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Chunavi Kisse: 'जनता पार्टी की लहर के बावजूद 1977 में चुनाव हार गए थे नीतीश कुमार...' CM के करीबी रहे शिवानंद ने शेयर किया दशकों पुराना किस्सा

Chunavi Kisse: शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पहले चुनाव से जुडे़ एक किस्से के शेयर किया है. उस वक्त नीतीश कुमार और शिवानंद तिवारी बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे.

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फाइल फोटो
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K Raj Mishra|Updated: May 12, 2025, 10:01 AM IST
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Chunavi Kisse: बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनावी साल में राजद नेता शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जुड़ा दशकों पुराना किस्सा शेयर किया है. यह किस्सा उस वक्त का है जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शिवानंद तिवारी दोनों जनता पार्टी के सिपाही हुआ करते थे और दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी. शिवानंद तिवारी ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि 1977 का एक वाकया याद आ रहा. जनता पार्टी की लहर के बावजूद नीतीश कुमार 77 का चुनाव हार गए थे. हार ने उनको बहुत निराश कर दिया था. नीतीश कुमार के प्रति मेरे मन में छोटे भाई जैसा स्नेह भाव था. चुनाव हार गए थे, लेकिन उनकी क्षमता से मैं परिचित था. हम दोनों लोहिया विचार मंच में साथ थे. उन दिनों मैं जनता पार्टी की युवा इकाई, युवा जनता का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था. बिहार में मंगनी लाल मंडल युवा जनता के प्रदेश अध्यक्ष थे. मैंने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की हैसियत से बिहार में युवा जनता की समानांतर कमेटी की घोषणा कर दी. नीतीश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष और रघुपति जी को महासचिव घोषित कर दिया. 77 के चुनाव में अरुण लालगंज से विधानसभा का चुनाव जीत गए थे.

उन्होंने आगे लिखा कि अरुण उन दिनों एकल थे. उनको एमएलए फ्लैट मिल गया था. आजकल भाजपा का जहां दफ़्तर है उसके ठीक सामने दूसरे तले पर अरुण को फ्लैट आवंटित हो गया था. अरुण प्रसिद्ध समाजवादी नेता बसावन सिन्हा के पुत्र थे. अपनी तरह का आदमी था अरुण. शानदार इंसान. उसी के फ्लैट में युवा जनता के प्रदेश कार्यालय का बड़ा बोर्ड हमलोगों ने लटका दिया था. इससे नीतीश कुमार को एक प्लैटफ़ॉर्म मिल गया. युवा जनता के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अख़बारों में छपने लगे. लेकिन अख़बार वाले इनको अध्यक्ष, युवा जनता (शिवानन्द गुट) के रूप में छापा करते थे. आजकल जो लोग नीतीश कुमार के अग़ल-बग़ल दिखाई देते हैं, उन दिनों इनमें से किसी का अता-पता नहीं था सिवाय ललन सिंह के. ललन सिंह भी क्या 'चीज़' हैं यह जग-ज़ाहिर है. आज नीतीश कुमार को देखकर तरस आता है. कहाँ से कहां उतर आये.

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बता दें कि जेपी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार 1977 में करीब 26 साल के थे. इमरजेंसी समाप्त होने के बाद नीतीश ने नालंदा जिले की हरनौत सीट से चुनाव लड़े थे. जनता पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था. अपने जीवन के पहले ही चुनाव में नीतीश कुमार हार गए. उनको हराने वाले कोई नहीं थे बल्कि एक अहम मौके पर उनकी गाड़ी के ड्राइवर रहे भोला सिंह थे. इस हार को भुलाकर नीतीश 1980 में दोबारा इसी सीट से खड़े हुए. इस बार जनता पार्टी (सेक्युलर) ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था. इस चुनाव में भी नीतीश को हार मिली और वो निर्दलीय अरुण कुमार सिंह से हार गए. 1985 में तीसरी बार नीतीश इस सीट से चुनाव लड़े और करीब 21 हजार वोट से उन्हें जीत मिली. इसके बाद उनका राजनीतिक करियर प्रारंभ हो गया. बाद में 1995 में नीतीश कुमार आखिरी  बार विधानसभा चुनाव लड़े. इसके बाद वह एमएलसी बनकर राज्य में राजनीति करते रहे.

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