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इट्स अ नीतीश कुमार स्टाइलः जिसको मजबूत बनाते हैं, उसी से दुश्मनी मोल ले लेते हैं नीतीश कुमार

Nitish Kumar Politics: कोई भी व्यक्ति अपने दुश्मन को कमजोर करके लड़ता है. हर आदमी चाहता है कि उसका दुश्मन कमजोर हो, ताकि उसे आसानी से मात दिया जा सके, लेकिन नीतीश कुमार ऐसे विरले व्यक्तित्व के धनी हैं, जो चाहते हैं उनका दुश्मन भी उनकी तरह बराबरी का हो.

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फाइल फोटो
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Gangesh Thakur|Updated: Jan 28, 2024, 06:17 PM IST
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पटना: Nitish Kumar Politics: कोई भी व्यक्ति अपने दुश्मन को कमजोर करके लड़ता है. हर आदमी चाहता है कि उसका दुश्मन कमजोर हो, ताकि उसे आसानी से मात दिया जा सके, लेकिन नीतीश कुमार ऐसे विरले व्यक्तित्व के धनी हैं, जो चाहते हैं उनका दुश्मन भी उनकी तरह बराबरी का हो. अगर दुश्मन बराबरी का नहीं होता है तो नीतीश कुमार खुद पहल करके पहले उसे मजबूत बनाते हैं और फिर उसी के साथ अदावत रखते हैं और फिर मुकाबला भी करते हैं. सबसे बड़ी बात यह कि उसके बाद भी वह फतह हासिल करते हैं. यह नीतीश कुमार ही कर सकते हैं. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके लिए आपको नीचे ब्यौरा भी दे रहे हैं. 

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लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाने में बड़ी भूमिका 

कहते हैं, 1990 में जब बिहार में जनता दल को बहुमत मिला था और मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान चल रही थी, तब नीतीश कुमार ने मुखर तरीके से लालू प्रसाद यादव को समर्थन दिया था. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक साथ ही पढ़े थे और दोनों नेताओं ने जेपी के आंदोलन से अपनी राजीतिक करियर की शुरुआत की थी. जाहिर है लालू प्रसाद यादव से उनकी राजनीतिक अदावत भी रही होगी. बावजूद इसके उन्होंने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में बड़ी भूमिका अदा की. लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री बन गए, उसके चौथे-पांचवें साल में नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर उनसे बगावत की और समता पार्टी की नींव रखी. समता पार्टी बनाने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में लालू प्रसाद यादव को चुनौती दी और लगातार उनके खिलाफ मुखर रहे. 

2005 में बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार

2005 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को अपार बहुमत मिला और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाए गए. सरकार चलती रही. हालत यह हो गई कि विपक्ष लगातार कमजोर होता चला गया. उसके बाद नीतीश कुमार ने पीएम मोदी के नाम पर भाजपा से नाता तोड़ लिया. उस समय लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बेहद कमजोर हालत में था और उसके एक से एक बड़े नेता पार्टी छोड़कर जेडीयू में शामिल हो रहे थे. तब उन्होंने भाजपा से लोहा ले लिया और 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले कूद गए. उस समय 40 में से जेडीयू के केवल 2 सांसद जीते और उसके बाद 2015 में उन्होंने लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से हाथ मिला लिया. यह वो समय था, जब राजद सबसे बुरे हालत में था. उसे जेडीयू का बड़ा सहारा मिल गया और उसके बाद जेडीयू लगातार कमजोर होती चली गई. उसके बाद 2017 में नीतीश कुमार ने राजद को छोड़कर एक बार फिर भाजपा के साथ हाथ मिला लिया.

2019 और 2020 भाजपा के साथ मिलकर लड़े 

2019 और 2020 में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ क्रमशः लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा. राजद ने 2020 के विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर दी थी लेकिन उसके बाद राजद को सत्ता नहीं मिलने का नुकसान होने लगा तो नीतीश कुमार ने एक बार फिर 2022 के अगस्त महीने में एक बार फिर राजद का हाथ थाम लिया. यही नहीं, मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता के सूत्रधार भी नीतीश कुमार बने और इंडिया के रूप में एक देशव्यापी गठबंधन तैयार करने में केंद्रीय भूमिका निभाई. अब जबकि इंडिया के रूप में विपक्ष को एक मंच मिल गया है तो नीतीश कुमार ने एक बार फिर भाजपा का हाथ थाम लिया है. इस तरह यह कहने में संकोच नहीं करना चाहिए कि नीतीश कुमार भले ही 9वीं बार मुख्यमंत्री बन गए हों, लेकिन राजनीतिक पंडित भी इस बात से चकित होंगे कि कैसे नीतीश कुमार खुद को कमजोर करके दूसरों को मजबूत करने की राजनीति करते चले आ रहे हैं. जब से नीतीश कुमार ने पलटीमार राजनीति शुरू की है, तब से वे लगातार कमजोर होते चले जा रहे हैं. खुद नीतीश कुमार को भी इसका भान होगा, पर पूर्व में की गई गलतियों पर केवल पछताया जा सकता है, उस गलती को दुरुस्त करने का समय जा चुका होता है.

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