DNA Analysis: विद्वान कहते हैं भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए आपको अपनी विरासत से जुड़ना होगा. विरासत सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं होती है. साहित्य, पेंटिंग, बिल्डिंग्स जैसी वस्तुएं भी विरासत और इतिहास का हिस्सा होती हैं. आज हम ऐसी ही विरासत का विश्लेषण कर रहे हैं. ये चर्चा इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र में कोल्हापुर जिले के विशालगढ़ किले में कुर्बानी को लेकर विवाद हो रहा है. विवाद की वजह और विरासत को खराब करने के आरोपों पर हम आपको विस्तार से जानकारी देंगे. लेकिन पहले विशालगढ़ किले में कुर्बानी के विवाद का कानूनी पक्ष समझते हैं.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने विशालगढ़ किले में कुर्बानी की इजाजत दी है. कोर्ट के 14 जून 2024 के आदेश के मुताबिक बंद और निजी क्षेत्र में कुर्बानी की अनुमति होगी. बकरीद और 8 जून से 12 जून तक होनेवाले उर्स के दौरान पशुओं की कुर्बानी दी जा सकेगी.
#DNAWithRahulSinha | 'स्वराज' की पहचान बदलने की साजिश? छत्रपति का किला..बकरा कटेगा?
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— Zee News (@ZeeNews) June 4, 2025
यहां आपके लिए ये भी जानना जरूरी है कि महाराष्ट्र सरकार ने ऐतिहासिक महत्व के विशालगढ़ किले में कुर्बानी पर रोक लगा दिया था. सरकार के इस फैसले के खिलाफ वर्ष 2023 में हजरत पीर मलिक रेहान मीरा साहेब दरगाह ट्रस्ट ने याचिका दायर की थी. इस विवाद के सभी पहलुओं के विश्लेषण से पहले हम आपको विशालगढ़ किले के बारे में छोटी सी जानकारी देते हैं.
वर्ष 1058 में शिलाहार राजा मार्सिंह ने विशालगढ़ किले का निर्माण कराया था. वर्ष 1659 में छत्रपति शिवाजी ने इसे आदिलशाह से जीता था. छत्रपति शिवाजी ने इस किले का नाम बदलकर विशालगढ़ रखा था.
विशालगढ़ किले का इतिहास
विशालगढ़ किले में जो हजरत पीर मलिक रेहान मीरा साहेब दरगाह ट्रस्ट कुर्बानी और उर्स के लिए कानूनी जंग लड़ रहा है कि उसका इतिहास भी आज हमारे लिए जानना जरूरी है. इतिहासकारों के मुताबिक, वर्ष 1469 में मलिक रेहान ने विशालगढ़ किले पर हमला किया था. 6 बार कोशिश के बाद भी वो किले को जीतने में नाकाम रहा. 7वीं कोशिश में मलिक रेहान ने किला तो जीत लिया लेकिन बाद में किले पर कब्जे को जंग में उसकी मृत्यु हो गई. उसी आक्रमणकारी मलिक रेहान के नाम पर यहां दरगाह बनाई गई. सोचिए जो किला स्वराज के स्वर्णिम इतिहास का साक्षी है उसकी पहचान एक आक्रमणकारी से जोड़ने की मानसिकता किन लोगों की हो सकती है. अब हम आपको बताना चाहेंगे की विशालगढ़ के किले का छत्रपति शिवाजी और स्वराज के क्या संबंध है
मार्च 1660 में पन्हाडा किले में बीजापुर की सेना ने छत्रपति शिवाजी को घेर लिया था. 4 महीने तक इंतजार के बाद शिवाजी महाराज पन्हाड़ा किले से निकल गए. पन्हाडा से शिवाजी विशालगढ़ के किले में पहुंचे
मराठा सैनिकों और बीजापुर की फौज के बीच भीषण युद्ध
मराठी लेखक कृष्णराव अर्जुन केलूसकर ने अपनी पुस्तक शिवाजी की जीवनी में लिखा है कि बीजापुर की फौज ने शिवाजी को विशालगढ़ पहुंचने से रोकने की कोशिश की. घोरखेड में मराठा सैनिकों और बीजापुर की फौज के बीच भीषण युद्ध हुआ था. तमाम बाधाओं को पार कर शिवाजी महाराज विशालगढ़ किले पहुंचे थे. विशालगढ़ किले में पहुंचकर शिवाजी महाराज ने नए सिरे से शक्ति संचयन किया, रणनीति बनाई और स्वराज के स्वप्न को आगे बढ़ाया. विशालगढ़ में बनाई रणनीति के बाद छत्रपति ने वर्ष 1665 में पुरंदर, वर्ष 1666 में उमरगढ़, वर्ष 1673-74 में बरार और खानदेश, वर्ष 1682-83 में कल्याण, वर्ष 1697 में भूपलगढ़ की लड़ाई लड़ी.
महाराष्ट्र के इतिहास में विशालगढ़ के किले का महत्व
अब आप समझ सकते हैं कि स्वराज और महाराष्ट्र के इतिहास में विशालगढ़ के किले का कितना महत्व है. ऐसे गौरवशाही इतिहास को समेटे किले में दरगाह कहां से आ गई. इसका जवाब है अतिक्रमण. सरकारी दस्तावेजों को मुताबिक, विशालगढ़ किले में कुल 158 अवैध ढांचे बनाए गए. 100 से ज्यादा अवैध निर्माण एक खास समुदाय के हैं.
वर्ष 2000 में प्रतापगढ़ किले में अवैध अतिक्रमण
छत्रपति शिवाजी के स्वराज और शौर्य का साक्षी रहा का साक्षी विशालगढ़ का किला अवैध अतिक्रमण का शिकार हो गया. हिंदवी स्वराज की विरासत की पहचान अब एक आक्रमणकारी के नाम से जोड़ने की साजिश हो रही है. स्वराज की पहचान को बदलने की इस महीन साजिश को अब बड़े कैनवस पर समझते हैं. यहां हम आपको बताना चाहेंगे कि वर्ष 2000 में प्रतापगढ़ किले में अवैध अतिक्रमण कर अफजल खान की कब्र का विस्तार किया गया. मूल रूप से 5 वर्ग फीट की कब्र को बढ़ाकर 1,000 वर्ग फीट कर दिया गया था. रायगढ़ किले में अवैध तरीके से मस्जिद बनाई गई. सतारा में वंदनगढ़ किले का नाम बदलकर 'पीर किला वंदनगढ़' करने की साजिश हुई. लोहागढ़ किले में उमर शाहवली बाबा का उर्स मनाने की कोशिश हुई
ये सभी किले शिवाजी महाराज की विरासत और स्वराज के साक्षी रहे हैं. सोचिए इन सभी किलों को आखिर अक्रमणकारियों के नाम से जोड़ने की साजिश कौन कर रहा है. ये साजिश क्यों हो रही है. कहीं दरगाह, कही उर्स तो कही कुर्बानी से ऐतिहासिक पहचान को मिटाकर नई पहचान बनाने के पीछे कौन सी सोच काम कर रही है.
बेहद महीन साजिश के तहत इतिहास में झूठे तथ्यों की मिलावट की जा रही है. पहले अतिक्रमण, फिर अवैध निर्माण और फिर धार्मिक आयोजनों के जरिए झूठा नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है. छत्रपति शिवाजी की स्वराज वाली विरासत को विकृत किया जा रहा है. हम यही कहेंगे की समय रहते जिम्मेदार लोगों को सतर्क होना चाहिए. विरासत पर अवैध कब्जे की कोशिश पर सख्त एक्शन होना चाहिए. स्वराज के इतिहास में विकृत मानसिकता के लोगों की घुसपैठ को रोका जाना चाहिए.
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