Jati Janganana Bihar: केंद्र की मोदी सरकार ने बुधवार (30 अप्रैल) को जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया गया. केंद्र सरकार की ओर से जैसे ही जाति जनगणना कराने का ऐलान हुआ, वैसे ही राजनीतिक दलों ने मौका लपक लिया और खुद को इस फैसले का श्रेय देने लगे. अब कोई इसे पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक बता रहा है तो कोई राहुल गांधी की सफलता. वहीं मंडलवादी पार्टियां अपनी पीठ थपथपाने में लगी हैं. ऐसे में जनता बड़ी कन्फ्यूज हो गई है और समझ नहीं पा रही है कि इसका असरी हकदार कौन है? बता दें कि बुधवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में 'केंद्रीय कैबिनेट मीटिंग' हुई, इस बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल के कुछ टॉप मंत्री मौजूद थे. लोगों को लग रहा था कि इस बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ स्ट्राइक की रणनीति तैयार की जा सकती है, लेकिन बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जातीय जनगणना कराए जाने की घोषणा की. सियासी जानकारों के मुताबिक, यह विपक्ष पर पॉलिटिकल स्ट्राइक है.
सियासत के जानकारों का कहना है कि पीएम मोदी ने विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से एक और बड़ा मुद्दा छीन लिया है. दरअसल, बिहार में जातिगत जनगणना होने के बाद से पूरे देश देश में जातीय जनगणना की मांग बड़ी तेजी से उठी. महागठबंधन में रहते हुए नीतीश कुमार ने पूरे देश में जातीय जनगणना कराने की वकालत की. उनके बाद इस मुद्दे को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लपक लिया. उन्होंने इसी मुद्दे पर लोकसभा चुनाव लड़ा और काफी हद तक फायदा भी हासिल किया. लोकसभा चुनाव में भले ही पीएम मोदी ने वापसी की, लेकिन बीजेपी को बहुमत नहीं हासिल हो सका. इससे विरोधियों की उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गईं. राहुल गांधी तो यहां तक कहने लगे कि जब भी उनकी सरकार बनेगी, वो जातीय जनगणना कराएंगे. कांग्रेस का दावा है कि यूपीए-2 ने जाति जनगणना कराई, लेकिन BJP ने डेटा जारी नहीं किया. वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 की सरकार ने साल 2011 में हुई जनगणना के दौरान जातियों की गणना करने की कोशिश की थी, लेकिन इसमें इतनी ज्यादा गलतियां थीं कि सरकार ने आंकड़े ही सार्वजनिक नहीं किए थे.
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1951 से 2011 तक हुई हर जनगणना में SC और ST की आबादी भी दर्ज की गई, लेकिन किसी अन्य जाति समूह के लोगों की गणना नहीं की गई. तब से लेकर भारत सरकार ने नीतिगत फ़ैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज किया है. बीजेपी का दावा है कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जातीय जनगणना का विरोध किया था. उन्होंने सभी मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में कहा था कि वह जाति के आधार पर आरक्षण के भी विरोधी हैं. इतना ही नहीं 1980 के दशक में ओबीसी के आरक्षण को बढ़ाने के लिए मंडल कमीशन आया था, तब इंदिरा गांधी ने इसका विरोध किया था. राजीव गांधी भी जातीय जनगणना के विरोधी थे.
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1980 के दशक में देश में मंडलवादी पार्टियों जैसे समाजवादी पार्टी, जनता दल, और RJD का उदय हुआ. इन्होंने पिछड़ी राजनीति को सशक्त किया. यूपीए सरकार के दौरान मंडलवादी पार्टिया, जैसे SP, RJD, और JDU, लंबे समय से जाति जनगणना की वकालत करती रही. बिहार में नीतीश कुमार (JDU) ने 2022 में एक जाति सर्वेक्षण कराया, जिसमें 36% OBC और 27% EBC आबादी की पहचान की गई. बिहार में हुए जातिगत सर्वे का बीजेपी ने भी समर्थन किया था. 1990 में मंडल आयोग के कार्यान्वयन के समय भी BJP ने समर्थन किया था. OBC के लिए मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जैसे- OBC कमीशन को संवैधानिक दर्जा देना (2018 में 102वां संशोधन) और NEET में 27% OBC आरक्षण लागू करना. अब जाति जनगणना की घोषणा करके मोदी सरकार ने बड़ा दांव चल दिया है. मोदी सरकार के इस फैसले को सबसे पहले बिहार में परखा जाएगा. अब बिहार की जनता ही तय करेगी, जातीय जनगणना का असली हकदार कौन है.
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