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Kesaria Assembly Seat: केसरिया सीट पर 2020 में JDU ने मारी थी बाजी, 2025 में कैसा रहेगा समीकरण? समझिए

Kesaria Assembly Seat: बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से एक पूर्वी चंपारण जिले की केसरिया विधानसभा सीट इस बार भी चर्चाओं में बना है. पिछली बार यानी 2020 में जेडीयू की जीत हुई थी, ऐसे में इस बार यहां का सियासी समीकरण कैसा रहेगा? समझिए इस खबर में.

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केसरिया विधानसभा सीट
केसरिया विधानसभा सीट
Shubham Raj|Updated: Aug 05, 2025, 11:54 PM IST
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Kesaria Assembly Seat: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है और इस बार पूर्वी चंपारण की केसरिया विधानसभा सीट पर राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है. 268,733 मतदाताओं वाली यह सीट इस बार खास तौर पर सुर्खियों में है, जहां विकास के वादे और ज़मीनी सच्चाई के बीच जनता का मूड तय करेगा कि इस बार किसे मिलेगा जनादेश. केसरिया सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है और यहां ग्रामीण मतदाताओं का वर्चस्व है. कुल मतदाताओं में से 95% से अधिक ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, जबकि शहरी मतदाता केवल 5% के आसपास हैं. इसके अलावा, मुस्लिम मतदाता (13.9%) और अनुसूचित जाति (11.4%) भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

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पिछला चुनाव और वर्तमान विधायक
2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल (यू) की शालिनी मिश्रा ने 40,093 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी. उनके मुख्य प्रतिद्वंदी रहे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संतोष कुशवाहा, जिन्हें 30,741 वोट मिले थे. 2015 में यह सीट राजद के डॉ. राजेश कुमार के पास थी, जबकि 2010 में भाजपा के सचिंद्र प्रसाद सिंह यहां से जीते थे. पिछले सात प्रमुख चुनावों में भाजपा को पांच बार बढ़त मिली है, लेकिन 2020 में सीट जदयू के पास चली गई.

जनता की समस्याएं और मुद्दे
केसरिया की जनता आज भी बाढ़ और सुखाड़, सड़क की बदहाली, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपराध जैसी समस्याओं से जूझ रही है. इसके अलावा, केसरिया का ऐतिहासिक बौद्ध स्तूप, जो विश्व का सबसे ऊंचा माना जाता है, अभी तक उचित संरक्षण और प्रचार से वंचित है. स्थानीय लोग मानते हैं कि राजनेताओं की उपेक्षा के कारण यह धरोहर अपनी चमक खोता जा रहा है.

चुनावी समीकरण
विधानसभा चुनाव 2025 में इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय या बहुकोणीय होने की संभावना है. भाजपा, जदयू और राजद के साथ-साथ लोजपा और अन्य दल भी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं. मुस्लिम और अनुसूचित जाति मतदाता जहां विपक्ष के लिए अवसर बन सकते हैं, वहीं ग्रामीण मतदाता किसी भी दल की किस्मत बदल सकते हैं. 

बता दें कि 2020 में मतदान प्रतिशत 56.52% रहा था, जो दर्शाता है कि मतदाता अब भी उदासीन हैं या निराश. ऐसे में इस बार किसे टिकट मिलता है और कौन किस मुद्दे पर जनता को साधता है, यह देखना दिलचस्प होगा. केसरिया की जनता अब बदलाव चाहती है, और इस बार मुद्दा केवल पार्टी नहीं बल्कि 'काम किसने किया, और वादा किसने निभाया' पर टिकेगा. आने वाला चुनाव इस ऐतिहासिक विधानसभा क्षेत्र की दिशा तय करेगा.

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