Patna: पटना: कहते हैं कि हालात चाहे जैसे भी हो, अगर इरादे मजबूत हो तो रास्ता खुद-ब-खुद बनता चला जाता है. कुछ ऐसी ही कहानी है पटना की रहने वाली फिरदौस की, जो ई-रिक्शा चलाकर न केवल अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की एक जीवंत मिसाल भी पेश कर रही हैं. दरअसल, पिता की मृत्यु के बाद जब परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटा, तो फिरदौस के सामने छह छोटे भाई-बहनों और एक बुजुर्ग मां की जिम्मेदारी आ गई. उस वक्त न कोई सहारा था, न कोई आय का साधन. लेकिन फिरदौस ने हार नहीं मानी. पटना के खेतान मार्केट और कई जगह पर काम किया कम पैसा से भरन पोषण मुश्किल हुआ तो उन्होंने ई-रिक्शा चलाना शुरू किया. हाथ में स्टेयरिंग दुप्पटा से मुंह ढके सड़कों पर दौड़ने लगी ई रिक्शा.
फिरदौस रोजाना सुबह 10 बजे से लेकर रात 9 बजे तक पटना की सड़कों पर ई-रिक्शा चलाती हैं. तेज धूप हो या बारिश, उनके हौसले कभी नहीं डगमगाए. समाज की संकीर्ण सोच और कुछ लोगों की टिप्पणियों से बेपरवाह, वह अपने सपनों और परिवार के लिए दिन-रात मेहनत कर रही हैं. फिरदौस का कहना है कि रात में की समस्या नहीं होता है न डर लगता है बस लोग कमेंट करते है.
फिरदौस कहती हैं कि लोग क्या कहेंगे, ये सोचकर अगर रुक गई होती, तो आज मेरे भाई-बहन स्कूल नहीं जा पाते. फिरदौस ने मुस्कुराते हुए कहा कि उनका सपना है कि वह अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दें और अपना खुद का घर बनाएं.
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वहीं, आज जब हम महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं, तो फिरदौस जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि असली सशक्तिकरण किताबों या भाषणों में नहीं, ज़मीनी स्तर पर मेहनत करने वाली महिलाओं में बसता है. फिरदौस जैसी महिलाएं ही असल में समाज के सोच को बदल रही हैं – चुपचाप, लेकिन बेहद ताकत के साथ. फिरदौस ने अपने ई रिक्शा पर अपनी जानकारी भी रखी है ताकि मदद करने वाले उनकी मदद करे.
रिपोर्ट: सन्नी कुमार
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