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Prashant Kishor: हाथ में माइक, पसीने से तर-बतर चेहरा और आसपास लोगों का हुजूम... प्रशांत किशोर को सीरियसली तो लेना पड़ेगा

Prashant Kishor Politics: प्रशांत किशोर की साख दांव पर है. अब तक वे दूसरों को गद्दी दिलाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते थे, लेकिन इस बार सारा गुणा गणित उन्हीं के लिए है. इस बार चाणक्य भी वहीं हैं और चंद्रगुप्त भी. देखना यह है कि उनके अंदर का चाणक्य अपने चंद्रगुप्त को बिहार की राजनीति में कहां स्थापित करता है.

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Prashant Kishor: हाथ में माइक, पसीने से तर-बतर चेहरा और आसपास लोगों का हुजूम... प्रशांत किशोर को सीरियसली तो लेना पड़ेगा
Prashant Kishor: हाथ में माइक, पसीने से तर-बतर चेहरा और आसपास लोगों का हुजूम... प्रशांत किशोर को सीरियसली तो लेना पड़ेगा
Sunil MIshra|Updated: Jun 18, 2025, 04:43 PM IST
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Prashant Kishor: आप टीवी देखें या फिर मोबाइल ऑपरेट करें, एक चेहरा बरबस स्क्रीन पर सामने आ ही जाता है- प्रशांत​ किशोर. यह चेहरा पिछले ढाई साल से बिहार के गांवों, तहसीलों, जिला मुख्यालयों की खाक छान रहा है. 2 साल की पदयात्रा के बाद प्रशांत किशोर ने पिछले साल 2 अक्टूबर को जन सुराज नाम से नई पार्टी बनाई थी और उसके बाद से लगातार बिहार के लोगों से संवाद कायम करने में जुटे हुए हैं. टीवी और मोबाइल पर प्रशांत किशोर हाथ में माइक लिए नजर आते हैं और उनका चेहरा पसीने से तर-बतर नजर आता है. आसपास की भीड़ के क्या ही कहने. फोटो का भूगोल बदल जाता है, लेकिन भीड़ कम नहीं होती. जाहिर है, राजनीति में ऐसे आदमी को सीरियसली तो लेना ही चाहिए.

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प्रशांत किशोर अब तक दूसरों को जिताने का काम करते थे और अब खुद को जिताने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं. उनके पास फॉर्मूला है, प्लान है, अपील है और उनकी बातें रियलिस्टिक लगती हैं. वे कहते हैं कि अगर आपको लगता है कि हमारा प्रत्याशी ठीक नहीं है तो किसी और को वोट दे दो. वे यह अरविंद केजरीवाल की तरह यह दावा नहीं करते कि जन सुराज पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ही ईमानदार होते हैं और बाकी सब बेईमान होते हैं. उनकी बातें लोगों में अपील करती दिखती हैं. 

प्रशांत किशोर परिवारवाद के लिए लालू प्रसाद यादव की आलोचना नहीं करते बल्कि लोगों से कहते हैं कि वे भी अपने बच्चों के लिए लालू प्रसाद यादव की तरह सोचें. प्रशांत किशोर का कहना है, 'जिस तरह लालू प्रसाद यादव अपने 9वीं फेल बच्चे को भी मुख्यमंत्री बनाने का सपना देख रहे हैं, उसी तरह बिहार के हर मां और बाप को अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखने चाहिए.' वे कहते हैं कि अगर हर मां और बाप अपने बच्चों के बारे में लालू प्रसाद यादव की तरह सोचने लगे तो नई पीढ़ी का कल्याण हो जाएगा.

पहले बिहार से ट्रेन चलाने को तरक्की से जोड़ा जाता था. बिहार से जो भी रेल मंत्री रहे, सबका एक ही उद्देश्य था कि ज्यादा से ज्यादा ट्रेन बिहार से चलाएं, ताकि वे अपने राज्य में सफल रेल मंत्री का तमगा हासिल कर सकें. प्रशांत किशोर उस पर सवाल उठाते हैं. वे बिहार से नई ट्रेनें चलाने को लेकर पीएम मोदी और उनकी सरकार पर सवाल उठाते हैं. प्रशांत किशोर का कहना है कि बिहार से दिल्ली, मुंबई, लुधियाना, जालंधर, सूरत, अहमदाबाद, चेन्नई आदि के लिए ट्रेनें जाती हैं और उसमें भर भरके आपके बेटे मजदूरी करने इन जगहों पर जाते हैं. वे सवाल उठाते हैं कि क्या यही विकास है.

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प्रशांत किशोर कहते हैं कि अगर यही विकास है तो फिर गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली और तमिलनाडु के युवा बिहार आकर नौकरी क्यों नहीं करते? वे इसके लिए सीधे-सीधे पीएम मोदी को चुनौती देते हैं. पीएम मोदी इस साल अब तक बिहार से चलने वाली कई ट्रेनों को हरी झंडी दिखा चुके हैं और आगामी 20 जून को भी वे पटना से गोरखपुर के बीच चलने वाली वंदे भारत को हरी झंडी दिखाने वाले हैं. पीके का कहना है कि पीएम मोदी बिहार से गुजरात के लिए इसलिए ट्रेन चलवाते हैं, क्योंकि बिहारी मजदूर गुजरात जाकर मजदूरी कर सकें.

प्रशांत किशोर ऐसी बातें करते हैं, जो भावनात्मक रूप से अपील करती हैं. पेपर लीक, बीपीएससी, गर्दनीबाग आंदोलन आदि के मुद्दे पर वे पहले ही अपनी आवाज मुखर कर चुके हैं. इन सबके अलावा पलायन पर उनका सबसे अधिक फोकस है. वे लोगों से पूछते दिखाई देते हैं कि क्या लोगों को यह मंजूर है कि उनका बेटा गुजरात जाकर मजदूरी करे. ऐसी बातें हिट करती हैं. एनडीए के नेता लालू राज को जंगलराज बताते हैं और महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार के 20 साल के शासन को निशाना बनाते हैं, लेकिन प्रशांत किशोर पिछले 35 साल को बिहार के पिछड़ेपन का कारण मानते हैं.

जाहिर है, उनके निशाने पर लालू प्रसाद यादव हैं तो नीतीश कुमार भी हैं. उनके निशाने पर पीएम मोदी हैं तो राहुल गांधी भी हैं. लालू प्रसाद यादव के पैरों के पास बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर की तस्वीर रखे जाने के मुद्दे पर वे राहुल गांधी को चुनौती देते दिखते हैं. प्रशांत किशोर न तो विजय कुमार सिन्हा के बेटे की शादी में जाते हैं और न ही खान सर की शाही दावत का हिस्सा बनते हैं. वे किसी प्रतिनिधि को भेजना भी मुनासिब नहीं समझते. जाहिर है, वे इस समय बिहार में स्थापित सभी दलों से अलग दिखना चाहते हैं.

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प्रशांत किशोर में एक जुनून दिखता है- जीत का जुनून. वे एक लक्ष्य बनाकर चल रहे हैं. अभी तो यह नहीं कहा जा सकता कि बिहार चुनाव में जीत किसकी होगी, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि प्रशांत किशोर अच्छा डेब्यू करने वाले हैं और इसके पीछे हैं उनका जुनून. कुछ हासिल करने की भूख है उनमें और उससे कम में उनको कुछ भी मंजूर नहीं है. एक तरह से वे मिशन पर निकले हैं और चुनाव प्रक्रिया के खत्म होने के बाद ही उनका मिशन भी खत्म होने वाला है. 

पहली बार चुनाव लड़कर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली में सरकार बना ली थी. वैसा ही होने का दावा करना तो शायद अतिश्योक्ति होगी लेकिन प्रशांत किशोर को लेकर लोगों की दीवानगी बता रही है कि वे किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो बिहार जैसे जातिवादी राज्य में बिना बिरादरी के पॉलिटिक्स कर सफलता हासिल करना किसी अजूबे से कम नहीं होगा. हालांकि अभी चुनावी प्रक्रिया शुरू होने में अभी काफी समय है, लेकिन प्रशांत किशोर को पता है कि लोगों को कौन सी बात रटानी है और कौन सी उनकी मेमोरी से डिलीट करवानी है और यही एक जननेता की खासियत होती है.

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