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राजद के MY समीकरण में M सबसे आगे लगता है, मुसलमानों के लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि

Bihar News: राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की कुछ तो खासियत है कि मुसलमान उनके कोर वोटर हैं. भागलपुर दंगा और लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद से लालू प्रसाद यादव की छवि मुसलमानों के हीरो की बन चुकी है. यह छवि तोड़ने में बाकी दलों को काफी समय लगेगा. 

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राजद के MY समीकरण में M सबसे आगे लगता है, मुसलमानों के लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि
राजद के MY समीकरण में M सबसे आगे लगता है, मुसलमानों के लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि
Sunil MIshra|Updated: Mar 27, 2025, 02:31 PM IST
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मुस्लिम (Muslim) और यादव (Yadav) का अंग्रेजी में पहला लेटर माय (MY) समीकरण बनाते हैं. बिहार में यही माय समीकरण लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल का आधार वोट बैंक है. 1990 में सत्ता में आने के साथ ही लालू प्रसाद यादव ने इस समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद शुरू की थी और इसमें उनको जबर्दस्त फायदा हुआ था और 1995 में जनता दल को स्पष्ट बहुमत मिला था और लालू प्रसाद यादव दोबारा मुख्यमंत्री बने थे. बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या जातीय जनगणना के अनुसार कुल आबादी का 17 प्रतिशत तो यादवों की जनसंख्या 14 प्रतिशत है. माय (MY) लिखने पर M पहले आता है और मुसलमानों के लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसे जानने के लिए आगे के पैरे पढ़ने होंगे.

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राष्ट्रीय जनता दल के नेता 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी' की बात करते हैं, लेकिन पार्टी अपने माय समीकरण के साथ ही जस्टिफाई करती नजर नहीं आती है. माय समीकरण में वाई की हैसियत ज्यादा मजबूत है और एम उसके सामने एक तरह से कुछ भी नहीं है. आपको भरोसा न हो रहा हो तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में राजद की ओर से ​बांटे जाने वाले टिकटों के आधार पर समझ सकते हैं.

2015 से शुरू करते हैं. तब के विधानसभा चुनाव में राजद ने 48 यादवों को चुनाव मैदान में उतारा था और तब केवल 16 मुसलमानों को प्रत्याशी बनाया गया था. ऐसा नहीं कि यह असंतुलन पहली बार सामने आया, बल्कि यह हमेशा से होता आ रहा है. फिर भी मुसलमानों का भरोसा राजद जीतती आ रही है तो यह उसकी उपलब्धि है.

2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बिहार की 40 में से 19 सीटों पर राजद चुनाव मैदान में था. इनमें से 8 यादवों को टिकट दिया गया था तो मुसलमानों को केवल पांच. राजद प्रत्याशियों के चयन में माय समीकरण को आधा आधा भी कर सकता है, लेकिन चूंकि यह लालू प्रसाद यादव की पार्टी है. लिहाजा, सबसे अधिक टिकट यादवों को ही दिया जाता है.

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अब 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की बात करते हैं. तब राजद ने 144 में 58 यादवों को चुनाव मैदान में उतारा था. यह कुल उम्मीदवारों का 33 प्रतिशत होता है. यादवों की तुलना में तब केवल 18 मुसलमान प्रत्याशी उतारे गए थे. मतलब आधे से भी कम. लालू प्रसाद यादव की पार्टी यादवों के मुद्दों को लेकर सड़क पर नहीं उतरती, क्यों वे जानते हैं कि वो अपना समुदाय है. 

राष्ट्रीय जनता दल के नेता मुस्लिम मुद्दों को लेकर ही सड़कों पर उतरते हैं. संसद, विधानसभा और विधान परिषद में दहाड़ मारते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें एक समुदाय को संदेश देना होता है कि हम तुम्हारे लिए क्या कर रहे हैं और केवल हम ही हैं, जो तुम्हारे लिए लड़ रहे हैं. और कोई नहीं है, जो तुम्हारी आवाज सड़क से लेकर संसद तक में बुलंद कर सके.

एक दिन पहले का ही वो सीन याद कीजिए, जब वक्फ संशोधन बिल के विरोध में मुस्लिम संगठनों ने पटना के गर्दनीबाग में धरना प्रदर्शन किया था और उसमें लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की भागीदारी को प्रमुखता से प्रचारित किया गया था. मुसलमानों के मसीहा लालू प्रसाद यादव से जब लोजपा के तत्कालीन अध्यक्ष रामविलास पासवान ने बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री की शर्त रखी थी, तब उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा था.

तबीयत नासाज होने की स्थिति में भी लालू प्रसाद यादव मुसलमानों के धरने में शामिल होते हैं तो वह एक संदेश देते हैं. वह यह भी संदेश देते हैं कि मुसलमानों के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं. तेजस्वी यादव ने तो यह भी कहा कि इस बिल का विरोध करने के लिए हम किसी भी हद तक जाएंगे. 

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ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस अपना दायरा फैला रही है और अब वह राजद के भरोसे की राजनीति करने के मूड में नहीं दिख रही है. यही डर राजद आलाकमान से सड़क पर उतरने को मजबूर कर रहा है. राजद को यह भी डर है कि अगर माय समीकरण से एम की भागीदारी कम हो गई, तो उसकी राजनीति का हमेशा के लिए दि एंड हो सकता है.

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