पटना: हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण का बहुत महत्व है, क्योंकि यह अपने पितरों (पूर्वजों) के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका है. आचार्य मदन मोहन के अनुसार श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है. पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है.
आचार्य मदन मोहन के अनुसार श्राद्ध का उद्देश्य पितरों की आत्मा को संतुष्ट करना है. मान्यता है कि यदि पितरों का आशीर्वाद न मिले, तो परिवार के सदस्यों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों में भी श्राद्ध और तर्पण का उल्लेख है, जिसमें बताया गया है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से पितरों को जल, अन्न और अन्य सामग्री अर्पित की जाती है, जिससे उनकी आत्मा तृप्त होती है.
आचार्य मदन मोहन के अनुसार, भारतीय शास्त्रों में तीन ऋण बताए गए हैं: देव ऋण, मनुष्य ऋण और पितृ ऋण. जितना जरूरी देव पूजन है, उतना ही जरूरी पितरों के लिए श्राद्ध करना भी है. सभी 18 महापुराणों में श्राद्ध, तर्पण और पितरों की पूजा का महत्व बताया गया है. विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण और अन्य पुराणों में पितरों के श्राद्ध और तर्पण की विधियां विस्तार से बताई गई हैं. इनमें यह कहा गया है कि पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए श्राद्ध और तर्पण करना आवश्यक है. इससे पितर संतुष्ट होते हैं और परिवार में खुशहाली आती है.
यदि श्राद्ध नहीं किया जाए तो पितरों की आत्मा असंतुष्ट रह सकती है, जिससे परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. पंडित पंकज मेहता बताते हैं कि पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध, जैसे एकोदिष्ट श्राद्ध, नित्य श्राद्ध, और महालय श्राद्ध, सभी समय-समय पर करना चाहिए. यदि पितर संतुष्ट नहीं होते, तो वे अपने परिवार के लोगों पर प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे जीवन में परेशानियां आ सकती हैं. अतः श्राद्ध और तर्पण करना हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कर्तव्य का प्रतीक है, जिससे परिवार में शांति और समृद्धि बनी रहती है.
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