trendingNow/india/bihar-jharkhand/bihar01376167
Home >>पटना

इस शख्स के कहने पर महात्मा गांधी ने रखा था चंपारण की धरती पर कदम, जानें कैसे माने थे बापू

Mahatma Gandhi Jyanti: गांधी जयंति पर बात उस शख्स की जिसने महात्मा गांधी को बिहार के चंपारण आने के लिए मनाया. गांधी नहीं मान रहे थे, लेकिन, उसकी जिद के आगे गांधी हार गए और उन्होंने चंपारण का सत्याग्रह चलाया

Advertisement
इस शख्स के कहने पर महात्मा गांधी ने रखा था चंपारण की धरती पर कदम,  जानें कैसे माने थे बापू
Amita Kishor|Updated: Oct 01, 2022, 10:59 PM IST
Share

पटनाः Mahatma Gandhi Jyanti: गांधी जयंति पर बात उस शख्स की जिसने महात्मा गांधी को बिहार के चंपारण आने के लिए मनाया. गांधी नहीं मान रहे थे, लेकिन, उसकी जिद के आगे गांधी हार गए और उन्होंने चंपारण का सत्याग्रह चलाया. साल 1916 में लखनऊ में कांग्रेस का 31वां अधिवेशन चल रहा था. वहां महात्मा गांधी भी आए हुए थे. यहां बिहार के चंपारण से एक सीधा साधा किसान पहुंचा था. जिसका नाम राजकुमार शुक्ल था. राजकुमार शुक्ल खुद भी पश्चिमी चंपारण में किसान थे. अच्छी खासी खेती थी, लेकिन, अंग्रेजों के जुल्म ने किस्मत और नील की खेती ने कमर तोड़ रखी थी. राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी से गुजारिश की कि वो चंपारण चलें और किसानों की व्यथा सुनें. उनके लिए कुछ करें. गांधी आश्वस्त नहीं हुए. लेकिन राजकुमार शुक्ल ने पीछा नहीं छोड़ा. 

हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ा था कष्ट 
अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के पांचवें भाग के बारहवें अध्याय ‘नील का दाग’ में गांधी लिखते हैं, ‘लखनऊ कांग्रेस में जाने से पहले तक मैं चंपारण का नाम तक न जानता था. नील की खेती होती है, इसका तो ख्याल भी न के बराबर था. इसके कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी भी मुझे कोई जानकारी न थी.’ उन्होंने आगे लिखा है, ‘राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वहां मेरा पीछा पकड़ा.  वे मेरा पीछा करते जाते और मुझे अपने यहां आने का निमंत्रण देते जाते.’ बहरहाल लखनऊ में महात्मा गांधी ने राजकुमार शुक्ल से कहा कि फिलहाल वे उनका पीछा करना छोड़ दें.

राजकुमार शुक्ल गांधी को लेकर पहुंचे थे बिहार 
गांधी लखनऊ से कानपुर गए तो राजकुमार शुक्ल पीछे-पीछे कानपुर पहुंच गए. फिर वही गुजारिश-चंपारण चलो. उनका मन रखने के लिए गांधी ने हां तो कह दिया लेकिन, प्रोग्राम अभी बना नहीं था. लिहाजा राजकुमार शुक्ल गांधी का पीछा करते हुए अहमदाबाद पहुंचे और तारीख तय करने की जिद करने लगे. साल था 1917. गांधी ने कहा कि अप्रैल में कलकत्ता आएंगे, तब चंपारण चल पड़ेंगे. इससे पहले कि गांधी कलकत्ता पहुंचते राजकुमार शुक्ल खुद वहां पहुंच गए. इस तरह से राजकुमार शुक्ल गांधी को लेकर बिहार पहुंचे. 

गांधी को सामने अंग्रेजों को झुकना पड़ा
राजकुमार शुक्ल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण मुरली भराहावा ग्राम के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे. इनके पिता का नाम कोलाहल शुक्ल था. इनकी धर्मपत्नी का नाम केवला देवी था. जिनका घर भट्टौलिया, मीनापुर, मुजफ्फरपुर में था. पंडित शुक्ल को सत्याग्रही बनाने में केवला देवी का महत्वपूर्ण योगदान था. उस समय नियम था कि 15% जमीन पर नील की खेती करनी होगी. एक तो अनाज की जगह नील उगाने की मजबूरी, ऊपर से भारी लगान. किसान बेहाल थे. गांधी ने साउथ अफ्रीका से आने के बाद भारत में पहला आंदोलन बिहार के पश्चिमी चंपारण में ही चलाया. अंग्रेजों को झुकना पड़ा. 

गांधी जयंती पर राजकुमार शुक्ल को याद करना जरूरी 
अहिंसक आंदोलन का पहला प्रयोग सफल रहा. बिहार में पश्चिमी चंपारण की प्रयोगशाला में मिली कामयाबी वाला फॉर्मूला गांधी ने पूरे देश में अपनाया. जिसके बूते बाद में पूरे देश को आजादी मिली. गांधी की जो छवि आज देश देखती है वो यहीं आकर बनी. यहीं उन्होंने धोती अपनाई. इसी सफल आंदोलन के बाद उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई. इसी आंदोलन से राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, मजहरूल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद जैसे नेता मिले. आजादी के आंदोलन को लेकर जब बात होती है तो राजकुमार शुक्ल को वो जगह नहीं दी जाती जो दी जानी चाहिए. कई बार उन्हें भारत रत्न देने की मांग उठ चुकी है लेकिन अभी तक ये नहीं हो पाया है. आज जब गांधी जयंति पर महात्मा गांधी को याद कर रहे हैं तो राजकुमार शुक्ल को भी याद करना जरूरी है.

यह भी पढ़े- Mahatma Gandhi Jayanti Thoughts: महात्मा गांधी के ये अनमोल विचार बदल देंगे आपकी जिंदगी, मिलेगी जीवन जीने की नई राह

Read More
{}{}