Bihar Village Of Hospital: अब तक तो आपने बिहार के अलग-अलग जगहों की विकास यात्रा और उनकी खासियतों को देखा-सुना होगा. आज हम आपको नेपाल और यूपी की सीमा पर स्थित पश्चिमी चंपारण जिले का आदिवासी बहुल क्षेत्र हरनाटांड की विकास यात्रा पर लेकर चल रहे हैं. यह क्षेत्र कभी नक्सलीयों की पनाहगाह हुआ करता था, लेकिन आज मेडिकल हब बन गया है और अस्पतालों के गांव के नाम से मशहूर हो रहा है. दरअसल, बगहा 2 प्रखंड के आदिवासी बहुल्य हरनाटांड में एक चिकित्सक कृष्णमोहन रॉय की सोंच और सेवा भाव से प्रेरित होकर दर्जनों युवक-युवतियों ने मेडिकल के क्षेत्र में अपना करियर बनाया है. लिहाजा, आज यहां महज 100 मीटर के दायरे में तकरीबन 40 निजी क्लीनिक और अस्पताल संचालित किए जा रहे हैं. इन्हें आदिवासी डॉक्टर ही चला रहे हैं. इससे रेड कोरिडोर के इस इलाके की फिजा बदल गई है.
हरनाटांड को थरूहट की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है. इसके बावजूद अब यह क्षेत्र आदिवासी डॉक्टरों के लिए जाना जा रहा है. आदिवासी डॉक्टरों ने यहां सस्ते और रियायती दरों पर इलाज का जो बीड़ा उठाया है, वह निश्चित तौर पर काबिले तारीफ है. लिहाजा बिहार में इस गांव की पहचान अब विलेज ऑफ हॉस्पिटल के रूप में बन गई है. बताया जा रहा है की वर्ष 1984 में दरभंगा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाले कृष्णमोहन रॉय आदिवासी बहुल क्षेत्र के पहले डॉक्टर बने थे, जिसके बाद उप स्वास्थ्य केंद्र नक्सल प्रभावित लौकरिया में उनका पदस्थापन हुआ. साल 1992 में जब उनका स्थानांतरण सीतामढ़ी हुआ तो पारिवारिक मजबूरियों की वजह से उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का फैसला किया और सेवा भाव से उन्होंने हरनाटांड़ में ही अपनी निजी क्लीनिक खोल ली थी. फिर थारू आदिवासियों के रॉल मॉडल बने कृष्ण मोहन राय के पीछे नए युवाओं की लम्बी कतार लग गई. यहां के युवाओं ने भी मेडिकल क्षेत्र में अपना करियर बनाने की ठानी और कामयाबी भी हासिल की.
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यही वजह है कि आज दर्जन भर सर्जन, एमडी मेडिसिन और ऑर्थो के साथ-साथ लेपरोस्कॉपी व आंख समेत दांत के अलावा महिला प्रसूता विशेषज्ञ ऐसे विभिन्न विभागों के बड़े डिग्री धारी चिकित्सक यहां लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं. खास बात यह है कि अस्पतालों के इस गांव में सभी विभाग के चिकित्स्कों की आउट डोर ओपीडी में फीस महज 50 से 100 रूपये है. वह भी अत्यधिक गरीब लोगों के लिए अक्सर माफ कर दी जाती है. लिहाजा आलम यह है की हर रोज बिहार के कई जिलों समेत सीमावर्ती नेपाल और उतर प्रदेश से मरीजों की भारी भीड़ उमड़ी रहती है.
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बता दें कि नेपाल की तराई से सटे आदिवासी बहुल्य हरनाटांड में वर्ष 1970-80 तक सप्ताह में महज एक दिन बुधवार को हाट और बाजार लगा करता था. तब लोग डाकूओं और नक्सलियों की शरणस्थली में बमुश्किल अपने घरों से निकलकर इलाज के लिए अस्पताल पहुंच पाते थे. तब एम्बुलेंस भी नहीं थीं तो चारपाई ही सहारा था. लेकिन आज समय और माहौल दोनों बदल चुके हैं. आज जिला नक्सल मुक्त घोषित हो चुका है और इस गांव ने एक नया कृतिमान रचा है.
रिपोर्ट- इमरान अजीज