Jammu Kashmir News: महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर मचा विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. इस विवाद की वजह से महाराष्ट्र की सियासत का माहौल गरमा गया है, इसी बीच जम्मू-कश्मीर में भी भाषा को लेकर राजनीति गर्मा गई है. मामला तब शुरू हुआ जब संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए काम करने वाले संगठन Samskrita Bharati Jammu Kashmir Trust ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को एक ज्ञापन सौंपकर राज्य के सभी स्कूलों और कॉलेजों में संस्कृत को अनिवार्य किए जाने की मांग रखी. इसके बाद उपराज्यपाल सचिवालय ने स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा विभाग को इस पर राय देने को कहा, जिसके बाद सियासी गलियारों में इसकी चर्चा होने लगी.
उप राज्यपाल की पहल के बाद यह प्रस्ताव संबंधित कार्यालयों को सुझाव और संसाधनों के मूल्यांकन के लिए भेजा गया. हालांकि शिक्षा विभाग का कहना है कि अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन यह प्रक्रिया सामने आते ही राजनीतिक विवाद ने जोर पकड़ लिया है. इस प्रस्ताव की तुलना महाराष्ट्र में हालिया मराठी भाषा विवाद से की जा रही है, जहां राज्य सरकार द्वारा मराठी को अनिवार्य करने के कदम पर अन्य भाषा-भाषियों ने विरोध जताया था. अब जम्मू-कश्मीर में भी वैसा ही परिदृश्य बनता दिख रहा है, जहां कश्मीरी और उर्दू भाषियों की बहुलता होने के बावजूद संस्कृत को अनिवार्य करने की मांग को लेकर सियासी हलकों में बवाल मच गया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस प्रस्ताव को केंद्र शासित प्रदेश की स्वायत्तता और सामाजिक तानेबाने में हस्तक्षेप करार दिया है.
एनसी नेता शेख बशीर ने उपराज्यपाल पर प्रशासनिक मामलों में अनावश्यक दखल देने का आरोप लगाते हुए कहा कि भाषा को थोपने की बजाय बच्चों को उनकी पसंद से भाषा चुनने की आज़ादी होनी चाहिए. पीडीपी के प्रवक्ता आदित्य गुप्ता ने इसे सीधे तौर पर भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से जोड़ा और कहा कि उपराज्यपाल अगर वास्तव में भाषा संरक्षण के पक्षधर हैं तो उन्हें पहले डोगरी को जम्मू क्षेत्र में अनिवार्य करना चाहिए, जो वहां की मातृभाषा है. दूसरी ओर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि संस्कृत को अनिवार्य करने से आने वाली पीढ़ियां अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़ सकेंगी.
वहीं Samskrita Bharati Jammu Kashmir Trust के अध्यक्ष पुरूषोतम लाल दुबे का कहना है कि हमारा मकसद विवाद करवाना नहीं है, जम्मू कश्मीर ऋषि मुनियों की धरती है, और यहां संस्कृत अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि यहां के बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ सकें. गौरतलब है कि इससे पहले जम्मू-कश्मीर में नायब तहसीलदार भर्ती परीक्षा में उर्दू को अनिवार्य किए जाने के फैसले पर भी विवाद हुआ था, जिसे CAT (केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण) ने खारिज कर दिया था. अब संस्कृत पर आए इस प्रस्ताव ने एक और भाषा-संबंधी बहस को जन्म दे दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या भाषा को सांस्कृतिक जुड़ाव के नाम पर थोपना उचित है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भाषायी विविधता और संवेदनशीलता पहले से ही गहरी है.
जम्मू-कश्मीर में संस्कृत को लेकर उठी यह बहस केवल शिक्षा प्रणाली तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह अब संविधान, क्षेत्रीय अस्मिता और राजनीतिक विचारधारा के टकराव का मंच बन चुकी है. जिस तरह महाराष्ट्र में मराठी के नाम पर राजनीति हुई, उसी तरह जम्मू-कश्मीर में संस्कृत अब एक नया भाषा-सियासत का चेहरा बनकर उभर रहा है.
F&Q
सवाल- जम्मू कश्मीर में किस संगठन ने की संस्कृत पढ़ाने की मांग?
जवाब- जम्मू कश्मीर में Samskrita Bharati Jammu Kashmir Trust ने की संस्कृत पढ़ाने की मांग.
सवाल- महाराष्ट्र में भाषा को लेकर क्या विवाद है?
जवाब- महाराष्ट्र सरकार एक आदेश जारी किया था, जिसमें कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का निर्णय लिया गया था. जिसका जमकर विरोध विपक्षी पार्टियां कर रही थी.
सवाल- भाषाओं को किस अनुसूची में रखा गया है?
जवाब- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं को शामिल किया गया है.
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