Yogendra Yadav on Election Commission: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्शन कमीशन का एक आदेश, जिसकी वजह से पूरे देश की सियासत में हलचल मची हुई है. विपक्षी दल चुनाव आयोग के इस आदेश का खुलकर विरोध कर रहे हैं. साथ ही कई तरह के सवाल आयोग से पूछ रहे हैं. इसी बीच स्वराज इंडिया के राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने तीन सवाल भारतीय चुनाव आयोग से सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पूछा.
योगेंद्र यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट लिखा. इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि 24 जून को चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण का जो आदेश जारी किया है, वह पहली नजर में एक तकनीकी प्रक्रिया दिखती है, लेकिन असल में यह एक चुनावी जनगणना है, जो करोड़ों नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकती है.
उन्होंने आगे लिखा कि जिस किसी का नाम 2003 की सूची में नहीं है, उसे अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. जिनके पास न जन्म प्रमाणपत्र है, न मैट्रिक का प्रमाण, न जाति प्रमाण- वे वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं. हमने गणना की है, 4.76 करोड़ बिहारवासी इस प्रक्रिया की चपेट में आ सकते हैं, सिर्फ इसलिए नहीं कि वे अवैध प्रवासी हैं, बल्कि इसलिए कि सरकार कभी उनके परिवार को दस्तावेज ही नहीं दे सकी.
योगेंद्र यादव ने चुनाव आयोग के इस आदेश पर तीन सवाल पूछा और लिखा कि ये निर्णय अचानक 22 साल बाद क्यों? चुनाव से 3 महीने पहले ही क्यों? और बिना दलों-संगठनों से चर्चा किए क्यों? क्या यह लोकतंत्र के नाम पर प्रशासनिक NRC की शुरुआत है?
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राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अपने सोशल मीडिया के इसी पोस्ट में लिखा कि हमारी मांग है कि यह आदेश तुरंत रद्द हो, जनवरी की मानक प्रक्रिया लागू हो, मतदाता को दोषी न माना जाए.
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