शेखपुरा: बिहार के शेखपुरा के किसानों पर प्रकृति की दोहरी मार हुई है। जहां एक तरफ धान में कीड़ा खोरी से बड़े पैमाने पर धान के पैदावार पर असर हुआ है. जबकि दूसरी तरफ किसानों द्वारा लगाए गए मसूर की फसल लहलहाने के बाद फिर से सुख गए. जिसके कारण किसानों को लाखों का नुकसान हुआ है. रबी फसल के तौर पर मसूर फसल नुकसान के बाद किसान काफी परेशान है और स्थानीय जिला प्रशासन से उचित जांच कर किसानों को मुआवजा दिलाए जाने की गुहार लगाई है.
शेखपुरा जिले के सदर प्रखंड के गगरी पंचायत के गुनहेसा गांव का ये मामला है. गांव के अधिकांश किसान हर वर्ष की तरह इस बार भी ढाई सौ बीघा से ज्यादा के जमीन मसूर की खेती को लेकर बीज डाला था. मसूर का बीज अंकुरित होकर पौधा भी हो गया और पूरा खेत लहलहाने लगा. लेकिन अचानक देखते ही देखते पूरा ढाई सौ बीघा से ज्यादा का जमीन पर उगा फसल सूख कर नष्ट हो गया. जब तक किसान कुछ समझ पाते तब तक पूरी खेती चौपट हो गई.
किसानों ने कहा कि कर्ज लेकर मसूर के बीज काफी ऊंचे दामों पर खरीद की. कुछ किसान प्रखंड कृषि कार्यालय से भी बीज की खरीद की. जबकि छोटे किसान महाजन से मसूर के बीज की खरीद की. इसके बाद फसल उगने से पहले खेत की जुताई कर लगाया, लेकिन देखते ही देखते पूरी फसल नष्ट हो गई. किसानों ने कहा कि इस बार बीज और खेत की जुताई दोनों महंगा हो गया. किसान महाजन से कर्ज लेकर फसल लगाई कि पैदावार होने के बाद महाजन को राशि लौटा देगे. लेकिन अचानक फसल के नुकसान होने पर किसान काफी परेशान है. किसानों ने कहा कि अगर खेत में नमी होती तो एक बार फिर हिम्मत जुटा बीज बो देते, लेकिन खेत में नमी के साथ हाथ भी खाली हो गए. ऐसे में किसानों जिला प्रशासन के तरफ आंखे निहारे बैठे है, ताकि प्रशासनिक स्तर पर कुछ राहत मिल सके.
मसूर फसल नष्ट होने के बाद किसान का दल डीएम से मिल जिला प्रशासन से उच्च स्तरीय जांच की मांग कर पीड़ित किसानों को लाभ पहुंचाए जाने का गुहार लगाया है. किसानों ने कहा कि पूरे गांव के किसानों के समक्ष विकट स्थिति है. किसानों ने कहा कि ब्लॉक और घर का बीज दोनों अंकुरित होकर नष्ट हो गया. ऐसे में किसान प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों की कमर टूटने की बात कह भावुक हो रहे है. जबकि मुआवजा की मांग किया है. वहीं इस संबंध में डीएम ने कहा कि किसानों द्वारा फसल नुकसान की जानकारी मिली हैं. इसको लेकर कृषि विभाग को जांच का आदेश दिया गया है.
गौरतलब है कि गांव के 100 से ज्यादा किसान इस बार 250 सौ से ज्यादा की जमीन में मसूर की फसल लगाया. जबकि एक बीघा जमीन में खाद, बीज सहित खेत जुताई में 6 हजार से ज्यादा का खर्च आता है. ऐसे में फसल नष्ट होने पर सामंत किसान तो किसी तरह अपने आप को संभाल लेंगे, जबकि छोटे किसान के समस्त महाजन का कर्ज के साथ पूरे साल भर इंतजार किसी तपस्या से कम नहीं होगा. जरूरत है जिला प्रशासन किसानों के इस समस्या को गंभीरता से ले ताकि किसानों को कुछ राहत मिल सके, साथ ही वैकल्पिक खेती के लिए कृषि विभाग से मार्गदर्शन की मांग करे, ताकि किसानों को खेती बोझ न बने.
इनपुट- रोहित कुमार
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