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सुप्रीम कोर्ट से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को राहत, झारखंड सरकार की याचिका खारिज, लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को झारखंड सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2023 में रांची में विरोध प्रदर्शन को लेकर झारखंड भाजपा नेताओं और सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी. अदालत ने टिप्पणी की कि आजकल विरोध प्रदर्शनों में निषेधाज्ञा का दुरुपयोग किया जा रहा है.

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Relief to BJP MP Nishikant Dubey from Supreme Court Jharkhand government petition rejected
Relief to BJP MP Nishikant Dubey from Supreme Court Jharkhand government petition rejected
Saurabh Jha|Updated: Jan 27, 2025, 06:02 PM IST
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उच्चतम न्यायालय ने झारखंड सरकार की याचिका खारिज कर दी, जिसमें 2023 में रांची में भाजपा नेताओं और सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी. यह मामला 14 अगस्त, 2024 को उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश से संबंधित था. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि वे इस फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते.

धारा 144 के दुरुपयोग पर अदालत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि जब दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू थी, तब भी भाजपा नेताओं और उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया. वकील ने यह भी दावा किया कि यह प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें कई लोग घायल हुए. हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आजकल किसी भी विरोध प्रदर्शन के दौरान निषेधाज्ञा का दुरुपयोग करने का चलन बन गया है.

संविधान के अधिकार का उल्लंघन नहीं
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है, तो उसे सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लगाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से हो, तो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत यह मौलिक अधिकार है. उच्च न्यायालय ने भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को खारिज करते हुए यही निर्णय लिया था.

झारखंड सरकार की याचिका पर अंतिम फैसला
झारखंड सरकार की ओर से उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले में किसी प्रकार की हस्तक्षेप नहीं करेगा. इसके साथ ही यह भी बताया गया कि यदि प्रदर्शन शांतिपूर्ण हो और संविधान द्वारा निर्धारित अधिकारों का पालन किया जाए, तो इसे कानून के खिलाफ नहीं माना जा सकता.

इनपुट एजेंसी- भाषा

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