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चौधरी ब्रह्म प्रकाश, दिल्ली के पहले CM की कहानी.. अक्खड़-तेज तर्रार, सिर्फ 3 साल में देना पड़ गया था इस्तीफा

First CM of Delhi:  साल 1952 में दिल्ली में अंतरिम विधानसभा का गठन हुआ जिसमें कुल 42 निर्वाचन क्षेत्र थे. लेकिन छह सीटें ऐसी थीं जहां से दो-दो सदस्य चुने गए, यानी कुल 48 विधायक विधानसभा में पहुंचे. कांग्रेस ने 39 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया.

चौधरी ब्रह्म प्रकाश, दिल्ली के पहले CM की कहानी.. अक्खड़-तेज तर्रार, सिर्फ 3 साल में देना पड़ गया था इस्तीफा
Gaurav Pandey|Updated: Feb 08, 2025, 07:16 AM IST
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Chaudhary Brahm Prakash: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बस आने ही वाले हैं और राजधानी को एक नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है. इसी कड़ी में हम आपको दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश की कहानी बता रहे हैं जो शायद आपने पहले नहीं सुनी होगी. कांग्रेस के ब्रह्म प्रकाश एक तेजतर्रार और जमीनी नेता थे लेकिन सत्ता के ऊपरी गलियारों में उनकी शैली को ज्यादा पसंद नहीं किया गया. यही वजह थी कि सिर्फ तीन साल के कार्यकाल के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

1952: दिल्ली को मिला पहला मुख्यमंत्री
असल में साल 1952 में दिल्ली में अंतरिम विधानसभा का गठन हुआ जिसमें कुल 42 निर्वाचन क्षेत्र थे. लेकिन छह सीटें ऐसी थीं जहां से दो-दो सदस्य चुने गए, यानी कुल 48 विधायक विधानसभा में पहुंचे. कांग्रेस ने 39 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया. पार्टी ने पहले देशबंधु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया लेकिन शपथ से ठीक पहले एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. इसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया.

चीफ कमिश्नर बनाम मुख्यमंत्री: टकराव की शुरुआत
1951 के स्टेट एक्ट के तहत दिल्ली में मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई थी लेकिन सत्ता का असली केंद्र चीफ कमिश्नर थे, जिन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करते थे. उस समय दिल्ली में उपराज्यपाल का कोई प्रावधान नहीं था. ब्रह्म प्रकाश ने मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन उनके और तत्कालीन चीफ कमिश्नर आनंद पंडित के बीच अक्सर मतभेद होते रहे. आनंद पंडित प्रधानमंत्री नेहरू के करीबी थे, जबकि ब्रह्म प्रकाश को केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत खास पसंद नहीं करते थे.

पार्टी के भीतर भी बढ़ी दिक्कतें
ब्रह्म प्रकाश अपनी साफगोई और अक्खड़ स्वभाव के लिए जाने जाते थे. वे सीधे तौर पर जनता के मुद्दों पर बात करते थे और प्रशासन से टकराने से भी नहीं हिचकिचाते थे. लेकिन उनके इस अंदाज से कांग्रेस आलाकमान खुश नहीं था. सत्ता के भीतर उनकी स्थिति कमजोर होती जा रही थी और केंद्र सरकार को यह लगने लगा कि ब्रह्म प्रकाश के नेतृत्व में प्रशासन सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा है.

12 फरवरी 1955: जब देना पड़ा इस्तीफा
चीफ कमिश्नर आनंद पंडित और ब्रह्म प्रकाश के बीच लगातार अनबन के कारण कांग्रेस आलाकमान भी उनके खिलाफ होता चला गया. आखिरकार, 12 फरवरी 1955 को चौधरी ब्रह्म प्रकाश से इस्तीफा ले लिया गया. उनकी जगह कांग्रेस ने गोविंद बल्लभ पंत की पसंद गुरमुख निहाल सिंह को नया मुख्यमंत्री बना दिया. 13 फरवरी 1955 को निहाल सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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