Military Disability Pension: दिल्ली हाईकोर्ट ने विकलांगता पेंशन से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि सैनिक कठिन परिस्थितियों में सेवा करते हैं और बीमारी या विकलांगता उनकी सेवा का ही एक हिस्सा होती है. न्यायमूर्ति सी हरिशंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जब आम नागरिक अपने घरों में आराम से बैठकर कॉफी की चुस्कियां ले रहे होते हैं.. तब सैनिक सीमाओं पर बर्फीली हवाओं का सामना कर रहे होते हैं.
क्या कहा कोर्ट ने?
अदालत ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की प्रसिद्ध टिप्पणी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है.. यह पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो. अदालत ने कहा कि कुछ लोग इस विचार को अपने जीवन में आत्मसात कर लेते हैं. अपने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने को हमेशा तैयार रहते हैं.
सरकार की याचिका पर क्या था मामला?
केंद्र सरकार ने दो पूर्व सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन देने के खिलाफ सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के फैसले को चुनौती दी थी. इन दो अधिकारियों में से एक 1985 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे और 2015 में टाइप-2 मधुमेह के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिए गए थे. दूसरे अधिकारी रक्षा सुरक्षा कोर से जुड़े थे और उन्हें उनके दाहिने पैर की धमनी अवरुद्ध होने के बावजूद पेंशन देने से मना कर दिया गया था.
सरकार की दलील और अदालत का जवाब
केंद्र सरकार का तर्क था कि ये अधिकारी पीस पोस्टिंग (कम अस्थिर क्षेत्र में तैनाती) पर थे इसलिए उनकी बीमारी सैन्य सेवा के कारण नहीं थी. इस पर अदालत ने कहा कि किसी बीमारी की शुरुआत सेवा के दौरान हुई है तो मात्र पीस पोस्टिंग पर होने से यह साबित नहीं होता कि वह सैन्य सेवा से संबंधित नहीं थी. कोर्ट ने कहा कि सेना के जवान अक्सर तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं. जिससे कई बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं या बढ़ सकती हैं. मधुमेह जैसी बीमारियां तनाव के कारण उत्पन्न हो सकती हैं और पीस पोस्टिंग के दौरान भी सैन्य अधिकारियों को मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है.
रक्षा मंत्रालय को दिया स्पष्ट संदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सैनिकों द्वारा किए गए बलिदानों की भरपाई नहीं की जा सकती. लेकिन सरकार को कम से कम यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें उनकी सेवा के बाद सम्मान और सुविधाएं दी जाएं. अदालत ने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें अपने सैनिकों की सेवाओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें उनकी मेहनत का उचित प्रतिफल देना चाहिए.
अदालत का अंतिम निर्णय
दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया और AFT के आदेश को पूरी तरह से बरकरार रखा. इसका मतलब यह हुआ कि दोनों पूर्व सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन मिलेगी और सरकार इस फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया है कि सरकार केवल पीस पोस्टिंग का हवाला देकर सैनिकों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकती. यह फैसला अन्य सैनिकों के लिए भी एक मिसाल बनेगा जो विकलांगता पेंशन पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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