Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी करीब-करीब 6 महीने का वक्त बचा है, लेकिन सियासत के सभी रंग अभी से दिखने शुरू हो गए हैं. यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनता जा रहा है. इस चुनाव में नीतीश कुमार को जितना खतरा दुश्मनों से नहीं है, उतना तो दोस्तों से नजर आ रहा है. कभी नीतीश कुमार के आंख-कान माने जाने वाले नेता ही अब उनको सीएम की कुर्सी से हटाने का चक्रव्यूह तैयार कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की. सियासी गलियारों में चर्चा है कि आरसीपी सिंह कल यानी रविवार (18 मई) को प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं. इतना ही नहीं वह अपनी नई-नवेली पार्टी 'आसा' का भी जन सुराज में विलय कर देंगे.
सूत्रों के मुताबिक, आरसीपी सिंह और पीके के बीच काफी दिनों से खिचड़ी पक रही थी. अब कहीं जाकर दोनों के बीच मर्जर को लेकर डील फाइनल हो सकी है. आरसीपी सिंह को पार्टी में शामिल कराने को लेकर जन सुराज पार्टी की ओर से कल पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई है. इस पीसी में प्रशांत किशोर भी मौजूद रहेंगे. इससे पहले जन सुराज पार्टी की ओर से कहा गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले जन सुराज के साथ एनडीए से जुड़े रहे एक बड़े नेता और दल साथ आ रहे हैं. हालांकि, पार्टी की ओर से अभी तक नाम का खुलासा नहीं किया गया है.
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बता दें कि प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह दोनों को राजनीति में लाने का श्रेय नीतीश कुमार को जाता है. पीके ने 16 सितंबर 2018 को जेडीयू ज्वाइन की थी. नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था. जेडीयू छोड़ने के बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन की. हालांकि, वहां भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाए. इसके बाद आखिरकार उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. इसी तरह आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. इतना ही नहीं केंद्र की मोदी सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया. जब उन्हें दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा गया तो वे नाराज हो गए और बीजेपी ज्वाइन कर ली. बीजेपी से भी कुछ ही दिनों में मोहभंग हो गया और इसके बाद अपनी 'आसा' पार्टी की नींव रखी. सूत्रों के मुताबिक, अब वह आसा को जन सुराज में विलय करके प्रशांत किशोर के साथ मिलकर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे.
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वहीं एनडीए के बागी नेताओं में आरसीपी सिंह के अलावा पशुपति पारस भी शामिल हैं. पशुपति पारस भी केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रह चुके हैं और अपनी पार्टी के अध्यक्ष हैं. लोकसभा चुनाव के बाद से उन्होंने एनडीए से रिश्ता तोड़ लिया है. एनडीए से बाहर होने के बाद उन्होंने महागठबंधन में शामिल होने के कई प्रयास किए. इसके लिए वह राजद अध्यक्ष लालू यादव से कई बार मिले, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. सियासी जानकारों का कहना है कि महागठबंधन में पशुपति पारस की एंट्री में तेजस्वी यादव ही बाधा बने हुए हैं. दरअसल, वह नहीं चाहते हैं कि महागठबंधन में और ज्यादा दल शामिल हों, जिससे सीटों का बंटवारा करने में दिक्कत बढ़े.