लोकसभा में वक्फ बिल को लेकर जोरदार बहस देखने को मिली. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि वक्फ संपत्ति पर गैर-मुसलमानों के प्रवेश को पैगंबर मोहम्मद साहब के सिद्धांतों के खिलाफ बताना सही नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि इतिहास में पहला वक्फ एक यहूदी ने पैगंबर मोहम्मद साहब को दान किया था, तो फिर हिंदुओं को वक्फ में शामिल करने पर आपत्ति क्यों?
लोकसभा में निशिकांत दुबे ने अपने भाषण की शुरुआत शायराना अंदाज में की. उन्होंने कहा, 'लम्हों ने खता की है, सदियों ने सजा पाई है.' इस बयान के जरिए उन्होंने विपक्ष पर तंज कसा और सरकार के फैसले को ऐतिहासिक बताया. निशिकांत दुबे ने कहा कि वक्फ का इतिहास बताता है कि इसमें विभिन्न समुदायों का योगदान रहा है.
भाजपा सांसद ने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि पहला वक्फ पैगंबर मोहम्मद साहब को एक यहूदी मुखेरख ने दान में दिया था. उसने अपने सात बगीचे मोहम्मद साहब को तोहफे में दिए थे. जब उसकी मृत्यु हुई, तो मोहम्मद साहब ने उसकी संपत्ति को जब्त करके पहला चैरिटेबल वक्फ बोर्ड बनाया. निशिकांत दुबे ने इमरान मसूद को संबोधित करते हुए कहा कि जब इतिहास ही बताता है कि वक्फ में गैर-मुस्लिमों का योगदान रहा है, तो फिर हिंदुओं को इसमें शामिल करने का विरोध क्यों किया जा रहा है?
सरकार ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी और न्यायसंगत प्रबंधन के लिए लाया गया है, जबकि विपक्ष ने इसे एकतरफा और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ करार दिया. इस मुद्दे पर लोकसभा में तीखी बहस जारी रही और पक्ष-विपक्ष के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप भी देखने को मिले.
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