पटना: पसमांदा मुसलमानों को लेकर बिहार की राजनीति इन दिनों गरमाई हुई है. भाजपा पहली बार अल्पसंख्यक समुदाय को केंद्र में रखकर पसमांदा सम्मेलन आयोजित करने जा रही है. बीजेपी नेता खुलकर यह कह रहे हैं कि पसमांदा समाज उनकी प्राथमिकता में है. कहा ये भी जा रहा है कि भाजपा पसमांदा मुसलमानों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी के पसमांदा सम्मेलन को लेकर सियासत भी तेज हो गई है.
बिहार बीजेपी मीडिया प्रभारी दानिश इकबाल ने कहा, BJP बिहार में सभी समाज के साथ समन्वय और संवाद स्थापित करने का काम कर रही है. इसी कड़ी में दलित पसमांदा समाज के बीच हम जाएंगे और उनसे संवाद स्थापित करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन है कि तुष्टिकरण के आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के आधार पर उन वर्गों को मुख्यधारा में जोड़ा जाएगा, जो अब तक हाशिए पर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद इस समाज का विकास नहीं हुआ. इसलिए हमारी कोशिश है कि उनको मुख्यधारा में लाया जाए.
भाजपा की इस कवायद पर राजद प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा, बिहार का दलित, अतिपिछड़ा, अल्पसंख्यक लोग जानते है कि बीजेपी उनके हक की क़ातिल है. बीजेपी की मंशा सब समझ रहे हैं. जितना कसरत बीजेपी को करना है, कर ले लेकिन इस बार दाल नहीं गलने वाली.
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा, पसमांदा मुसलमान अल्पसंख्यक समाज में 85 प्रतिशत हैं, लेकिन राजद ने लगातार अगड़े मुसलमानों को प्रश्रय देने का काम किया है. राजद के लिए इसी कारण नाराजगी है. पसमांदा समाज चाहता है कि उनकी हिस्सेदारी बढ़े. एनडीए पसमांदा समाज को उनका हक देता है और आगे भी अहमियत देता रहेगा. इसलिए राजद के MY समीकरण को खतरा पैदा हो गया है.
बिहार कांग्रेस प्रवक्ता स्नेहाशीष वर्धन ने कहा कि मुसलमान समाज के विकास की बात भाजपा कर रही है. यह सुनना ही बेईमानी है. सबको पता है कि कर्नल सोफिया क़ुरैशी को भाजपा नेता ने क्या कहा था. उन्होंने कहा कि भाजपा तोड़ने वाली राजनीति करती है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक कौशलेंद्र प्रियदर्शी ने कहा, भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. बीजेपी इस काम में पहले से ही लगी हुई है. अगर बीजेपी बिहार में कुछ प्रतिशत पसमांदा मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाती है तो यह एनडीए के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. ऐसी स्थिति में लालू प्रसाद यादव और उनके गठबंधन के लिए खतरा पैदा हो सकता है.
बता दें कि बिहार में 17.70% आबादी मुसलमानों की है और मुसलमानों की आबादी में करीब 80% आबादी पसमांदा मुसलमानों की है. अति पिछड़ा वोट बैंक की अगर बात कर लें तो बिहार में कुल मिलाकर 112 जातियां अति पिछड़ा समुदाय में हैं. 112 में 27 जातियां अल्पसंख्यक समुदाय से है. भाजपा की नजर 27 जातियों पर है, जो राजनीतिक और विकास की दौड़ में पीछे रह गई हैं.
रिपोर्ट: निषेद
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