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एमके स्टालिन से लालू-तेजस्वी के तगड़े संबंध पर 'मजबूत बिहार' का डर क्यों दिखाने लगे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री?

BIhar Politics: एक तरफ जहां राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी वाला नारा देते हैं. वहीं, दूसरी तरफ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन आबादी के हिसाब से परिसीमन की नीति का विरोध कर रहे हैं. संयोग देखिए कि ये सभी नेता इंडिया ब्लॉक के स्तंभ हैं.

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एमके स्टालिन से लालू-तेजस्वी के तगड़े संबंध पर 'मजबूत बिहार' का डर क्यों दिखाने लगे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री?
एमके स्टालिन से लालू-तेजस्वी के तगड़े संबंध पर 'मजबूत बिहार' का डर क्यों दिखाने लगे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री?
Sunil MIshra|Updated: Mar 03, 2025, 07:10 PM IST
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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का एक बयान वायरल हो रहा है, जिसमें वे राज्य के नवविवाहित जोड़ों से फैमिली प्लानिंग पर फोकस न करने की बात कहते हैं. स्टालिन नवविवाहित जोड़ों से अपील करते हैं कि वे तुरंत बच्चे पैदा करें और अच्छा सा तमिल नाम रखें. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के इस बयान का बिहार कनेक्शन निकलकर सामने आ गया है. अब सवाल उठता है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से तगड़े संबंध होने के बावजूद स्टालिन 'मजबूत बिहार' का क्यों विरोध कर रहे हैं? दरअसल, एमके स्टालिन परिसीमन को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं और 1971 की जनसंख्या को परिसीमन का आधार बनाने की मांग कर रहे हैं. उन्हें डर है कि यदि अभी की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है तो बिहार और यूपी की ताकत तमिलनाडु और दक्षिण भारत के कई राज्यों की तुलना में ज्यादा हो जाएगी.

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स्टालिन की बातों का विरोध करते हुए भाजपा के स्थानीय प्रवक्ता सीआर केशवन का कहना है कि क्या डीएमके अपने सहयोगी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के 'जितनी आबादी, उतना हक' वाले अपील पर स्पष्टीकरण मांग सकती है? केशवन की बातों से अलग बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव भी तो 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी' का नारा देते रहे हैं. तो क्या स्टालिन अपने संबंधों का हवाला देते हुए लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के समक्ष विरोध दर्ज करा सकते हैं? राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव के अलावा समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी तो यही नारा देते रहे हैं और ये सभी लोग इंडिया ब्लॉक में एक साथ भाजपा के विरोध की राजनीति करते रहे हैं.

दरअसल, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन अपने राज्य के निवासियों को परिसीमन का डर दिखा रहे हैं और इस बहाने वे जाहिर करना चाह रहे हैं कि इससे यूपी और बिहार की ताकत तमिलनाडु से कई गुना ज्यादा हो जाएगी. इसलिए वे नवविवाहित जोड़ों से परिवार नियोजन पर ध्यान न देने और जल्द बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं. परिसीमन एक सांविधानिक प्रक्रिया है, जिसके हिसाब से लोकसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व में बदलाव होता है. यह आबादी के हिसाब से तय होता है. जिस राज्य की जितनी आबादी होगी, उसी अनुपात में वह लोकसभा में प्रतिनिधियों को भेज सकेगा. आबादी के लिहाज से जाहिर है कि बिहार और यूपी के हिस्से में लोकसभा में अधिक सीटें आएंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर भारत में दक्षिण भारत की तुलना में जनसंख्या घनत्व कहीं ज्यादा है. 

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माना जा रहा है कि अगर प्रति 20 लाख आबादी पर एक लोकसभा सीटों की संख्या तय की गई तो देश भर में 753 लोकसभा सीटें होंगी और इसमें उत्तर भारत की सीटों में भारी बढ़ोतरी हो सकती है. पिछले 50 साल से दक्षिण भारत के 5 राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की लोकसभा में 543 में से 129 सीटें हैं. लोकसभा की कुल सीटों का यह केवल 24 प्रतिशत होता है. नए परिसीमन के बाद भी इन 5 राज्यों में कुल सीटों की संख्या में 15 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है और कुल सीटें 144 हो सकती हैं. जब लोकसभा की सीटें 743 होंगी तब दक्षिण भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व केवल 19 प्रतिशत रह जाएगा. इसका मतलब यह होगा कि पहले की सीटों के प्रतिशत में 5 प्रतिशत की कटौती हो जाएगी. 

दूसरी ओर, उत्तर भारत के राज्यों के प्रतिनिधित्व में भारी इजाफा हो सकता है. उत्तर प्रदेश में जहां 80 के बदले 128 सांसद हो सकते हैं तो बिहार में 40 से बढ़कर यह संख्या 70 तक जा सकती है. मध्य प्रदेश में 29 लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 47 हो सकती है तो राजस्थान में यह 25 से 44 ​तक जा सकती है. अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में भी लोकसभा की सीटों की संख्या इसी अनुपात में बढ़ सकती हैं. दरअसल, परिसीमन पिछले 50 साल से टलता आ रहा है. इंदिरा गांधी की सरकार ने 1976 में इसे 25 सालों के लिए टाल दिया था तो 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी इसे आगे के 25 सालों के लिए लटका दिया था. यह समय 2026 में पूरा होने वाला है. अगर 2026 में परिसीमन हो पाता है तो लोकसभा की सीटों की संख्या में भी परिवर्तन होना लाजिमी है. 2021 में अगर जनगणना होती तो 2026 तक लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या में परिवर्तन हो जाता, लेकिन अभी तक जनगणना ही नहीं हुई है तो संभव है कि 2031 तक ऐसा हो पाए.

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