Sikta Assembly Seat Profile: बिहार में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. अक्टूबर-नवंबर तक चुनाव कराए जा सकते हैं. इस बार पश्चिम चंपारण की सिकटा विधानसभा सीट पर सभी की निगाहें रहेंगी. कभी कांग्रेस और वाम दलों का गढ़ रही यह सीट आज तीन मुख्य ध्रुवों- बीजेपी, कांग्रेस और वाम दलों (सीपीआईएमएल) के बीच कड़ी टक्कर का मैदान बन चुकी है. कांग्रेस और वामदल दोनों महागठबंधन का हिस्सा हैं. लिहाजा इस बार प्रशांत किशोर जन सुराज मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की पूरी कोशिश करेगी.
सियासी इतिहास
1950 और 60 के दशक में कांग्रेस ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाई थी. कांग्रेस ने लगातार पांच बार यहां पर विजय प्राप्त की. 1980 और 1985 में जनता पार्टी ने बाजी मारी, तो 1990 में फैयाजुल आजम ने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की. 1991 के उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी दिलीप वर्मा ने इस सीट पर पहली बात जीत हासिल की थी. इसके बाद 2010 तक दिलीप वर्मा का वर्चस्व रहा. वे कभी निर्दलीय, कभी बीजेपी और कभी समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीतते रहे. 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में सिकटा सीट पर भाकपा-माले के उम्मीदवार बीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने 49075 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी दिलीप वर्मा को हराया था.
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जातीय समीकरण
सिकटा विधानसभा सीट पर यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है. इसी कारण इस सीट पर महागठबंधन का दबदबा बना रहता है. रविदास, कोइरी और ब्राह्मण जातियां भी प्रत्याशी के जीत हार में अहम भूमिका अदा करते हैं. चुनाव के अनुसार सिकटा विधानसभा के कुल मतदाताओं की संख्या 2,98,461 है. जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,58,248 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,40,201 है. 12 मतदाता थर्ड जेंडर हैं.
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इलाके के मुद्दे और समस्याएं
यह क्षेत्र हर साल नेपाल से आने वाली नदियों की बाढ़ और कटाव की मार झेलता है. बरसात के मौसम में गांवों का संपर्क टूट जाता है, जिससे मतदाताओं में नाराजगी बढ़ती है. सड़क, जल निकासी और आपदा राहत व्यवस्था चुनावी एजेंडे का अहम हिस्सा बनती रही हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है.
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