Waqf Bill 2025 in Supreme Court: दुनिया के अधिकांश विवादों की जड़ में जमीन का मुद्दा अक्सर आसानी से दिख जाता है. जमीन की करें तो देश में सबसे ज्यादा जमीन रेलवे, सेना और वक्फ बोर्ड के पास है. रेलवे और सेना से 140 करोड़ जनता के हित जुड़ते हैं वहीं वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी को लेकर भारत में आए दिन कोई न कोई विवाद सामने आ ही जाता था. केंद्र की मोदी सरकार कहती है कि वक्फ की बहुत सी प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जा हो चुका है. दूसरी ओर वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों की वजह से ये बीते कई सालों से सुर्खियों में था. इसकी खामियों को दुरुस्त करने के नाम पर केंद्र सरकार ने मेहनत की और वक्फ संशोधन बिल पहले लोकसभा फिर राज्यसभा में पास कराकर इतिहास रच दिया. राज्यसभा की मंजूरी की बात करें तो इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 वोट पड़े.
पुरानी व्यवस्था खत्म हो गई... संशोधन बिल के विरोधी सड़कों पर उतरे
वक्फ बोर्ड के पास मौजूद असीमित शक्ति खत्म हो चुकी है. पुराना बिल विदा हो चुका है. संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद बहुत जल्द राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होते ही कानून बन जाएगा. मोदी सरकार कह रही है कि संशोधन विधेयक से देश के मुस्लिमों को कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन मुसलमानों का एक तबका इससे सहमत न होकर विरोध कर रहा है. वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ देश के कई शहरों में प्रदर्शन हुआ.
सुप्रीम कोर्ट दखल देगा या नहीं?
वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ देश के कई शहरों में प्रदर्शन हुआ. संशोधन बिल को मुसलमानों के पर्सनल मामले में दखल बताने वाले इस बिल के पास होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और असदुद्दीन ओवैसी ने संशोधन बिल के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि देश को चलाने वाली संसद में बने कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख होगा. अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो आइए बताते हैं कि क्या कुछ स्थितियां बन सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट संसद के फैसले पर दखल देगा या नहीं?
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि देश को चलाने वाली संसद में बने कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख होगा. अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो आइए बताते हैं कि क्या कुछ स्थितियां बन सकती हैं. तो पहले तो ये बता दें कि संशोधन बिल के पारित होने का मतलब है कि सरकार की रणनीति कामयाब रही है.
वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकारों पर नियंत्रण लगाने के लिए लाए गए संशोधन बिल को पास कराने की बहस के दौरान साल 1986 के शाहबानो केस का जिक्र हुआ. उस केस में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें SC ने तीन तलाक के बाद शाहबानो के पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. यानी सुप्रीम कोर्ट का फैसला न मानने के लिए अगर संसद कदम बढ़ा सकती है तो क्या इससे संसद के बनाए कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है? यानी क्या सर्वोच्च अदालत संसद के बनाए कानून को रद्द कर सकती है?
लीगल एक्सपर्ट के मुताबिक एपेक्स कोर्ट यानी सर्वोच्च अदालत को संविधान का संरक्षक माना जाता है. आम तौर पर संसद में पास बिलों को सुप्रीम कोर्ट रद्द नहीं करता है लेकिन अदालत संसद के बनाए गए कानूनों की समीक्षा कर सकता है कि वे संविधान के अनुरूप हैं कि नहीं. ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि संसद में बना कानून संविधान के खिलाफ है, तो वह उसे रद्द कर सकता है. हालांकि, देश की संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन वह भी संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 13 के मुताबिक अगर कोई कानून संविधान के विरुद्ध है तो उसे सुप्रीम कोर्ट रद्द कर सकता है. संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं जैसे सुप्रीम कोर्ट के पास केवल विशेष विधि और न्याय अधिकार होते हैं जो कि उन्हें किसी कानून को रद्द करने का अधिकार देते हैं.
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