करना पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि दर्जनों अस्पताल, राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और मंत्रियों को कई बार चिट्ठी लिखी लेकिन किसी ने नहीं सुनी.
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वहीं अनिमेष के दादा ने कहा 'हमने सोचा था कि बड़ा वाला पोता मेरे मरने के बाद हमको कंधे पर लेकर जाएगा, आग देगा, लेकिन देखिए हम उसको कंधे पर ले गए, आग दिए'. इसके आगे अनिमेष के दादा ने कपकपाती हुई आवाज में रोते हुए ज़ी मीडिया से कहा- 'छोटे पोते को सरकार बचा ले'. बहरहाल जरूरत है कि सरकार बस एक बार शिक्षक के छोटे बेटे पर ध्यान दे दे. उसकी जिंदगी बच सकती है. कम से कम छोटे बेटे को नई जिंदगी मिलने के बाद पूरा परिवार खुशहाल हो सकता है.
इनपुट- अश्वनी कुमार
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