खूंटी: झारखंड के खूंटी जिले के तारुब गांव में इस समय भीषण गर्मी के बीच पेयजल संकट गहराता जा रहा है. करीब सौ घरों वाले इस गांव में दो साल पहले सोलर जलमीनार का निर्माण कराया गया था, लेकिन गुणवत्ता की कमी के कारण वह लंबे समय से खराब पड़ा है. नतीजतन, गांव के लोगों को पीने और खाने के लिए जरूरी पानी की व्यवस्था पुराने पारंपरिक तरीकों से करनी पड़ रही है.
ग्रामीणों के अनुसार, उन्हें रोजाना सुबह और शाम गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर खेतों के बीच बनी डाड़ी से पानी लाना पड़ता है. तेज गर्मी और गिरते जलस्तर के बीच यह कार्य और भी कठिन हो गया है. गांव की महिला सरस्वती देवी बताती हैं कि “तारुब में न कुआं है, न चापाकल और न ही डाड़ी जैसी कोई सुविधा. ऐसे में पीने के पानी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.”
गांव में चापाकल तक नहीं होने के कारण ग्रामीणों को सार्वजनिक पेयजल सुविधा से पूरी तरह वंचित रहना पड़ रहा है. संदीप मुंडा ने बताया कि “पानी लाने के लिए जंगल की ओर जाना पड़ता है और वहां बाघ के देखे जाने की अफवाह से लोग डरे हुए हैं. फिर भी सुबह-शाम पानी लाना मजबूरी बन गई है.”
लेपो मुंडा ने भी जल संकट की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा कि “जलमीनार दो वर्षों से बंद है और गांव में कोई अन्य वैकल्पिक सुविधा नहीं है. महिलाएं किसी तरह पानी लाती हैं, लेकिन सारे काम के लिए पानी की भारी किल्लत बनी हुई है.”
इस मुद्दे पर उपायुक्त लोकेश मिश्रा का कहना है कि कुछ जलमीनार पहले बनाए गए थे और कुछ बाद में. सभी सोलर जलमीनारों की मरम्मत और देखरेख जरूरी है, जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों की मदद से आर्थिक सहयोग लेकर मरम्मत का कार्य किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि इस दिशा में प्रशासन सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है.
रिपोर्ट- ब्रजेश कुमार
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