Shani Dev: शनि देव को न्यायप्रिय और कर्मप्रधान देवता माना जाता है. शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के समय लोग अक्सर कठिनाइयों का सामना करते हैं, लेकिन 'शनि रोहिणी शकट भेदन' इन सभी से भी अधिक कष्टदायक और विनाशकारी माना जाता है.
आचार्य मदन मोहन के अनुसार शनि रोहिणी शकट भेदन का योग हजारों साल में एक बार बनता है. इसके बारे में कहा गया है कि अगर कोई ग्रह वृषभ राशि के 17 अंश में रोहिणी नक्षत्र के तृतीय पाद में स्थित हो और उसका शर दक्षिण दिशा की ओर हो तथा वह पांच अंगुल से अधिक यानी लगभग 2 डिग्री पर हो, तो शनि, मंगल या चंद्रमा में से किसी एक ग्रह का रोहिणी शकट भेदन होता है. यह स्थिति बहुत विनाशकारी होती है और कहा जाता है कि इससे देवता और असुर भी नहीं बच सकते. जब यह योग बनता है, तो पृथ्वी पर 12 वर्षों तक भयंकर अकाल और युद्ध की संभावना रहती है.
साथ ही कहा कि शनि रोहिणी शकट भेदन का योग तब बनता है जब शनि ग्रह रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर आगे बढ़ जाता है. इस योग के बनने की घटना बहुत दुर्लभ होती है और यह हजारों वर्षों में एक बार ही बनता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा ही एक योग राजा दशरथ के समय में बनने वाला था. कथा के अनुसार राजा दशरथ के समय में ज्योतिषियों ने देखा कि शनि कृत्तिका नक्षत्र के अंतिम चरण में है और जल्द ही रोहिणी नक्षत्र का भेदन करेगा. यदि यह भेदन होता, तो प्रजा को भयंकर अकाल और अन्य कष्टों का सामना करना पड़ता. इस स्थिति से बचने के लिए राजा दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मंडल पहुंचे और शनि देव की आराधना की. उन्होंने शनि देव से युद्ध भी किया और संहारास्त्र का संधान किया. राजा दशरथ की तपस्या, कर्तव्यनिष्ठा और प्रजा के प्रति प्रेम से शनि देव प्रसन्न हो गए और वर मांगने को कहा. दशरथ ने वरदान मांगा कि जब तक चंद्रमा, सूर्य, नदियां, सागर और पृथ्वी हैं, तब तक शनि रोहिणी शकट भेदन न करें. शनि देव ने उन्हें यह वरदान दे दिया.
आचार्य ने कहा कि कुछ खगोलशास्त्रियों के अनुसार यदि शनि रोहिणी नक्षत्र (चौथे पाद) में प्रवेश कर जाए, तो यह दुनिया के अंत का संकेत हो सकता है. हालांकि, आधुनिक खगोलीय तथ्यों के अनुसार, शनि देव सामान्यत: इस वृत्त में प्रवेश नहीं करेंगे. हाल ही में शनि इस वृत्त के एक डिग्री के भीतर तक पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने इसमें प्रवेश नहीं किया. इससे यह साबित होता है कि हमारे प्राचीन खगोलशास्त्री और ज्योतिषी बहुत विद्वान थे.
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