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दरक गया महागठबंधन: लालू-तेजस्वी चले थे नीतीश का बॉयकॉट करने, कांग्रेस ने इनका ही बहिष्कार कर दिया

Bihar Chunav 2025: दिल्ली चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू है. कांग्रेस बिहार में 'फूफा' बनकर बैठ गई है. नए प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावुरु तो लालू प्रसाद यादव से अब तक नहीं मिल पाए हैं, वहीं अब राजद सुप्रीमो की दावत ए इफ्तार से भी कांग्रेसी नदारद रहे. अब छटपटाने की बारी लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की है.

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दरक गया महागठबंधन: लालू-तेजस्वी चले थे नीतीश का बॉयकॉट करने, कांग्रेस ने इनका ही बहिष्कार कर दिया
दरक गया महागठबंधन: लालू-तेजस्वी चले थे नीतीश का बॉयकॉट करने, कांग्रेस ने इनका ही बहिष्कार कर दिया
Sunil MIshra|Updated: Mar 25, 2025, 12:17 PM IST
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बिहार की राजनीति दो महाभोजों से तय होती है. एक मकर संक्रांति तो दूसरी इफ्तार पार्टी. इन महाभोजों से बिहार की राजनीति करवट लेती है. जिसको जिधर जाना होता है, इन महाभोजों में एक सिग्नल दे देता है. इफ्तार पार्टी को लेकर एक सिग्नल कांग्रेस ने भी दिया है, जो राजनीतिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण है. दरअसल, कांग्रेस ने एक तरह से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार कर दिया. कांग्रेस की ओर से केवल विधायक प्रतिमा दास दावत ए इफ्तार में शिरकत करने पहुंची थीं. कोई आला नेता वहां मौजूद नहीं था. एक तरह से कांग्रेस के बड़े नेताओं ने लालू प्रसाद यादव की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार कर दिया. एक दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी के बहिष्कार का जब कुछ संगठनों ने ऐलान किया था, तब लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने उन संगठनों का समर्थन किया था. अब कांग्रेस ने ही लालू प्रसाद यादव के दावत ए इफ्तार का बहिष्कार ​कर दिया है.

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राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने इस बार हमेशा की तरह अपने सरकारी आवास 10 सर्कुलर रोड पर इफ्तार पार्टी न करके अब्दुल बारी सिद्दीकी के 12 स्ट्रैंड रोड स्थित आवास पर यह आयोजन किया, जिसका वास्तु राजद के लिए शुभ साबित नहीं हुआ और उसकी किरकिरी हो गई. दावत ए इफ्तार में लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, अब्दुल बारी सिद्दीकी, शिवानंद तिवारी और राजद के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे. इस मौके पर वाम दलों के नेता भी मौजूद रहे पर कांग्रेस के न तो प्रदेश अध्यक्ष नजर आए और न ही प्रदेश प्रभारी. प्रदेश प्रभारी तो अपनी नियुक्ति के डेढ़ महीने बाद भी लालू प्रसाद यादव से मिल नहीं पाए हैं.

दावत ए इफ्तार में न जाकर कांग्रेस ने अपने तेवर दिखा दिए हैं और यह भी जाहिर कर दिया है कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. बिहार कांग्रेस को अपने इशारों पर चलाने वाले लालू प्रसाद यादव को ही अब कांग्रेस आंख दिखा रही है. कांग्रेस अब खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. हो सकता है कि ऐसा करके कांग्रेस राज्य में राजद का पिछलग्गू होने का दाग धुलना चाहती है. इसलिए पहले प्रदेश प्रभारी बदले गए. राज्य कांग्रेस की राजनीति में कन्हैया कुमार की एंट्री हुई और उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष भी चलता कर दिए गए. और तो और पप्पू यादव अब मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने लगे हैं. यह सब कांग्रेस को अंदरूनी तौर पर मजबूत होने का संकेत है. 

यहां सवाल उठता है कि कांग्रेस अपनी रणनीति बदल रही है या फिर राजद पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है या फिर खुद को दूसरी दिशा में ले जाने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस के मीडिया प्रभारी पवन खेड़ा बिहार दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने 1990 वाली कांग्रेस का जिक्र किया और उसी हालात में पार्टी को ले जाने पर बल दिया. जब पत्रकारों ने पूछा कि 1990 से पहले राज्य में कांग्रेस की अपने बूते सरकार थी तो क्या पार्टी अपने बूते चुनाव में जाने वाली है? इस सवाल को पवन खेड़ा ने टाल दिया था. पर ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्होंने सवाल को टाला था, खारिज नहीं किया था.

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बिहार में 17 प्रतिशत मुसलमान हैं और भाजपा को छोड़ यह संख्या सभी दलों को लुभाती है. यह विदित है कि मुसलमान सामूहिक रूप से वोट करते हैं. यह राजद का कोर वोटर भी माना जाता है. राष्ट्रीय स्तर पर भले ही कांग्रेस को बड़े पैमाने पर मुसलमान वोट करते हैं, लेकिन यूपी और बिहार की राजनीति की बात करें तो यह समुदाय सपा और राजद का कोर वोटर है. दोनों को आधार वोट बैंक माय समीकरण है, जिसमें एम से मुसलमान और वाई से यादव होता है. बिहार की 32 सीटों पर 30 प्रतिशत से अधिक मुसलमान हैं. कांग्रेस की कोशिश इस बार इन 32 में से आधी सीटें अपने हिस्से में लेने की है. जाहिर है कांग्रेस की नजर मुसलमान वोटरों पर है और वह मुस्लिम बाहुल्य सीटों में से बराबर की हिस्सेदारी चाहती है.

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