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सहयोगी दलों के लिए कभी BJP ने छोड़ दिए थे अपने मुद्दे, आज उसी पार्टी के लिए गठबंधन के साथी सेक्युलरिज्म का चोला फेंक रहे

Bihar News: समाजवादी विचारधारा के ज्यादातर नेताओं ने बीजेपी को राजनीतिक अछूत घोषित कर दिया. हालांकि, मंदिर के पक्ष में बने माहौल और हिंदुत्व की लहर का बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया. 

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अमित शाह और पीएम मोदी (File Photo)
अमित शाह और पीएम मोदी (File Photo)
K Raj Mishra|Updated: Apr 05, 2025, 06:57 PM IST
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समय बहुत बलवान होता है. इसका ताजा उदाहरण इस समय भारतीय राजनीति में देखने को मिल रहा है. एक जमाना था जब भारतीय राजनीति में सिर्फ कांग्रेस पार्टी का अखंड राज चलता था. उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक किसी भी राज्य में कांग्रेस को चुनौती देने वाला कोई नहीं था. उधर एकछत्र राजपाठ के कारण कांग्रेस अपनी मनमानी करने लगी. इसके कारण कांग्रेस पार्टी के भी कई टुकड़े हुए और TMC, NCP, जैसे तमाम क्षेत्रीय दल अस्तित्व में आए. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ जनसंघ का उदय हुआ और यही दल आगे चलकर बीजेपी बना. 1974 में बिहार के गांधीवादी नेता जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्रों का विशाल आंदोलन हुआ, जिसे जेपी आंदोलन के नाम से जाना जाता है. इस आंदोलन से लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे राजनेताओं की नई खेप निकली, जो समाजवाद की राह पर आगे बढ़े. इसी तरह से यूपी में डॉ लोहिया को आदर्श बनाकर मुलायम सिंह यादव ने भी समाजवादी पार्टी की नींव रखी. 

आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को हटाने के लिए ये तमाम नेता एकसाथ आए, जनसंघ ने भी इस यज्ञ में खुद को आहुत कर दिया. नतीजे स्वरूप इंदिरा गांधी की सत्ता चली गई और जनता दल की सरकार बनी. हालांकि सरकार बनने के बाद नेताओं की व्यक्तिगत इच्छाएं बढ़ गईं और सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी. इसके बाद जनसंघ ही बीजेपी के रूप में सामने आई. 80 हके दशक में बीजेपी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों पर राजनीति शुरू की, इनमें-राम मंदिर, धारा 370, यूसीसी शामिल थे. 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया. इस मुद्दे को बीजेपी ने पूरे जोर-शोर से हवा दी. इस घटना के बाद देश में हिंदुत्व की राजनीति तेज हुई, और राजनीतिक दलों के बीच भी खांचे खिंच गए।

बीजेपी ने जहां हिंदुत्व की राह पकड़ी, वहीं कई दल मुस्लिमों के पक्ष में आ खड़े हुए. समाजवादी विचारधारा के ज्यादातर नेताओं ने बीजेपी को राजनीतिक अछूत घोषित कर दिया. हालांकि, मंदिर के पक्ष में बने माहौल और हिंदुत्व की लहर का बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया. 1996 के आम चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्याबल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिनों में ही गिर गई. 

1998 में बीजेपी को फिर सबसे ज्यादा सीटें मिलीं और वाजपेयी ने फिर केंद्र में सरकार बनाई. जयललिता की एआईडीएमके और फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस भी सरकार का हिस्सा थी. इस सरकार को चलाने के लिए बीजेपी ने अपने सारे मुद्दे छोड़ दिए थे, इसके बाद भी राजनीतिक घटनाक्रम कुछ ऐसे बने कि 13 महीनों बाद एआईडीएमके ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद अटल सरकार अल्पमत में आ गई और राष्ट्रपति ने सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा। वाजपेयी सरकार को भरोसा था कि उसके पास पर्याप्त समर्थन है और वह विश्वासमत जीत लेगी, लेकिन जब लोकसभा में वोटिंग के बाद काउंटिंग के नतीजे आए तो हर कोई चौंक गया था, क्योंकि अटल सरकार मात्र एक वोट के अंतर से बहुमत नहीं जुटा पाई थी।

यहां नेशनल कांफ्रेंस ने खेल कर दिया. नेशनल कांफ्रेंस की ओर से वाजपेयी सरकार के पक्ष में वोटिंग की घोषणा करने के बाद भी पार्टी के एक सांसद सैफुद्दीन सोज ने पार्टी के खिलाफ जाकर अटल सरकार के खिलाफ वोट डाला था. इस कारण से सिर्फ एक वोट से सरकार गिर गई थी. इसी घटनाक्रम का एक वीडियो सोशल मीडिया में बड़ा वायरल होता है, जिसमें लालू यादव और ममता बनर्जी के बीच बड़ी तीखी बहस देखने को मिलती है. बीजेपी के लिए एक वह दौर था और एक आज का. अटल-आडवाणी के युग में सहयोगी हमेशा बीजेपी को दबाकर रखते थे. पार्टी अपने मुद्दों को लागू नहीं करती थी फिर भी एक वोट से सरकार गिर गयी थी. वहीं आज मोदी-शाह के युग में बीजेपी के निर्देशों का पालन करने के लिए सहयोगी सेक्युलरिज़्म का चोला उतारने को मजबूर हैं.

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नीतीश-नायडू के सहारे चल रही केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ी ही आसानी से वक़्फ बोर्ड संशोधन बिल को पास करा लिया. जेडीयू-टीडीपी सहित लोजपा-आर, हम, रालोमो, रालोद और जेडीएस सहित तमाम सेक्युलर पार्टनर ने इस बिल का समर्थन किया. इतना ही नहीं विपक्ष को अपनी ताकत दिखाने के लिए सरकार ने इस बिल को उस वक्त संसद में पेश किया जब पीएम मोदी विदेश दौरे पर थे. बीजेपी को भरोसा था कि नम्बर गेम को उनका चाणक्य यानी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूरा कर लेंगे.

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