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Jamui News: हेल्थ सिस्टम फेल! ना इलाज के लिए, ना मौत के बाद मिला एंबुलेंस, ठेले पर शव को ले गए परिजन

Jamui News: बिहार में ‘वर्ल्ड क्लास’ स्वास्थ्य व्यवस्था के सरकारी दावों की हकीकत एक बार फिर बेनक़ाब हो गई. जमुई के सदर अस्पताल के बाहर गुरुवार को एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसने सिस्टम की संवेदनहीनता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए.

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जमुई में हेल्थ सिस्टम बदहाल
जमुई में हेल्थ सिस्टम बदहाल
Shubham Raj|Updated: Aug 08, 2025, 11:26 PM IST
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Jamui News: बिहार के जमुई जिले में एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई, जब गुरुवार को सदर अस्पताल परिसर के बाहर एक अत्यंत पीड़ादायक दृश्य ने पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े कर दिए. महिसौड़ी मोहल्ला निवासी मोहम्मद अख़्तर की 65 वर्षीय पत्नी की तबीयत पिछले कुछ समय से खराब चल रही थी. उनका इलाज कोलकाता के एक निजी अस्पताल में हो रहा था. बुधवार रात वह कोलकाता से घर लौटी थीं, लेकिन गुरुवार की सुबह उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी. घबराए परिजनों ने तत्काल एंबुलेंस बुलाने के लिए कॉल करना शुरू किया, लेकिन कई घंटों की कोशिश के बावजूद हेल्पलाइन नंबर लगातार बिजी रहा और कोई वाहन नहीं मिल पाया.

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इस आपात स्थिति में परिजन बेबस हो गए और मजबूरी में पड़ोस से एक तीन पहिया ठेला मंगाया. उसी पर महिला को बैठाकर अस्पताल लाया गया. अस्पताल की इमरजेंसी यूनिट में डॉक्टरों ने जांच के बाद महिला को मृत घोषित कर दिया. लेकिन उनके दुखों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ. मौत के बाद जब शव वाहन की आवश्यकता पड़ी, तब भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली. अस्पताल प्रबंधन की ओर से उन्हें इधर-उधर दौड़ाया गया. कभी कहा गया कि जीविका काउंटर पर जाएं, तो कभी 102 नंबर डायल करने की सलाह दी गई. परिजन कागजी प्रक्रियाओं में उलझते रहे और अंततः उन्हें शव वाहन नहीं मिला. अंत में थक-हारकर महिला के शव को उसी ठेले पर रखकर वे वापस घर ले गए.

यह घटना न सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि इस बात को भी उजागर करती है कि 'वर्ल्ड क्लास' स्वास्थ्य सेवाओं का दावा सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित है. इस घटना के बाद मीडिया ने जब परिजनों से बात करनी चाही, तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. वे बेहद आक्रोशित और टूटे हुए नज़र आए.

वहीं, मामले पर सफाई देते हुए अस्पताल प्रबंधक रमेश पांडेय ने कहा, 'मरीज का इलाज पहले एक निजी अस्पताल में चल रहा था और वहीं से उसे ठेले पर लादकर लाया गया था. परिजनों की तरफ से एंबुलेंस या शव वाहन की कोई मांग नहीं की गई थी. अगर कहा जाता, तो हम तुरंत व्यवस्था कर देते.' हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि परिजनों ने लगातार प्रयास किया, लेकिन सिस्टम से कोई सहायता नहीं मिल सकी. यह घटना राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत को उजागर करती है और अधिकारियों की जवाबदेही पर सवाल खड़े करती है.

इनपुट- अभिषेक निरला

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