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बिहार में दलित वोट बैंक पर कब्जे के लिए चिराग-मांझी में लगी होड़, बीजेपी खामोश

Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में तनाव बढ़ रहा है. एलजेपी (आर) के अध्यक्ष चिराग पासवान अपनी ही गठबंधन सरकार पर निशाना साध रहे हैं, जबकि जवाब में सहयोगी जीतनराम मांझी और उनके बेटे उनसे भिड़ रहे हैं. दोनों के बीच 19.65% दलित वोट बैंक, खासकर पासवान और मुसहर समुदाय, को लेकर होड़ है.

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चिराग पासवान - जीतन राम मांझी
चिराग पासवान - जीतन राम मांझी
Saurabh Jha|Updated: Aug 01, 2025, 03:38 PM IST
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(लेखक:आदित्य पूजन): बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले अजीब नजारा देखने को मिल रहा है. खासकर एनडीए में. एलजेपी (आर) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपने ही गठबंधन की सरकार पर बार-बार निशाना साध रहे हैं. इससे भी ताज्जुब की बात है कि उन्हें जवाब सीएम नीतीश कुमार की ओर से नहीं, बल्कि गठबंधन के ही सहयोगी जीतनराम मांझी से मिल रहा है. दोनों के बीच वाक् युद्ध लगातार जारी है. अब तो जीतनराम मांझी के बेटे ने भी चिराग को चुनौती दे दी है कि दम हो तो केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा देकर बिहार आएं. दो सहयोगी दलों के बीच इस तरह के रिश्ते गठबंधन के लिहाज से ठीक नहीं हैं, लेकिन जब मौसम चुनावी हो और लड़ाई बिहार के दलित वोट बैंक को लेकर हो तो मामला गंभीर हो जाता है.  
 
चिराग ने मांझी से मोड़ा मुंह
2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार के गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हुए थे. गया केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी का गढ़ है. उन्होंने अपनी बहू दीपा मांझी को मैदान में उतारा तो आरजेडी और प्रशांत किशोर की जन सुराज ने मांझी को शिकस्त देने के लिए कमर कस ली. कड़े मुकाबले को देखते हुए मांझी ने चिराग पासवान से बहू के पक्ष में प्रचार करने का आग्रह किया. कई बार संदेश भेजने के बाद भी वो नहीं आए. चिराग इस बात से नाराज थे कि मांझी उनके चाचा पशुपति कुमार पारस से नजदीकियां बढ़ा रहे थे. रिश्तों की ये तल्खी तब से बरकरार है और चुनाव नजदीक आने पर इसकी गर्माहट बढ़ जाती है क्योंकि दोनों की नजर एक ही वोट बैंक पर है.

बिहार में 19 फीसदी से ज्यादा दलित वोटर
बिहार में करीब 19.65 फीसदी दलित वोटर हैं, लेकिन ये उपजातियों में बंटे हुए हैं. वैसे तो दलितों की 22 जातियां हैं, लेकिन पासवान,रविदास और मुसहर की आबादी सबसे अधिक है. 2023 की जातिगत जनगणना के मुताबिक दलितों में पासवान  5.31% और रविदास 5.26% है, जबकि मुसहर 3 फीसदी है. रामविलास पासवान बिहार में पासवानों के सबसे बड़े नेता रहे हैं. अब इस जाति का नेता चिराग पासवान को माना जाता है. मुसहर समाज पर जीतनराम मांझी की मजबूत पकड़ है. रविदास समाज पर बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव माना जाता है, लेकिन ये कई बार महागठबंधन को भी समर्थन कर चुका है.

बंटते रहे हैं दलितों के वोट
चिराग और मांझी के बीच बिहार में दलितों का सबसे बड़ा नेता बनने की होड़ लगी है, जबकि इस वोट बैंक पर दूसरी पार्टियों की भी नजर है. कांग्रेस, आरजेडी, बीजेपी, जन सुराज- सभी दलितों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं. 2005 में बिहार की सत्ता पर काबिज हुए नीतीश कुमार ने तो राम विलास पासवान की दलित पॉलिटिक्स की काट निकालने के लिए दलितों को दो जातियों में बांट दिया. 22 में से 21 जातियों को उन्होंने महादलित में शामिल कर दिया. पिछले 20 सालों से नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग गैर-यादव ओबीसी और महादलित के इर्द-गिर्द घूमती रही और उनकी सत्ता को बनाए रखने में सबसे अहम भूमिका निभाई.  हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश को तगड़ा झटका लगा. उनकी पार्टी जेडीयू अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित केवल 8 सीटें ही जीत सकी. इसके बाद माना जा रहा है कि महादलित अब नीतीश के साथ नहीं हैं. यानी ये वोट बैंक अभी अनिश्चय की हालत में है. चिराग और मांझी के बीच बतकही की यही बड़ी वजह मानी जा रही है. दोनों इस पर कब्जा कर सूबे में दलितों का सबसे बड़ा नेता बनने की जल्दी में हैं, लेकिन पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि उनकी दावेदारी अकेली नहीं है. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग की पार्टी को 5.8 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन वह केवल एक सीट जीत सकी थी. मांझी की पार्टी को वोट एक प्रतिशत से भी कम मिला, लेकिन चार सीटों पर जीत हुई थी.

एनडीए की मुसीबत
चिराग या मांझी दलित वोट बैंक को अपने पाले में कर पाएं या नहीं, लेकिन इतना तय है कि दोनों के बीच वाक् युद्ध एनडीए के लिए अच्छी खबर नहीं है. 2015 के बिहार विधानसभा में एनडीए के पास  चिराग पासवान और जीतनराम मांझी दोनों थे. इसके बावजूद यह गठबंधन दलित पॉलिटिक्स की पिच पर पिछड़ गया था. आरजेडी और जेडीयू के महागठबंधन ने कुल 40 में से 24 सुरक्षित सीटें जीत ली थीं. बीजेपी पांच और मांझी की पार्टी केवल एक सीट ही जीत सकी थी. मांझी और चिराग की बयानबाजी के बीच बीजेपी की चुप्पी की शायद यही वजह है.

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