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Astro News: कुंडली में मौजूद राजयोग के बारे में जानते हैं आप? ऐसे दिलाता है अपार सफलता

ज्योतिष के अनुसार किसी भी कुंडली में शुभ और अशुभ योग बनते हैं. ये योग कुंडली में ग्रहों की स्थिति और इनके भावों में स्थापित होने की वजह से बनता है. वहीं ग्रहों के गोचर से भी कई तरह के योग का निर्माण होता है. ऐसे में आपको बता दें कि कुंडली में राजयोग का भी निर्माण होता है.

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फाइल फोटो
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Gangesh Thakur|Updated: Jan 21, 2024, 05:10 PM IST
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Astro News: ज्योतिष के अनुसार किसी भी कुंडली में शुभ और अशुभ योग बनते हैं. ये योग कुंडली में ग्रहों की स्थिति और इनके भावों में स्थापित होने की वजह से बनता है. वहीं ग्रहों के गोचर से भी कई तरह के योग का निर्माण होता है. ऐसे में आपको बता दें कि कुंडली में राजयोग का भी निर्माण होता है. ऐसे में राजयोग के निर्माण के साथ यह जातक को फर्श से आसमान तक पहुंचा देता है. वह इतनी सफलताएं दिलाता है कि जातक के जीवन में मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, धन-वैभव किसी भी चीज की कमी नहीं रह जाती है. 

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ऐसे में कुछ राजयोग जो बेहद शक्तिशाली माने गए हैं वह भाव योग कहलाते हैं. जो कुंडली के भावों की वजह से बनता है.  वहीं दूसरा राजयोग वह होता है जो ग्रहों के योग से बनता है. ग्रहों के योग से बनने वाले राजयोग तब कुंडली में फल देते हैं जब उस ग्रह की अन्तर्दशा या महादशा चल रही होती है. वहीं भावों की वजह से बनने वाले राजयोग के साथ ऐसा नहीं है. यह खासकर नवमांश कुंडली में बन रहा होता है या फिर केंद्र या त्रिकोण के स्वामी के परिवर्तन से बन रहा होता है. 

बता दें कि जब एक ही भाव में दो या दो से अधिक ग्रह बैठें या गोचर करें या फिर किसी अलग भाव में बैठकर एक दूसरे पर दृष्टि रखें तो इस प्रकार के बनने वाले योग को ग्रह योग कहते हैं और यह शुभ और अशुभ दोनों हो सकते हैं. वहीं भाव से बनने वाले राजयोग में नवमांश कुंडली का महत्व ज्यादा होता है. ऐसे में अगर दो या तीन भाव या दो या तीन ग्रह स्वतः वर्गोत्तम हो जाएं तो इससे शक्तिशाली राजयोग बनता है. ये हर परिस्थिति में उत्तम फल प्रदान करते हैं. इसे उदित नवमांश का वर्गोत्तमी होना कहा जाता है. 

वहीं विपरीत राजयोग भी है. ऐसे में इस राजयोग में 6, 8, 12 वें भाव पर विचार किया जाता है. इस में अगर इन तीनों भावों में से किसी भी भाव का स्वामी किसी दूसरे भाव में हो तो ये राजयोग बनता है. यह राजयोग कम ही बनता है और इसका निर्माण ही विपरीत परिस्थितियों में होता है ऐसे में इसे विपरीत राजयोग कहते हैं. 

इसके साथ ही एक शक्तिशाली राजयोग और बनता है जिसके बारे में कहा जाता है कि ग्रह अपने भाव में नहीं बैठकर उस भाव पर अपनी दृष्टि डाल रहा हो. ऐसा करने से जो फल मिलता है वह शक्तिशाली राजयोग का फल होता है. ऐसे में आपको बता दें कि कोई ग्रह अपने भाव में मौजूद हो तो वह अपनी दशाओं में ही अच्छा फल देगा. लेकिन, वही अगर किसी भाव में बैठकर अपने भाव पर दृष्टि डाल रहा हो तो राजयोग जैसा फल हमेशा देगा. 

केंद्र और त्रिकोण के स्वामी भी अगर भाव परिवर्तन करें तो इससे भी राजयोग का निर्माण होता है. ऐसे में इस केंद्र या त्रिकोण राजयोग की वजह से जातक को जीवन भर शुभ फल मिलता है. 

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