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एम्बुलेंस की बजाय कंधों पर टिकी झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था, सड़क के अभाव में बच्चे का शव लेकर पैदल चलने को मजबूर हुआ पिता

Jharkhand News: झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली एक बार फिर सामने आई है. इस बार, सड़क के अभाव में एक पिता को अपने 8 साल के बेटे का शव कंधे पर उठाकर मीलों पैदल चलना पड़ा, ताकि वह एम्बुलेंस तक पहुच सके. यह दिल दहला देने वाली घटना चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड की है, जहा कुब्बा गाव के निवासी भोला गंझू ने अपने बेटे अजय कुमार को खो दिया.

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एम्बुलेंस की बजाय कंधों पर टिकी झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था, सड़क के अभाव में बच्चे का शव लेकर पैदल चलने को मजबूर हुआ पिता
Rupak Mishra|Updated: Aug 01, 2025, 04:16 PM IST
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Jharkhand News: झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली एक बार फिर सामने आई है. इस बार, सड़क के अभाव में एक पिता को अपने 8 साल के बेटे का शव कंधे पर उठाकर मीलों पैदल चलना पड़ा, ताकि वह एम्बुलेंस तक पहुच सके. यह दिल दहला देने वाली घटना चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड की है, जहा कुब्बा गाव के निवासी भोला गंझू ने अपने बेटे अजय कुमार को खो दिया. कुब्बा गाव, जहाआदिम जनजाति जैसे बिरहोर, गंझू और भोक्ता समुदाय के लोग रहते हैं, योगीयारा के बाबा कुटी मंदिर से शुरू होने वाले घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ों के बीच स्थित है. इस गाव तक पहुचने के लिए कोई सड़क नहीं है, जिसके कारण आपातकालीन स्थिति में एम्बुलेंस या कोई अन्य वाहन नहीं पहुच पाता.

यह घटना बीते गुरुवार की है, जब 8 वर्षीय अजय कुमार अपने दोस्तों के साथ स्कूल से लौटते समय नहाने के लिए एक तालाब में गया था। नहाते समय अचानक उसका पैर फिसल गया और वह गहरे पानी में डूब गया। जब तक गाव के लोग उसे बचाने पहुचते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दुर्भाग्यवश, गाव तक सड़क न होने के कारण एम्बुलेंस गाव के अंदर नहीं पहुच पाई। एम्बुलेंस को योगीयारा मुख्य मार्ग पर ही रुकना पड़ा। ऐसे में, भोला गंझू को अपने मृत बेटे का शव अपने कंधों पर उठाकर कई किलोमीटर पैदल चलकर एम्बुलेंस तक लाना पड़ा। यह दृश्य न केवल हृदय विदारक था, बल्कि इसने एक बार फिर झारखंड की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी.

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यह प्रतापपुर में हुई पहली घटना नहीं है। सड़क के अभाव में लोगों को जान गवानी पड़ी है। हाल ही में, प्रतापपुर प्रखंड मुख्यालय से सिर्फ 1 किलोमीटर दूर भोगड़ा गाव में एक गर्भवती महिला की मौत हो गई थी, क्योंकि एम्बुलेंस उसके घर तक नहीं पहुच पाई थी। इसी तरह की एक और घटना सिद्दीकी पंचायत के घोर नक्सल क्षेत्र हिंदीयखुर्द में हुई थी, जहा प्रसव पीड़ा से तड़प रही एक आदिवासी महिला को खाट पर ले जाना पड़ा था. उस महिला ने खाट पर ही बच्चे को जन्म दिया था.

इस घटना के बाद, प्रशासन ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराया है और सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता राशि भोला गंझू के परिवार को देने का आश्वासन दिया है। हालाकि, यह सहायता राशि उस दुख को कम नहीं कर सकती जो एक पिता ने अपने बेटे के शव को कंधों पर ढोते हुए महसूस किया होगा. इन घटनाओं से यह सवाल उठता है कि आखिर कब तक झारखंड के दूर-दराज के गावों में रहने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहेंगे? सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण जान गंवाना क्या उनकी नियति बन गई है? कुब्बा जैसे गावों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाना अब समय की मांग है. इस दुखद घटना ने एक बार फिर सरकार और प्रशासन को यह सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर कब तक झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था एम्बुलेंस की बजाय लोगों के कंधों पर टिकी रहेगी.

इनपुट: धर्मेन्द्र पाठक

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