शेखपुरा: शेखपुरा जिले में धान की कटाई के साथ ही खेतों में पराली जलाने की समस्या फिर से उभर आई है. किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर हार्वेस्टर से धान की कटाई के बाद खेतों में बची पराली को आग के हवाले किया जा रहा है. इसके चलते न केवल खेतों में धुएं का गुबार उठ रहा है, बल्कि वातावरण भी दूषित हो रहा है. पराली जलाने से जमीन की उर्वरक क्षमता भी कमजोर हो रही है, जिससे भविष्य में फसल उत्पादन पर असर पड़ सकता है.
किसान क्यों जला रहे हैं पराली?
किसानों का कहना है कि पराली को जलाना उनके लिए सस्ता और तेज विकल्प है. फसल कटाई के बाद खेत को दोबारा तैयार करने के लिए पराली हटाना जरूरी होता है, लेकिन पराली प्रबंधन की अन्य तकनीकों का खर्च और समय अधिक होने की वजह से वे इसे जलाने का सहारा ले रहे हैं.
कृषि विभाग की भूमिका पर सवाल
कृषि विभाग द्वारा लगातार यह दावा किया जा रहा है कि किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है. विभाग विभिन्न माध्यमों से किसानों को पराली प्रबंधन की आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई इलाकों में किसान पराली जलाना जारी रखे हुए हैं. ताजा मामला घाट कुसुंबा प्रखंड के माफो गांव का है, जहां हार्वेस्टर से कटाई के बाद बड़ी मात्रा में पराली जलती नजर आई. विभागीय दावों के विपरीत, यहां खेतों में आग और धुएं का साफ असर देखा जा सकता है.
प्रशासन की प्रतिक्रिया
शेखपुरा के डीएम का कहना है कि अब तक इस मामले की कोई शिकायत औपचारिक रूप से सामने नहीं आई है. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कोई मामला संज्ञान में आता है, तो विभागीय गाइडलाइंस के अनुसार कार्रवाई की जाएगी. साथ ही डीएम ने किसानों से अपील की है कि वे पराली जलाने से बचें, क्योंकि यह पर्यावरण और कृषि दोनों के लिए नुकसानदायक है.
पराली जलाने के दुष्प्रभाव
पराली जलाने से निकलने वाला धुआं वातावरण को प्रदूषित करता है, जिससे मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है. इसके अलावा, खेत की मिट्टी की उर्वरता भी घटती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पराली जलाने की बजाय इसका प्रबंधन अन्य तकनीकों से करना चाहिए, जैसे मल्चिंग या बायोमास ब्रिकेट्स बनाना.
समाधान की जरूरत
पराली जलाने की इस समस्या का समाधान केवल जागरूकता से नहीं होगा, बल्कि किसानों को आर्थिक मदद और पराली प्रबंधन की सरल तकनीकों की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी होगी. प्रशासन को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों और पर्यावरण दोनों को बचाया जा सके.
इनपुट- रोहित कुमार
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