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Sheikhpura News: ‘जाति क्या है?’ पूछकर थूक चटवाया, फिर बेरहमी से पीटा, फिर एसपी ने रौबदार दरोगा की निकाली हेकड़ी

शेखपुरा के मेहुस थाना क्षेत्र में थाना प्रभारी द्वारा एक ई-रिक्शा चालक की बेरहमी से पिटाई का मामला सामने आया है. पीड़ित ने आरोप लगाया कि साइड नहीं देने पर उसे थाने ले जाकर जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया गया और थूक चटवाया गया.

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शेखपुरा पुलिस की बर्बरता से कांपा इंसाफ
शेखपुरा पुलिस की बर्बरता से कांपा इंसाफ
Saurabh Jha|Updated: Jul 03, 2025, 10:57 PM IST
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शेखपुरा जिले के मेहुस थाना क्षेत्र में पुलिस की अमानवीयता का एक गंभीर मामला सामने आया है. आरोप है कि सिर्फ साइड न देने पर थाना प्रभारी प्रवीण चंद्र दिवाकर ने एक ई-रिक्शा चालक की सरेआम बेइज्जती और बेरहमी से पिटाई की. पीड़ित प्रद्युम्न कुमार नामक युवक मेहुस चौक पर अपनी गाड़ी से सवारी उतार रहा था, इसी दौरान पीछे से सादे लिबास में बुलेट पर सवार थानाध्यक्ष पहुंचे और हॉर्न बजाने के बावजूद ई-रिक्शा न हटने पर आपा खो बैठे.

थानाध्यक्ष ने फिल्मी अंदाज में अपनी बाइक ई-रिक्शा के सामने लगाकर पहले सड़क पर गाली-गलौज की, फिर जवानों की मदद से ई-रिक्शा चालक को जबरन थाने ले गए. वहां पीड़ित की लाठी-डंडों से जमकर पिटाई की गई. प्रद्युम्न ने बताया कि वह बार-बार कहता रहा कि उसे हॉर्न सुनाई नहीं दिया, लेकिन थानाध्यक्ष सुनने को तैयार नहीं हुए.

प्रद्युम्न ने थानाध्यक्ष पर जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल और थूक चटवाने जैसा अपमान करने का आरोप भी लगाया. उसका कहना है कि उसे बार-बार जाति पूछकर अपशब्द कहे गए और बुरी तरह मारा गया. थूक चटवाने के बाद ही थानाध्यक्ष का गुस्सा शांत हुआ और उसे थाने से बाहर जाने दिया गया.

थाने से छूटने के बाद युवक ने गांव में लोगों को पूरी घटना बताई और फिर इलाज के लिए सदर अस्पताल पहुंचा. मामले की सूचना परिवार द्वारा वरीय अधिकारियों को दी गई, जिसके बाद एसपी के आदेश पर एसडीपीओ डॉ. राकेश कुमार ने जांच की. प्राथमिक जांच में मारपीट की पुष्टि हुई.

जांच में दोषी पाए जाने के बाद थानाध्यक्ष प्रवीण चंद्र दिवाकर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है. एसडीपीओ ने स्पष्ट कहा कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और वर्दी में रहते हुए भी कानून का उल्लंघन करने पर कार्रवाई तय है.

घटना के बाद इलाके में पुलिस के रवैये को लेकर आक्रोश है. लोगों का कहना है कि सरकार भले ही जनता से मित्रवत व्यवहार की अपील करे, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है. सवाल उठ रहा है कि क्या “पीपुल्स फ्रेंडली पुलिसिंग” सिर्फ सरकारी भाषणों तक ही सीमित है?

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