Patna/पटना: बिहार की साहित्यिक और वैचारिक धरती ने एक बार फिर अपनी उपस्थिति का प्रभावशाली प्रमाण दिया है. बिहार के प्रबुद्ध लेखक और चिंतक मिथिलेश कुमार सिंह की तरफ से लिखित पुस्तक 'अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ' ने साहित्यिक जगत में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है. मिथिलेश की इस पुस्तक ने न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी अपनी बौद्धिक उपस्थिति दर्ज करायी है. सामाजिक न्याय, धर्म और वामपंथी विचारधारा के जटिल अंतर्संबंधों पर केंद्रित यह पुस्तक अब देश के साथ-साथ दुनिया की नामचीन यूनिवर्सिटीज और संस्थानों की लाइब्रेरीज की शेल्फ में शामिल हो चुकी है. प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थानों द्वारा पुस्तक को जगह देना, यह दर्शाता है कि मिथिलेश कुमार सिंह का लेखन वैश्विक शोधकर्ताओं, अकादमिक जगत और वैचारिक बहसों के लिए भी अत्यंत उपयोगी और प्रेरक है. यह उपलब्धि न केवल लेखक के लिए, बल्कि बिहार की वैचारिक परंपरा और साहित्यिक गरिमा के लिए भी गौरव का विषय है.
बिहार की धरती विचारधारात्मक बहसों, समाज सुधार आंदोलनों और बौद्धिक संघर्षों की साक्षी रही है. मिथिलेश कुमार सिंह की यह पुस्तक उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक विमर्श में नयी ऊंचाई देती है. यह न केवल बिहार बल्कि पूरे हिंदी भाषी क्षेत्र के लिए प्रेरणास्पद है कि यहां की लेखनी भी विश्व मंच पर सराही जा सकती है. मिथिलेश की यह पुस्तक अब एक ऐसा बौद्धिक दस्तावेज बन चुकी है, जो आने वाले समय में न केवल शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों, बल्कि नीतिनिर्माताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी. बिहार के एक लेखक की कलम से निकला यह कार्य वैश्विक बौद्धिक मंचों पर भारत की सामाजिक चिंताओं और विचारधारात्मक संघर्षों की गूंज बनकर उभरा है.
मसूरी से हार्वर्ड तक किताब की गूंज
भारत सरकार के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी ने पुस्तक 'अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ' को अपने पुस्तकालय में शामिल किया है. यह वही संस्था है, जहां से भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा जैसे सर्वोच्च सेवाओं के अधिकारी प्रशिक्षित होते हैं. इस संस्थान में किसी पुस्तक का पहुंचना, उसकी वैचारिक गंभीरता और सामाजिक उपयोगिता का संकेत माना जाता है. इसके आलावा देश में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, एआईसीटीई और गोवा सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने भी अपने संग्रह में इस पुस्तक को शामिल किया है.
'अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ' की गूंज सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि विदेशों के विश्वविद्यालयों की पुस्तकालयों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है. अमेरिका की विश्वप्रसिद्ध यूनिवर्सिटियों में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, चैपल हिल जैसे संस्थानों की लाइब्रेरीज ने भी इसे अपने संग्रह में जगह दी है. यह संकेत है कि पुस्तक नीतिगत, सामाजिक और वैचारिक विमर्श के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है. यह पुस्तक अब उन वैश्विक शोधकर्ताओं, शिक्षकों और छात्रों की पहुंच में है, जो सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और वामपंथी आंदोलनों पर काम कर रहे हैं.
विषयवस्तु की गहराई ने पुस्तक को बनाया प्रासंगिक
'अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ' एक बहुस्तरीय वैचारिक विमर्श प्रस्तुत करती है, जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को इस्लाम के सामाजिक पहलुओं और वामपंथी सोच के साथ संवादात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है. यह न सिर्फ ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करती है बल्कि समकालीन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी प्रासंगिक प्रश्न उठाती है. लेखक ने गहराई से अध्ययन कर यह विश्लेषण प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार अंबेडकर का दृष्टिकोण धर्म और वर्ग संघर्ष के साथ जुड़ता है.
यह पुस्तक डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों, इस्लाम धर्म के सामाजिक पहलुओं और वामपंथी विचारधारा के अंतःसंबंधों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है. लेखक ने ऐतिहासिक संदर्भों, सामाजिक न्याय के विमर्श और समकालीन राजनीति को एक वैचारिक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है. यह प्रयास आज के समय में भारतीय समाज में चल रही बहसों के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है.
पुस्तक अंबेडकर के इस्लाम और वामपंथ के प्रति विचारों को स्पष्ट रूप से सामने लाती है और वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनके विचारों की प्रासंगिकता को उजागर करती है. इस पुस्तक ने वैश्विक स्तर पर शैक्षणिक और राजनीतिक हलकों में रुचि उत्पन्न की है, विशेष कर उन क्षेत्रों में जहां अंबेडकर के विचारों पर शोध किया जा रहा है. अंबेडकर इस्लाम और वामपंथ न सिर्फ बाबा साहब अम्बेडकर के इस्लाम और वामपंथ के प्रति उनके विचारों को पाठकों के सामने रखती है, वरन आज की ताजा राजनीति में इस्लाम एवं वामपंथ के नेतृत्व द्वारा अंबेडकर को अपना बनाने के प्रयासों के सतही तर्कों को बिंदुवार ध्वस्त किया है. और, ये बताया है कि अंबेडकर के विचार 'इस्लाम और वामपंथ' दोनों को लेकर कितने स्पष्ट थे, जिससे ये स्थापित होता है कि वे इन दोनों के हिमायती तो बिलकुल भी नहीं थे. इसलिए, इन दोनों खेमों द्वारा अंबेडकर को अपना बताने का प्रयास एक छलावा है, जिससे वे आज की अपनी राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करना चाहते हैं. उनके समकालीन जोगेन्द्रनाथ मण्डल के साथ उनका तुलनात्मक अध्ययन भी इस पुस्तक की महत्ता को बढ़ा देता है.
लेखक की प्रतिक्रिया
इस उपलब्धि पर प्रतिक्रिया देते हुए लेखक मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा, यह सम्मान न केवल मेरे लिए, बल्कि उस सामाजिक चेतना के लिए है, जिसे अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ जैसे विचार प्रवाह पोषित करते हैं. मुझे प्रसन्नता है कि मेरी पुस्तक ने वैश्विक विमर्श में भी अपनी जगह बनायी है. उन्होंने कहा, मेरे लिए यह व्यक्तिगत गौरव से बढ़कर सामाजिक विमर्श की एक स्वीकार्यता है. यह पुस्तक जाति, धर्म और वर्ग आधारित संरचनाओं को समझने और उनके बीच संवाद की संभावनाओं को तलाशने का प्रयास है. इसकी वैश्विक स्वीकृति बताती है कि भारत के सामाजिक मुद्दे अब केवल स्थानीय न होकर वैश्विक शोध और बहस का हिस्सा बन चुके हैं. लेखक मिथिलेश कुमार सिंह गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय में सहायक कुलसचिव के पद पर कार्यरत हैं.
इन संस्थानों, यूनिवर्सिटियों में मिली जगह
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी : वैश्विक शिक्षा और शोध का पर्याय मानी जाती है
यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया : अमेरिका की आइवी लीग यूनिवर्सिटी में से एक
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी : तकनीकी और सामाजिक शोध का वैश्विक केंद्र
यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, चैपल हिल : सामाजिक विज्ञान और मानविकी में अग्रणी
लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी : भारत सरकार का प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान
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गोवा सेंट्रल यूनिवर्सिटी
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर)
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई)
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