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कभी 'ईस्ट का ऑक्सफोर्ड' माना जाता था पटना यूनिवर्सिटी, अब सियासत और हिंसा की भेंट चढ़ रहा संस्थान

कभी ''ईस्ट का ऑक्सफोर्ड'' कही जाने वाली पटना यूनिवर्सिटी आज हिंसा और राजनीति की भेंट चढ़ती नजर आ रही है. यहां छात्रसंघ चुनाव अब शिक्षा के बजाय सियासी गुटबाजी और बाहरी हस्तक्षेप का मैदान बन गए हैं. हाल ही में बमबारी और झड़पों ने इस संस्थान की छवि को और धूमिल कर दिया है.

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सियासत और हिंसा की भेंट चढ़ रहा संस्थान पटना यूनिवर्सिटी
सियासत और हिंसा की भेंट चढ़ रहा संस्थान पटना यूनिवर्सिटी
Saurabh Jha|Updated: Mar 24, 2025, 11:06 PM IST
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पटना यूनिवर्सिटी (PU) एक समय ''ईस्ट का ऑक्सफोर्ड'' के नाम से जानी जाती थी, लेकिन आज यह हिंसा, राजनीति और अशांति का केंद्र बन गई है. 1917 में गंगा नदी के किनारे स्थापित यह विश्वविद्यालय कभी शिक्षा और शोध का केंद्र था, लेकिन अब यहां पढ़ाई से ज्यादा छात्रसंघ चुनावों में बमबाजी और राजनीतिक हस्तक्षेप की चर्चा होती है.

पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना बिहार में उच्च शिक्षा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए की गई थी. शुरुआती दशकों में इसने शोध और शिक्षण में कीर्तिमान स्थापित किए. यहां की लाइब्रेरी, शिक्षकों और छात्रों की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखती थी. यहां से निकले छात्र प्रशासनिक सेवाओं, राजनीति, चिकित्सा और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अग्रणी रहे.

बीते कुछ वर्षों में पटना यूनिवर्सिटी का माहौल पूरी तरह बदल चुका है. शैक्षणिक सुधारों के बजाय यहां अब हिंसा, गुटबाजी और बाहरी दखलअंदाजी बढ़ गई है. छात्रसंघ चुनावों में शिक्षा के मुद्दे गौण हो गए हैं, और राजनीतिक दलों के प्रभाव ने चुनावों को सियासी अखाड़ा बना दिया है.

छात्रसंघ चुनावों का उद्देश्य छात्रों के हितों की रक्षा करना होता है, लेकिन अब यह राजनीतिक दलों के लिए सत्ता का खेल बन गया है. हर पार्टी अपने समर्थित प्रत्याशियों को जिताने के लिए बाहरी हस्तक्षेप कर रही है, जिससे यूनिवर्सिटी कैंपस में असामाजिक तत्वों की बढ़ती सक्रियता देखी जा रही है.

हाल ही में पटना यूनिवर्सिटी में हुई हिंसक झड़पों और बमबारी ने इस प्रतिष्ठित संस्थान की छवि को धूमिल कर दिया है. छात्र गुटों के बीच आए दिन झड़पें हो रही हैं, और कई बार मामला प्रशासन और पुलिस तक पहुंच चुका है. इससे न सिर्फ पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बल्कि अभिभावकों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं.

यूनिवर्सिटी के शिक्षकों का मानना है कि यदि सभी पक्ष मिलकर प्रयास करें, तो पटना यूनिवर्सिटी को पुराने गौरव पर वापस लाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है कि शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए और बाहरी राजनीतिक प्रभाव को खत्म किया जाए.

पटना यूनिवर्सिटी को फिर से ''ईस्ट का ऑक्सफोर्ड'' बनाने के लिए प्रशासन, छात्र और समाज को मिलकर काम करना होगा. छात्रसंघ चुनावों में शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं को प्राथमिकता देनी होगी, न कि बाहरी राजनीतिक एजेंडे को. यदि सही कदम उठाए गए, तो यह विश्वविद्यालय अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सकता है.

इनपुट- सनी कुमार

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