Chhatrapati Shivaji Maharaj Bagh Nakh: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय की प्रदर्शनी में रखे छत्रपति शिवाजी महाराज के 'बाघ नख' का अवलोकन किया. इस दौरान अखाड़ों ने उनके सामने पुराने शास्त्रीय कला को प्रदर्शित किया, जिसमें दानपट्टा, दंड युद्ध और तलवारबाजी दिखाई गई. बता दें कि पिछले साल जुलाई में लंबे इंतजार के बाद शिवाजी महाराज के इस 'बाघ नख' को लंदन से लाया गया था. छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता की शौर्य गाथा में इस बाघ नख का एक अलग ही महत्व है, जिसने कई बार शिवाजी महाराज की जान बचाई और उन्होंने कई दुश्मनों को धराशायी किया.
क्या जानते हैं ये बाघ नख होता क्या है?
आसान भाषा में समझें तो बाघ नख एक तरह का हथियार होता है, जिसका इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए किया जाता था. बाघ नख के आगे चार नुकीली छड़ें होती हैं, जो बाघ के पंजे की तरह दिखती है और इसी वजह से इसे बाघ नख कहा जाता है. इसके दोनों तरफ रिंग होती है, जिसे हाथ की पहली और चौथी उंगली में पहना जाता है और यह हथेली में फिट किया जाता था. जरूरत पड़ने पर इससे बाघ की तरह दुश्मन पर हमला किया जाता है. उस दौर में यह हथियार बेहद घातक माना जाता था और इसके वार से सामने वाले की मौत तक हो जाती थी.
शिवाजी महाराज ने इसी नख से चीरा था अफजल खान का पेट
इतिहास के जानकारों का मानना है कि साल 1659 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस बाघ नख से बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान का पेट चीर दिया था. उस समय शिवाजी महाराज और बीजापुर सल्तनत के प्रमुख आदिल शाह के बीच युद्ध चल रहा था. इस दौरान आदिल शाह ने अपने सेनापति अफजल खान को भेजा, जिसने छल से शिवाजी महाराज को मारने की योजना बनाई. फिर अफजल ने शिवाजी महाराज को मिलने का निमंत्रण भेजा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. इस दौरान अफजल खान ने शिवाजी महाराज को गल लगाने के बहाने पीठ में खंजर से हमला करने की कोशिश की, लेकिन शिवाजी महाराज पहले से सतर्क थे और उन्होंने इसी 'बाघ नख' से एक ही वार में अफजल खान का पूरा पेट चीर दिया.
बाघ नख देख आती है पराक्रम के इतिहास की याद...
मोहन भागवत ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के 'बाघ नख' देखकर हमें अपने पराक्रम के इतिहास की याद आती है, यह सभी को देखना चाहिए. उन्होंने युद्ध कौशल पर कहा कि तरुणों में व्यायाम और इन सबकी आदत होनी चाहिए. इससे पहले मोहन भागवत ने नागपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि संस्कृत देश की सभी भाषाओं की जननी है. सभी भाषाओं के विकास और इन सभी भाषाओं की जननी संस्कृत के विकास को भी राजश्रित (राजकीय संरक्षण) दर्जा मिलना आवश्यक है. संस्कृत को संचार का माध्यम बनना चाहिए और घर-घर तक पहुंचना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा था कि संस्कृत वह भाषा है जो हमारे भावों (भाव) को विकसित करती है. यह भाषा सभी को आनी चाहिए. अगर हम उस भाव के अनुसार जीवन जिएं तो संस्कृत का भी विकास होगा। देश की परिस्थिति के अनुसार भाषा का भी विकास होता है. आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा था कि मैंने खुद यह भाषा सीखी है, लेकिन मैं धाराप्रवाह नहीं बोल सकता हूं. संस्कृत विश्वविद्यालय को सरकारी संरक्षण के साथ जनता का भी संरक्षण मिलना जरूरी है. उन्होंने कहा कि 'आत्मनिर्भर' बनने के लिए सभी सहमत हैं, लेकिन हमें इसके लिए अपनी बुद्धि और ज्ञान का विकास करना होगा.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस)
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