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क्या जजों को रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद लेना चाहिए? चीफ जस्टिस ने खींच दी पत्थर की लकीर

CJI on Judges Taking Post: रिटायरमेंट के बाद कोई जज चुनाव प्रक्रिया में शामिल होते हैं या कोई सरकारी पद लेने में रुचि दिखाते हैं तो कई तरह के सवाल उठते हैं. अब भारत के चीफ जस्टिस बी आर गवई ने पत्थर की लकीर खींचते हुए कहा है कि वह रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेंगे. उन्होंने लोगों के भरोसे की बात करते हुए तमाम जजों को आईना भी दिखाया. 

क्या जजों को रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद लेना चाहिए? चीफ जस्टिस ने खींच दी पत्थर की लकीर
Arvind Singh|Updated: Jun 04, 2025, 02:03 PM IST
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Supreme Court News: चीफ जस्टिस बी. आर. गवई ने रिटायरमेंट के बाद जजों के चुनाव लड़ने या सरकारी पद स्वीकार करने पर चिंता जाहिर की है. जस्टिस गवई ने कहा कि ऐसा करना अपने आप में नैतिक सवाल तो उठाता ही है, न्यायपालिका में लोगों के भरोसे को भी कमजोर करता है. अगर कोई जज रिटायरमेंट के तुंरत बाद सरकारी पद लेता है या फिर चुनाव लड़ने के लिए पद से इस्तीफा देता है तो यह जाहिर तौर पर एक जज के तौर पर उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है. लोगों के बीच यह धारणा बन सकती है कि भविष्य में सरकारी पद हासिल करने या चुनाव लड़ने के मकसद से ये फैसले दिए गए हैं. चीफ जस्टिस ने यह बात यूके सुप्रीम कोर्ट में राउंड टेबल डिस्कशन में बोलते हुए कही.

मैं कोई सरकारी पद नहीं लूंगा: CJI

चीफ जस्टिस ने साफ कहा कि वह और उनके कई सहयोगियों ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की है कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेंगे. यह संकल्प इसलिए जरूरी है ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कायम रहे, लोगों का भरोसा कायम रहे. 

जजों को किसी भी दबाव से मुक्त होना चाहिए

चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायपालिका का काम सिर्फ न्याय देना नहीं है, बल्कि उसे संस्थान के तौर पर देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच को रख सके. न्यायपालिका को मान्यता लोगों के भरोसे से मिलती है और ये विश्वास तभी कमाया जा सकता है जब न्यायपालिका स्वतंत्रता, निष्पक्षता जैसे संवैधानिक मूल्यों को कायम रखे.

इस मौके पर चीफ जस्टिस ने जजों की नियुक्ति की मौजूदा प्रकिया कॉलेजियम सिस्टम पर भी अपनी बात रखी. चीफ जस्टिस ने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना हो सकती है, पर इसके बदले कोई भी व्यवस्था आती है तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं होना चाहिए. जजों को किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त होना चाहिए. न्यायिक समीक्षा का जो स्वतंत्र अधिकार जजों को मिला है, वो लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए जरूरी है. 

जजों ने इसलिए संपत्ति की घोषणा जैसा कदम उठाया

चीफ जस्टिस ने कहा कि जजों की ओर से संपत्ति की घोषणा जैसे पारदर्शी कदम न्यायपालिका में लोगों के भरोसे को मजबूत करते हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद यह तय किया है कि जज सार्वजनिक पदों पर बैठे दूसरे लोगों की तरह जनता के प्रति उत्तरदायी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर एक पोर्टल बनाया है जहां जजों ने अपनी संपति की घोषणा की है.

न्यायपालिका में करप्शन से SC सख्ती से निपटा

चीफ जस्टिस ने जस्टिस यशवंत वर्मा विवाद का सीधे तौर पर उल्लेख किए बगैर न्यायपालिका में करप्शन को लेकर अपनी बात रखी. चीफ जस्टिस ने कहा कि दुख की बात है कि न्यायपालिका में  करप्शन और न्यायिक कदाचार के कुछ मामले सामने आए हैं. इस तरह के मामले लोगों के न्यायापालिका में विश्वास को कमज़ोर करते हैं. हालांकि जब भी इस तरह के मामले सामने आए हैं सुप्रीम कोर्ट ने इससे निपटने के लिए ज़रूरी कदम उठाए हैं.

चीफ जस्टिस की स्पीच की मुख्य बातें - 

- जजों का रिटायरमेंट के बाद पद लेना या चुनाव लड़ना न्यायपालिका लोगों के भरोसे को कमजोर करता है. 

- मैं और मेरे कई सहयोगियों ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की है कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेंगे. 

- न्यायपालिका का काम सिर्फ न्याय देना नहीं है बल्कि उसे संस्थान के तौर पर देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच को रख सके.

- कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना हो सकती है, पर इसके बदले कोई भी व्यवस्था आती है तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं होना चाहिए. जजों को किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त होना चाहिए.

- सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर एक पोर्टल बनाया है जहां जजों ने अपनी प्रॉपर्टी की घोषणा की है. जज सार्वजनिक पदों पर बैठे दूसरे लोगों की तरह जनता के प्रति उत्तरदायी हैं.

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