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Waqf Board Amendment Bill: क्या CM नीतीश का दांव उल्टा पड़ गया, मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे की झड़ी, चुनाव पर कितना पड़ेगा असर?

Bihar Politics: बिहार की सत्ता में पिछले 20 साल से नीतीश कुमार काबिज हैं. उससे पहले 15 साल तक लालू यादव ने शासन चलाया. मतलब साफ है कि बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच ही सत्ता का संघर्ष देखने को मिलता है. प्रदेश के मुसलमानों ने मुसलमानों कभी भी राजद का साथ नहीं छोड़ा. ऐसा भी नहीं है कि नीतीश कुमार को मुसलमानों का बिल्कुल साथ नहीं मिला.

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सीएम नीतीश कुमार
सीएम नीतीश कुमार
K Raj Mishra|Updated: Apr 04, 2025, 10:01 AM IST
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Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में उथल-पुथल देखने को मिल रही है. वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का समर्थन करने के बाद से जेडीयू के मुस्लिम नेताओं में भारी नाराजगी है और पार्टी में इस्तीफे का दौर शुरू हो गया. अबतक तीन मुस्लिम नेताओं ने जेडीयू से इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या चुनावी साल में मुस्लिन नेताओं की नाराजगी सीएम नीतीश कुमार को भारी पड़ सकती है? साथ ही वक्फ बिल का बिहार चुनाव पर कितना असर पड़ेगा? इन सवालों का जवाब जानने से पहले ये जानना बेहद जरूरी है कि बिहार में नीतीश कुमार को अभी तक मुस्लिमों का साथ मिलता भी था या नहीं.

बता दें कि बिहार की सत्ता में पिछले 20 साल से नीतीश कुमार काबिज हैं. उससे पहले 15 साल तक लालू यादव ने शासन चलाया. मतलब साफ है कि बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच ही सत्ता का संघर्ष देखने को मिलता है. प्रदेश की सियासत में जेडीयू और राजद की ताकत का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगा सकते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल इन पर ही आधारित रहते हैं. प्रदेश में कुर्मी-कुशवाहा जाति के लोग नीतीश कुमार का कोर वोटर माने जाते हैं और इनकी दम पर ही जेडीयू पिछले 20 साल से सत्ता में है. प्रदेश इस वोटबैंक को 'लव-कुश' के नाम से जाना जाता है. वहीं लालू यादव ने प्रदेश के मुसलमानों और यादवों को मिलाकर 'माय' समीकरण तैयार किया और इसी की दम पर सियासत करते हैं. इस माय समीकरण की बदौलत ही राजद ने 15 साल तक अखंड राज किया.

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लालू यादव भले ही पिछले 20 सालों से सत्ता में ना हों लेकिन 'माय' वोटबैंक ने कभी भी राजद का साथ नहीं छोड़ा. ऐसा भी नहीं है कि नीतीश कुमार को मुसलमानों का बिल्कुल साथ नहीं मिला. जब प्रदेश के पसमांदा मुसलमानों का एक बड़ा तबका नीतीश कुमार के साथ खड़ा हुआ तभी उन्होंने लालू यादव को सत्ता से बेदखल किया. बदले में नीतीश कुमार ने भी उनके लिए कई अहम काम किए. कब्रिस्तान की घेराबंदी, भागलपुर दंगे की न्यायिक जांच कमिटी का गठन और 20 फीसदी के अति पिछड़ा आरक्षण के फैसले को लागू करना, ये उसके उदाहरण हैं. 2006 से 2014 के बीच नीतीश कुमार ने पांच मुस्लिम नेताओं को राज्यसभा भेजा. इनमें चार पसमांदा मुस्लिम थे, लेकिन अब सियासत और परिस्थिति बदल रही हैं.

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नीतीश कुमार द्वारा इतने सारे काम करने के बाद भी प्रदेश के मुसलमान अभी भी लालू यादव के गीत गाते हैं और राजद का ही समर्थन करते हैं. वहीं अब इनका एक बड़ा वर्ग असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पार्टी में शिफ्ट हो गए हैं. AIMIM के वोट काटने से RJD चाहकर भी सरकार नहीं बना पाई. अबकी बार बिहार में ओवैसी की पार्टी के साथ ही प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी है. ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार के साथ जो मुस्लिम वोटर्स जुड़े हैं, वो उन्हें ही वोट करेंगे और बाकी मुस्लिम वोट बंटने से विपक्ष को बहुत फायदा नहीं होने वाला है. दूसरी ओर अगर मुसलमान एकजुट होकर राजद के साथ जाएगा तो हिंदू वोटर भी एकजुट हो सकता है. जिससे एनडीए का पलड़ा भारी हो सकता है.

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