दूल्हा अभी मंडप से उठा भी नहीं था, शादी के फेरे उसने पूरे भी नहीं किए थे कि किस्मत ने ऐसा मोर्चा बदल दिया कि शेरवानी उतरी, वर्दी चढ़ी, और अगले ही दिन दुश्मनों से लोहा लेने निकल गया एक नवविवाहित जवान! शहनाइयों की गूंज अभी घर में बाकी थी, मेहंदी के रंग पत्नी के हाथों पर अभी सूखे भी नहीं थे, कि देश की पुकार आ गई. ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है बिहार के बक्सर जिले के नंदन गांव के त्यागी यादव की. ये कहानी है एक फौजी, एक बेटा, एक नवविवाहित पति… और सबसे पहले, एक सच्चे देशभक्त की.
7 मई को शादी की, 8 मई को बारात लौटी, और 9 मई को चल पड़े जम्मू-कश्मीर की सरहद पर देश की रक्षा करने. ठीक उस वक्त जब भारत और पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर अपने चरम पर था. ऐसे वक्त में जब देश की सीमाएं सुलग रही थीं, त्यागी यादव बिना किसी संकोच के अपनी जिम्मेदारी निभाने चल पड़े. 9 मई को त्यागी यादव जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के संवेदनशील मच्छर सेक्टर के लिए रवाना हो गए.
जवान त्यागी यादव ने रवाना होने से पहले कहा, “देश से बड़ा कुछ नहीं होता. अगर जान भी देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटूंगा.” उनकी ये बातें सुनकर गांव ही नहीं, पूरा सोशल मीडिया भी उनके जज्बे और बलिदान के आगे नतमस्तक हो गया. लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह रही कि जिस दिन त्यागी यादव कश्मीर पहुंचे, उसी दिन भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई. हालांकि यह सैन्य संयोग है लेकिन युद्ध विराम ऐसे समय हुआ कि मानो त्यागी यादव के कदम ही शांति का संदेश लेकर पहुंचे हों. त्यागी यादव की नवविवाहिता पत्नी और परिवार भले ही उनकी अनुपस्थिति को लेकर भावुक हों, लेकिन उन्हें गर्व है कि उनका बेटा देश की सेवा के लिए हर पल तैयार है.
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