बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने संगठनात्मक स्तर पर अपनी तैयारियों को तेज कर दिया है. इसी क्रम में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने राज्य के सभी 52 संगठनात्मक जिलों के लिए प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं. यह जिम्मेदारी पार्टी के अनुभवी और निष्ठावान नेताओं को दी गई है ताकि बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत किया जा सके.
भाजपा की ओर से जारी सूची में कई बड़े नाम शामिल हैं. बगहा का प्रभारी किसान मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह को बनाया गया है, जबकि बेतिया की जिम्मेदारी विनोद सिंह को सौंपी गई है. मोतिहारी के प्रभारी वरुण सिंह, ढाका के शैलेन्द्र मिश्रा और गोपालगंज के दीपेन्द्र सराफ बनाए गए हैं. पार्टी ने यह नियुक्तियां संगठन की मजबूती और विधानसभा चुनाव की रणनीति के तहत की हैं.
सारण, सिवान और वैशाली जिले में भी प्रभारी बदले गए हैं. सारण पूर्वी में अनूप श्रीवास्तव और पश्चिमी में प्रवीण यादव को जिम्मेदारी दी गई है. वैशाली उत्तरी में अरविंद सिंह और दक्षिणी में संजय सहाय को प्रभारी बनाया गया है. शिवहर और सीतामढ़ी में भी नए प्रभारी नियुक्त किए गए हैं, जिससे इन जिलों में पार्टी की पकड़ और मजबूत होगी.
कोसी और सीमांचल जैसे क्षेत्रों में भी भाजपा ने नए प्रभारी नियुक्त कर संकेत दे दिया है कि इस बार हर सीट पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जैसे जिलों में अनुभवी नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है. इससे वहां संगठन की जमीनी पकड़ और मजबूत होगी.
राजधानी पटना से लेकर दूरस्थ कैमूर और बक्सर तक भाजपा ने सभी जिलों में प्रभारी तय कर दिए हैं. पटना ग्रामीण में संजीव कुमार यादव और महानगर में प्रेम रंजन चतुर्वेदी को कमान दी गई है. इसी प्रकार भोजपुर, औरंगाबाद, सासाराम, गया और जहानाबाद में भी नए संगठनात्मक प्रभारी बनाए गए हैं.
भाजपा मुख्यालय प्रभारी अरविंद शर्मा द्वारा जारी की गई इस सूची से कार्यकर्ताओं में नया उत्साह देखने को मिल रहा है. सभी जिलों के प्रभारी अब वहां के संगठनात्मक ढांचे की समीक्षा करेंगे और विधानसभा चुनाव की रणनीति को अमल में लाने का काम करेंगे.
पार्टी का मानना है कि लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को विधानसभा तक ले जाने के लिए संगठनात्मक तैयारी बेहद जरूरी है. इसीलिए हर जिले में ऐसे प्रभारी लगाए गए हैं जो स्थानीय मुद्दों से परिचित हों और संगठन को जमीनी स्तर पर सशक्त बना सकें.
भाजपा की यह कवायद केवल चुनावी तैयारी भर नहीं बल्कि संगठनात्मक विस्तार और सांगठनिक अनुशासन को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. इससे यह भी संकेत जाता है कि भाजपा किसी भी सूरत में बिहार में सत्ता में वापसी की रणनीति को हल्के में नहीं ले रही है.
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