Noida News: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) के तहत आने वाली कई आवासीय परियोजनाओं की प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है. यह जांच सबवेंशन स्कीम के मामले में की जा रही है, जिसमें कथित अनियमितताएं सामने आई हैं. यह कदम उन हजारों घर खरीदारों की शिकायतों के बाद उठाया गया है, जो वर्षों से अपने फ्लैटों का कब्जा नहीं पा सके हैं.
सीबीआई ने इस मामले में प्राधिकरण से संबंधित बिल्डर की भूमि आवंटन फाइल, लीज डीड, स्वीकृत भवन योजनाएं, भुगतान रिकॉर्ड, प्राधिकरण और डेवलपर्स के बीच आधिकारिक पत्राचार को शामिल किया है. जांच में शामिल परियोजनाओं में सेक्टर-17ए स्थित सुपरटेक की अप कंट्री, सेक्टर-22डी में ओएसिस रियलटेक की ग्रैंडस्टैंड और YEIDA क्षेत्र के सेक्टर-25 में जेपी ग्रुप की कोव और कासिया परियोजनाएं शामिल हैं. इस जांच का नेतृत्व सीबीआई की आर्थिक अपराध शाखा-1 कर रही है. जांच का मुख्य उद्देश्य सबवेंशन स्कीम में कथित अनियमितताओं की जांच करना है, जो बिल्डरों, बैंकों और घर खरीदने वालों के बीच एक वित्तीय व्यवस्था है. इस स्कीम के तहत घर खरीदारों को एक छोटे से प्रारंभिक निवेश के साथ संपत्ति खरीदने की अनुमति दी गई थी.
YEIDA के सीईओ अरुण वीर सिंह ने बताया कि सीबीआई की ओर से मांगी गई जानकारी उपलब्ध करा दी गई है. यह स्पष्ट है कि एनसीआर में बिल्डरों और बैंकों के बीच कथित सांठगांठ की जांच सीबीआई कर रही है. यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बायर्स की याचिका पर दिया है, जो इस मामले में महत्वपूर्ण है. यह निर्णय उन हजारों घर खरीदारों की शिकायतों के बाद आया है, जो अपने फ्लैटों का कब्जा नहीं पा सके हैं और उन्हें बैंकों द्वारा ईएमआई चुकाने के लिए बाध्य किया जा रहा है. इनमें से कई बायर्स अब डिफाल्टर की श्रेणी में आ चुके हैं.
ये भी पढ़ें: Greater Noida: ऑटो चालकों की मनमानी पर कोड नंबर से लगेगी लगाम, जानें जानकारी
बिल्डरों को फंसाने के लिए सबवेंशन स्कीम एक भुगतान योजना थी, जिसे रियल एस्टेट डेवलपर्स ने बैंकों के सहयोग से शुरू किया था. इस योजना का उद्देश्य घर खरीदने वालों के लिए संपत्ति खरीदना अधिक आसान और आकर्षक बनाना था. खरीदार एक छोटे से प्रारंभिक निवेश के साथ घर बुक कर सकते थे, जबकि बिल्डर ने कब्जा मिलने तक लोन ब्याज (प्री-ईएमआई) का भुगतान करने की जिम्मेदारी ली थी. इस योजना के तहत, घर खरीदने वाला व्यक्ति एक अग्रिम राशि का भुगतान करता था, जो आमतौर पर कुल संपत्ति लागत का 5% से 20% होता था. बैंक शेष राशि के लिए होम लोन स्वीकृत करता था और कुल लागत का 80-95% सीधे डेवलपर को वितरित करता था. बिल्डर परियोजना पूरी होने और कब्जा सौंपे जाने तक लोन पर केवल ब्याज (प्री-ईएमआई) का भुगतान करने के लिए सहमत होता था.
बायर्स ने कुल लागत का 5 से 20 प्रतिशत तक पैसा बिल्डर को देकर फ्लैट बुक कराया. इसके बाद बिल्डर ने बैंक से प्रॉपर्टी पर 80 प्रतिशत का लोन दिलाया, जो बिल्डर के पास गया. योजना के तहत, बिल्डर को लोन की ईएमआई पर लगने वाले ब्याज का भुगतान करना था. लेकिन कुछ किस्तें भरने के बाद, बिल्डर ने ब्याज देना बंद कर दिया और यह पैसा अन्य परियोजनाओं में डायवर्ट किया.