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जब इंदिरा गांधी कैबिनेट में राज्यमंत्री पद की शपथ लेने से कर दिया था इनकार, ऐसे थे गोड्डा के भागवत झा

Bhagwat Jha Azad: भागवत झा की गुलामी से लड़ने की जीवटता देखिए पढ़ाई की चिंता नहीं की, जबकि वह बेहतरीन छात्र थे और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े. भागवत झा ने इस देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की लाठियां खाई, जेल की यातना को सहा. रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का उनके मन पर गहरा प्रभाव था.

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भागवत झा (File Photo)
भागवत झा (File Photo)
Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Oct 04, 2024, 06:47 AM IST
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Bhagwat Jha: झारखंड के गोड्डा जिले के मेहरमा प्रखंड स्थित एक गांव पड़ता है, नाम है कसबा. गांव छोटा नहीं है लेकिन, विकास की बयार से ज्यादा इस गांव को शिक्षा और सामाजिक शुचिता ने बड़ा बना दिया. इसी गांव की मिट्टी में पैदा हुआ एक बच्चा भागवत झा, कौन जानता था कि वह एक दिन इस देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की लाठियां खाएगा, जेल की यातनाएं सहेगा. फिर आजादी के बाद जब देश को एक नेतृत्व की जरूरत होगी, खासकर उसके प्रदेश को तो वह राजनीति की काल कोठरी में कदम तो रखेगा, लेकिन बेदाग निकल आएगा.

कहानी है 28 नवंबर, 1922 को झारखंड के गोड्डा जिले के मेहरमा प्रखंड स्थित कसबा गांव में जन्मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर राजनेता, साहित्यकार और समाजसेवी भागवत झा आज़ाद की. बिहार की राजनीति में 'शेर-ए-बिहार' के नाम से चर्चित भागवत झा आज़ाद जितने बेहतरीन राजनेता थे, उतने ही शानदार साहित्यकार. 'मृत्युंजयी' उनकी लिखी किताब है. जिसमें उन्होंने लोक दृष्टि विकसित करने के लिए जन संघर्ष को अनिवार्य माना. यह जीवन मूल्यों के प्रति आस्था जगाने वाली किताब है.

भागवत झा की गुलामी से लड़ने की जीवटता देखिए पढ़ाई की चिंता नहीं की, जबकि वह बेहतरीन छात्र थे और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े. परिस्थितियां कैसी भी रही, अपने मनोबल को गिरने नहीं दिया. यहीं से 'आज़ाद' शब्द उनके नाम के साथ जुड़ गया. रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का उनके मन पर गहरा प्रभाव था. देश आजाद हुआ तो उन्होंने राजनीति को नहीं राजनीति ने उन्हें चुना. समाज में लोकप्रियता इतनी थी कि गोड्डा से सांसद बने. फिर भागलपुर से सांसद बने. वह 6 बार सांसद रहे. इन्दिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे. 14 फरवरी, 1988 से 10 मार्च, 1989 तक अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री रहे.

इंदिरा गांधी के सबसे करीबी और उनकी सरकार में मंत्री रहे भागवत झा के आज़ाद ख्याल होने का अंदाजा इस बात से लगाइए कि उन्होंने इंदिरा के कैबिनेट में राज्य मंत्री का दर्जा संभाला था. लेकिन, एक बार फिर उन्हें इसी राज्यमंत्री पद की शपथ दिलाया जाना तय हुआ तो उन्होंने शपथ लेने से साफ इंकार कर दिया था और समारोह से बिना कुछ बोले खिसक गए थे.

ठसक इतनी कि राजीव गांधी ने जब उन्हें बुलाया और कहा कि बिहार के हालात ठीक नहीं है, आप वहां जाइए और बिहार संभालिए, मैं यहां आपके बेटे को एडजस्ट कर लूंगा तो उन्होंने कहा कि पटना तो मैं चला जाऊंगा बिहार भी संभाल लूंगा लेकिन, बेटे को एडजस्ट करने वाली बात मुझे मत बोलिए, मैं वैसा आदमी नहीं हूं, जिसकी सोच सिर्फ अपने परिवार तक सीमित होती है.

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ये तो राजनीतिक सफर चल रहा था. लेकिन, आज़ाद के अंदर का साहित्यकार तो अभी भी उमड़ता था. महादेवी वर्मा से उनका संवाद और पत्राचार लगातार होता था. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' के साथ उनके संबंध बेहद आत्मीय थे. धर्मवीर भारती, योगेन्द्र सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, कन्हैयालाल नन्दन, डॉ. रघुवंश सरीखे साहित्यकारों से उनका आत्मीय सरोकार था. 4 अक्टूबर, 2011 को भागवत झा आज़ाद का निधन हो गया.

इनपुट: आईएएनएस

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