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Khajauli Vidhan Sabha Seat: खजौली में पिछली बार खिल गया था 'कमल', क्या इस बार 'MY समीकरण' साध पाएगी RJD?

Khajauli Vidhan Sabha Chunav: साल 2008 के परिसीमन से पहले यह इलाका मधुबनी की दूसरी विधानसभा सीटों के अंतर्गत आता था. परिसीमन के बाद खजौली को अलग विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया.

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खजौली विधानसभा सीट
खजौली विधानसभा सीट
K Raj Mishra|Updated: Aug 10, 2025, 03:15 PM IST
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Khajauli Assembly Seat Profile: बिहार के मधुबनी जिले की खजौली विधानसभा सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला होने वाला है. यह सीट झंझारपुर संसदीय क्षेत्र के अंदर आती है और इसी क्षेत्र के मंगनीलाल मंडल को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठा रखा है. हाल ही में खजौली के पूर्व विधायक ब्रज किशोर यादव भी राजद में शामिल हुए हैं. लिहाजा, इस सीट पर राजद की साख दांव पर लगी हुई है. वहीं बीजेपी के अरुण शंकर प्रसाद ने पिछली बार इस सीट को राजद से छीनकर यहां कमल खिला दिया था. बीजेपी अपनी जीती हुई सीट को कभी गंवाना नहीं चाहेगी. खजौली के राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो यहां हमेशा से ही बीजेपी और राजद के बीच कांटे का मुकाबला होता रहा है, लेकिन इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी चुनावी मैदान में होगी. जन सुराज का कैंडिडेट मामले को त्रिकोणीय कर सकता है.

सियासी इतिहास

इस सीट पर 1951 में पहली बार चुनाव हुए थे और उस वक्त कांग्रेस के शकूर अहमद को जीत हासिल हुई थी. शकूर अहमद यहां से लगातार तीन (1951, 1957 और 1962) बार विधायक रहे. 1967 और 1969 में दोनों बार पीएसपी कैंडिडेट नर्मदेश्वर सिंह आजाद को जीत मिली. 1972 में कांग्रेस कैंडिडेट महेंद्र नारायण झा ने बाजी मारी. 1977 में इस सीट से जनता पार्टी के राम करण पासवान विधायक बने. 1980 में सीपीआई के राम लषण राम रमण को जीत मिली.

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इसके बाद 1985 और 1990 में फिर से यह सीट कांग्रेस के खाते में गई. दोनों बार विलायत पासवान को जीत मिली थी. 2005 से बीजेपी मजबूत हुई. 2005 में फरवरी और अक्टूबर में हुए दोनों चुनावों में यह सीट बीजेपी कैंडिडेट रामप्रीत पासवान के खाते में गई. 2010 में बीजेपी कैंडिडेट अरुण शंकर प्रसाद जीते. 2015 में राजद के सीताराम यादव विधायक चुने गए थे. लेकिन 2020 के चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट अरुण शंकर प्रसाद ने बाजी पलट दी थी.

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जातीय समीकरण

इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी वर्ग का वोट काफी निर्णायक होता है. यहां के अधिकतर बूथ नेपाल सीमा के नजदीक पड़ते हैं, जिससे सुरक्षा और प्रशासनिक मुद्दे भी प्रमुख रहते हैं. बीते कुछ चुनावों को देखें तो इस सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली है. यहां स्थानीय उम्मीदवारों का व्यक्तिगत प्रभाव और जातीय संतुलन ही जीत-हार तय करता है.

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